प्रयासों के ताने-बाने से सुरक्षित है हथकरघा की खूबसूरत दुनिया, महिलाएं ही नहीं, पुरुष भी हैं हथकरघा के शौकीन

इंदौर एक वक्त था, जब शहर में हथकरघा उत्पाद की जड़ें जमती जा रही थीं। फिर कपड़ा मिल का दौर आया और हैंडलूम की जगह पावरलूम ने ले ली। वक्त के साथ हथकरघा उत्पाद की मांग कम होती गई। मगर, अब फिर इस उद्योग को आशा की न केवल किरण नजर आ रही है, बल्कि […]

प्रयासों के ताने-बाने से सुरक्षित है हथकरघा की खूबसूरत दुनिया, महिलाएं ही नहीं, पुरुष भी हैं हथकरघा के शौकीन

इंदौर
एक वक्त था, जब शहर में हथकरघा उत्पाद की जड़ें जमती जा रही थीं। फिर कपड़ा मिल का दौर आया और हैंडलूम की जगह पावरलूम ने ले ली। वक्त के साथ हथकरघा उत्पाद की मांग कम होती गई। मगर, अब फिर इस उद्योग को आशा की न केवल किरण नजर आ रही है, बल्कि यह उद्योग ही मांग के आकाश पर छाने लगा है। प्रयासों के ताने-बाने से एक बार फिर हथकरघा की खूबसूरत दुनिया सुरक्षित महसूस कर रही है। यह प्रयास कोई एक व्यक्ति, संस्था या एक पद्धति से नहीं, बल्कि साझा रूप से हो रहा है। पारंपरिक ढंग से तैयार होने वाले हथकरघा उत्पाद पर नई डिजाइन की खूबसूरती की झलक दिख रही है। हाथ से बुने हुए कपड़ों की डिजाइनर ड्रेसेस इसका चलन बढ़ा ही रही हैं।
 
महिलाएं ही नहीं, पुरुष भी हैं हथकरघा के शौकीन
इसके साथ ही स्टार्टअप और महिलाओं के समूह भी अपने स्तर पर इसकी लोकप्रियता व उपयोगिता बढ़ा रहे हैं। परिणाम यह है कि बीते दो वर्षों में इंदौर में हथकरघा उत्पाद की मांग में करीब 30 प्रतिशत इजाफा हो गया है। एक और अच्छी बात यह है कि हथकरघा उत्पाद के शौकीनों में केवल महिलाएं ही नहीं, पुरुष भी शामिल हैं। दरअसल, अब उनकी पसंद के अनुरूप भी कपड़े डिजाइन हो रहे हैं।

पहनावे में अभी भी बनी हुई है पारंपरिक पसंद
एक तरफ हमारा देश पश्चिमी संस्कृति की ओर आगे बढ़ रहा है, लेकिन पहनावे में आज भी वह पारंपरिक पसंद ही कर रहा है। महिलाएं आज भी यह जानती हैं कि उनकी सुंदरता साड़ी पहनने के बाद ही निखरती है। खासतौर से उस साड़ी से, जो हाथ से बनाई गई हो। खास बात है कि जो युवतियां फैशन डिजाइनिंग का कोर्स कर रही हैं, वे भी हथकरघा उत्पाद को बड़े मंचों तक पहुंचा रही हैं।

विदेशों में भी बन गए हैं हथकरघा के ग्राहक
वह इसके प्रशिक्षण के लिए भी जा रही हैं। कई महिलाओं ने हथकरघा का व्यापार भी ऑनलाइन शुरू किया है। इसका परिणाम यह है कि विदेश में भी अब उनके ग्राहक बन गए हैं। कुछ ने हथकरघा को बढ़ावा देने के लिए समूह भी बना लिए हैं और इनके आयोजन में शामिल होने की शर्त है हथकरघा से तैयार साड़ी पहनकर आना।

धनाड्य वर्ग में तेजी से बढ़ा है हैंडलूम का चलन
बड़ी-बड़ी पार्टियों में इसका चलन काफी बढ़ गया है। हम यह भी कह सकते हैं हथकरघा का चलन अब धनाढ्य वर्ग में काफी तेजी से चल रहा है। इसमें केवल साड़ी और ड्रेस मटेरियल ही शामिल नहीं बल्कि दुपट्टे, शर्ट, क्रॉप टॉप, लोअर, ट्राउजर, जैकेट, कुशन कवर, गलीचे, सजावटी कालीन आदि शामिल हैं।

इंटरनेट ने भी इंडस्ट्री को किया है प्रमोट
कारोबार करने वाले व्यापारी बताते हैं कि हथकरघा के चलने बढ़ने का एक बड़ा कारण इंटरनेट मीडिया भी है। इसके माध्यम से घर बैठे-बैठे लोग इसे प्रमोट कर पा रहे हैं। कई स्टार्टअप इसकी बदौलत आज विश्वभर में पहचान बना रहे हैं। विदेश में भी शादियां होती हैं, तो वहां भी हथकरघा की साड़ियों का चलन है। हमारे पास वहां से भी ऑर्डर आते हैं।

बड़ी संख्या में महिलाओं को मिला रोजगार
सरकार की ओर से भी हथकरघा को बढ़ावा देने के लिए योजनाएं चलाईं जा रही हैं। इसमें प्रिंटिंग की ट्रेनिंग फ्री में दी जा रही है। बड़ी संख्या में महिलाएं योजनाओं का लाभ उठाकर अब आत्मनिर्भर बन रही हैं। अब वह खुद ही कपड़ों की प्रिंटिंग करती है तो और उन्हें दुकानों तक पहुंचाती हैं। इससे कई परिवारों में खुशियां आई है।