भारत के दर्शन में कृतज्ञता का भाव, संस्कृत भाषा में यह भाव प्रकटीकरण का सामर्थ्य : आयुष मंत्री परमार

भारत के दर्शन में कृतज्ञता का भाव, संस्कृत भाषा में यह भाव प्रकटीकरण का सामर्थ्य : आयुष मंत्री परमार संस्कृत भाषा के बिना आयुर्वेद की कल्पना भी संभव नहीं : परमार आयुर्वेद, भारत ही नहीं अपितु विश्व की प्राचीनतम विधा : परमार महर्षि पतंजलि संस्कृत संस्थान में "आयुर्वेद में संस्कृत भाषा की महत्ता" पर हुई […]

भारत के दर्शन में कृतज्ञता का भाव, संस्कृत भाषा में यह भाव प्रकटीकरण का सामर्थ्य : आयुष मंत्री परमार

भारत के दर्शन में कृतज्ञता का भाव, संस्कृत भाषा में यह भाव प्रकटीकरण का सामर्थ्य : आयुष मंत्री परमार

संस्कृत भाषा के बिना आयुर्वेद की कल्पना भी संभव नहीं : परमार

आयुर्वेद, भारत ही नहीं अपितु विश्व की प्राचीनतम विधा : परमार

महर्षि पतंजलि संस्कृत संस्थान में "आयुर्वेद में संस्कृत भाषा की महत्ता" पर हुई संगोष्ठी

भोपाल

आयुर्वेद भारत ही नहीं अपितु विश्व की प्राचीनतम विधा है। जीवन जीने की पद्धति है, जिसमें प्रकृति के प्रति कृतज्ञता के भाव का समावेश है। प्रकृति एवं मानव सहित समस्त चराचर के प्रति कृतज्ञता के भाव का प्रकटीकरण संस्कृत भाषा के माध्यम से भावानुकूल होता है। संस्कृत भाषा के बिना आयुर्वेद की कल्पना भी संभव नहीं है। भारत के दर्शन में कृतज्ञता का भाव है। किसी के भी कृत कार्यों से कृतज्ञ होकर उसके प्रति आभार व्यक्त करना भारत की संस्कृति, परम्परा और पहचान है। इस परम्परा का संरक्षण करने की आवश्यकता है। यह बात उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा एवं आयुष मंत्री इन्दर सिंह परमार ने बुधवार को भोपाल स्थित महर्षि पतंजलि संस्कृत संस्थान (संस्कृत भवनम्) के भरतनाट्यगृहम् में संस्कृत सप्ताह महोत्सव के उपलक्ष्य पर "आयुर्वेद में संस्कृत भाषा की महत्ता" विषय पर आयोजित संगोष्ठी के शुभारंभ के अवसर पर कही। परमार ने कहा कि भारत का पुरातन ज्ञान संस्कृत भाषा में ही है। भारतीय ज्ञान परम्परा में संस्कृत भाषा का महत्व परिलक्षित होता है। भारत के लोगों को भारतीय ज्ञान पर गर्व करने का भाव जागृत करना होगा, अपनी उपलब्धियों पर गर्व करने की आदत बनानी होगी। परमार ने कहा कि भारत के ज्ञान के क्षेत्र में विश्वगुरु कहलाता था, पूर्वजों के उसी ज्ञान परम्परा का अनुसरण करना होगा। स्वतंत्रता की शताब्दी वर्ष 2047 तक भारत को विश्वमंच पर ज्ञान के क्षेत्र में पुनः सिरमौर बनाने के लिए समग्र ज्ञान की आवश्यकता है। इसके लिए भारतीय ज्ञान परम्परा को शोध एवं अनुसंधान के साथ युगानुकुल परिप्रेक्ष्य में रखना होगा।

आयुष मंत्री परमार ने कहा कि विश्व भर में विभिन्न जटिल स्वास्थ्य समस्याओं का निदान चिकित्सा जगत के समक्ष चुनौती है, जिसका मात्र आधुनिक चिकित्सा पद्धति के माध्यम से निदान कर पाना संभव नहीं है। परम्परागत चिकित्सा पद्धतियों को भी इस चुनौती के लिए समाधान खोजना होगा। इस अनुक्रम में आयुर्वेद को शोध एवं अनुसंधान के साथ आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। इसके लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के क्रियान्वयन में भारतीय ज्ञान परम्परा को तथ्यों के साथ शिक्षा में समावेश करना होगा। परमार ने कहा कि भाषा जोड़ने का काम करती है, यह भारत का दृष्टिकोण है। देश के विभिन्न प्रांतों की भाषाओं जैसे तमिल, तेलुगु, गुजराती, मराठी, आदि भाषाओं को सिखाने का कार्य प्रदेश के शिक्षा क्षेत्र में हो रहा है। प्रदेश, क्षेत्रीय भाषाओं को सिखाकर राज्यों के मध्य भाषाई सौहार्द प्रकट करने वाला अग्रणी राज्य होगा। परमार ने कहा कि हमें भारत की गौरवशाली परम्परा और भाषाओं पर गर्व करना होगा, जिससे आने वाली पीढ़ी परंपरागत रूप से संस्कृत जैसी प्राचीनतम भाषा को अग्रसर रखें। मंत्री परमार ने सभी को संस्कृत दिवस एवं संस्कृत सप्ताह की बधाई एवं शुभकामनाएं भी दीं।

इस अवसर पर डॉ अशोक कुमार वार्ष्णेय, डॉ जागेश्वर पटले एवं संस्थान के निदेशक प्रभात राज तिवारी सहित विभिन्न विषयविद, गणमान्य जन एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे।