यूपी में इस बार इतने बिखरे बादल कि गरजना भूल गए
कानपुर, इस मानसून में बादल इस कदर बिखरे कि गरजना ही भूल गए। यूपी कानपुर के मौसम विज्ञानियों के मुताबिक बादलों से जुड़ी आकाशीय घटनाओं में बड़ा बदलाव देखा गया है। अध्ययन में पता चला है कि इस मानसून में बादलों की लंबाई सिमट कर 40-60 किमी तक रह गई है। ऐसा देश के कई […]
कानपुर,
इस मानसून में बादल इस कदर बिखरे कि गरजना ही भूल गए। यूपी कानपुर के मौसम विज्ञानियों के मुताबिक बादलों से जुड़ी आकाशीय घटनाओं में बड़ा बदलाव देखा गया है। अध्ययन में पता चला है कि इस मानसून में बादलों की लंबाई सिमट कर 40-60 किमी तक रह गई है। ऐसा देश के कई हिस्सों में दिखा है। इससे पहले कभी-कभार होने वाली पॉकेट रेन पहली बार पूरे मानसून में दिखी है। इसी कारण बादल गरजने की जगह खामोश हैं।
जून से अब तक (30 अगस्त) विशेषकर उत्तर प्रदेश में 11 फीसदी बारिश कम हुई है। विशेषज्ञों में बारिश में कमी से उतनी चिंता नहीं है, जितनी बादलों के आकार और स्वभाव में बदलाव से है। कानपुर में इस पूरे मानसून में केवल दो दिन ही पूरे शहर में समान बारिश हुई है। शेष दिनों में पॉकेट रेन (खंड वर्षा) ही हुई है।
ऐसे में खूब गरजते हैं बादल
विशेषज्ञ बताते हैं कि जब बादलों का निगेटिव चार्ज (ऋणात्मक आवेश) वाला टुकड़ा पॉजिटिव चार्ज (धनात्मक आवेश) वाले टुकड़े से टकराए, तो तेज मेघ गर्जन होता है। इसी से आकाशीय बिजली भी उत्पन्न होती है। गर्जना के अन्य कारणों में ठंडी हवा और गर्म हवा के बीच टकराव से पूरी पंक्ति तैयार होती है, तो वह थंडर में बदल जाता है। इसमें लगातार खौफनाक गर्जना सुनाई देती है। इस सीजन में घने बादल कम हैं। थंडर स्टॉर्म जैसी स्थितियां नहीं बन पा रही हैं।
सिर्फ दो दिन हुई मूसलाधार बारिश
कानपुर में जुलाई में मात्र एक दिन मूसलाधार बारिश हुई। यह पूरे शहर में एक समान रही। पहली जुलाई को करीब 81 मिमी बारिश के दौरान बादल खूब गरजे। आकाशीय बिजली भी गिरी। जुलाई में केवल तीन दिन बादल गरजे। उसके बाद 19 अगस्त को मूसलाधार बारिश हुई। शेष दिवसों में जो रिमझिम बारिश हुई, जिसमें बादल नहीं गरजे।
सीएसए विवि के मौसम विशेषज्ञ, डॉ. एसएन सुनील पांडेय ने कहा कि पहली बार देखा गया है कि बादलों की लंबाई 60-70 किमी या इससे भी कम रही है। बरसात में आमतौर पर यह 100 किमी या इससे अधिक होनी चाहिए। आकार छोटा होने से पॉकेट रेन की स्थिति देश के ज्यादातर हिस्सों में रही है। इसी वजह से मेघ गर्जना भी बेहद कम रही है। पर कई जगह आकाशीय बिजली की घटनाएं जुलाई में ज्यादा हुईं। इन बदलावों की वजह जलवायु परिवर्तन माना जा रहा है। सीएसए विवि में इसका अध्ययन किया जा रहा है।