एफएमसीजी सेक्टर में बड़ा दांव लगाने को तैयार मुकेश अंबानी, 3,900 करोड़ झोंकेगे अंबानी
मुंबई मुकेश अंबानी की अगुवाई वाली देश की सबसे वैल्यूएबल कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज एफएमसीजी सेक्टर में बड़ा दांव लगाने वाली है। रिलायंस अपनी एफएफसीजी यूनिट में इक्विटी और डेट के जरिए 3,900 करोड़ रुपये तक की बड़ी पूंजी लगाने की तैयारी में है। इस सेक्टर में उसका मुख्य मुकाबला हिंदुस्तान यूनिलीवर, आईटीसी, कोका-कोला, अडानी विल्मर […]
मुंबई
मुकेश अंबानी की अगुवाई वाली देश की सबसे वैल्यूएबल कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज एफएमसीजी सेक्टर में बड़ा दांव लगाने वाली है। रिलायंस अपनी एफएफसीजी यूनिट में इक्विटी और डेट के जरिए 3,900 करोड़ रुपये तक की बड़ी पूंजी लगाने की तैयारी में है। इस सेक्टर में उसका मुख्य मुकाबला हिंदुस्तान यूनिलीवर, आईटीसी, कोका-कोला, अडानी विल्मर और दूसरी कंपनियों से है। रिलायंस कंज्यूमर प्रोडक्ट्स (आरसीपीएल) के बोर्ड ने 24 जुलाई को आयोजित एक असाधारण आम बैठक में इसके लिए विशेष प्रस्ताव पारित किया। कंपनी ने रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज (आरओसी) को अपनी लेटेस्ट रेगुलेटरी फाइलिंग में यह बात कही है। कंपनी की स्थापना नवंबर 2022 में की गई थी और उसके बाद से रिलायंस का इस कंपनी में यह सबसे बड़ा पूंजी निवेश होगा।
फाइलिंग के अनुसार आरसीपीएल ने कंपनी की अधिकृत शेयर पूंजी को 1 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 100 करोड़ रुपये कर दिया है और 3,000 करोड़ रुपये तक अतिरिक्त पूंजी जुटाने का प्रस्ताव पारित किया है। कंपनी ने 10 अंकित मूल्य के 775 मिलियन तक के अनसिक्योर्ड जीरो-कूपन ऑप्शनली फुली कनवर्टीबल डिबेंचर को नकद में ऑफर करने, जारी करने और आवंटित करने के लिए भी बोर्ड की मंजूरी भी ले ली है। यह एक या अधिक किस्तों में राइट्स के आधार पर 775 करोड़ के बराबर है। बाजार जानकार ने बताया कि यह रणनीतिक कदम बताता है कि आरसीपीएल संभावित अधिग्रहण, बड़े विस्तार या अपने उत्पाद पोर्टफोलियो और बाजार में उपस्थिति में महत्वपूर्ण निवेश के लिए खुद को तैयार कर रही है। कंपनी ने 2023-24 में अपने परिचालन का पहला पूरा वर्ष पूरा कर लिया।
एक सूत्र ने कहा कि मौजूदा प्रस्तावों को आरसीपीएल बोर्ड द्वारा एक निश्चित राशि तक पूंजी जुटाने के लिए पारित किया गया है, लेकिन कितना और कब जुटाया जाए, इस पर अंतिम निर्णय अभी लिया जाना बाकी है। आरसीपीएल को वित्त वर्ष 2024 में अपनी होल्डिंग कंपनी रिलायंस रिटेल वेंचर्स से राइट्स के आधार पर 792 करोड़ की ऋण पूंजी प्राप्त हुई थी। वित्त वर्ष 2023 में, आरसीपीएल ने उसी डिबेंचर रूट के माध्यम से 261 करोड़ जुटाए थे। रिलायंस रिटेल वेंचर्स की डायरेक्टर ईशा अंबानी ने पिछले हफ्ते रिलायंस इंडस्ट्रीज की एजीएम में शेयरधारकों से कहा था कि उपभोक्ता ब्रांड व्यवसाय में कंपनी का जोर पूरे भारत में अधिक से अधिक खपत को बढ़ावा देने के लिए सस्ती कीमतों पर उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद बनाने पर केंद्रित है।
ईशा अंबानी ने क्या कहा
उन्होंने कहा कि यह रणनीतिक कदम बताता है कि RCPL संभावित अधिग्रहण, बड़े विस्तार या अपने उत्पाद पोर्टफोलियो और बाजार में उपस्थिति में महत्वपूर्ण निवेश के लिए खुद को तैयार कर रही है। इस बारे में RCPL ने ईमेल का जवाब नहीं दिया। कंपनी ने 2023-24 में अपने परिचालन का पहला पूरा वर्ष पूरा कर लिया। एक सूत्र ने कहा कि मौजूदा प्रस्तावों को RCPL बोर्ड द्वारा एक निश्चित राशि तक पूंजी जुटाने के लिए पारित किया गया है, लेकिन कितना और कब जुटाया जाए, इस पर अंतिम निर्णय अभी लिया जाना बाकी है।
आरसीपीएल को वित्त वर्ष 2024 में अपनी होल्डिंग कंपनी रिलायंस रिटेल वेंचर्स से राइट्स के आधार पर ₹792 करोड़ की ऋण पूंजी प्राप्त हुई थी। वित्त वर्ष 2023 में, आरसीपीएल ने उसी डिबेंचर रूट के माध्यम से ₹261 करोड़ जुटाए थे। रिलायंस रिटेल वेंचर्स की डायरेक्टर ईशा अंबानी ने पिछले हफ्ते रिलायंस इंडस्ट्रीज की एजीएम में शेयरधारकों से कहा था कि उपभोक्ता ब्रांड व्यवसाय में कंपनी का जोर पूरे भारत में अधिक से अधिक खपत को बढ़ावा देने के लिए सस्ती कीमतों पर उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद बनाने पर केंद्रित है।
टाटा, अंबानी और अडानी का दांव
भारतीय एफएमसीजी मार्केट के बड़े हिस्से को हासिल करने के लिए रिलायंस इक्विटी और डेट के माध्यम से अपनी एफएमसीजी आर्म शाखा में 3,900 करोड़ रुपए तक की बड़ी पूंजी लगाने की तैयारी कर रहा है. ताकि हिंदुस्तान यूनिलीवर, आईटीसी, कोका-कोला, अडानी विल्मर और दूसरी कंपनियों के साथ कंप्टीशन किया जा सके.
वहीं दूसरी ओर अडानी भी कैपेक्स बढ़ाकर एफएमसीजी कारोबार को दोगुना करने की प्लानिंग कर रहा है. हालिया मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, अडानी ग्रुप की एफएमसीजी कंपनी अडानी विल्मर तेजी से बढ़ते पैकेज्ड कंज्यूमर गुड्स मार्केट में अपनी मौजूदगी बढ़ाने के लिए कम से कम तीन मसालों, पैकेज्ड फूड प्रोडक्ट्स और रेडी-टू-कुक ब्रांडों को खरीद सकती है. कथित तौर पर 1 बिलियन डॉलर का एक्विजिशन फंड इस खरीदारी को बल देगा..
इन कंपनियों के अलावा टाटा ग्रुप की एफएमसीजी कंपनी, टाटा कंज्यूमर प्रोडक्ट्स लिमिटेड, फुल एफएमसीजी कंपनी बनने की ओर बढ़ रही है. वहीं वित्त वर्ष 2025 के लिए अपने कैपेक्स को दोगुना से अधिक बढ़ाकर 785 करोड़ रुपए कर दिया है. कंपनी ग्रोथ को गति देने के लिए और कंपनियों को खरीदने का विचार भी कर रही है. टीसीपीएल ने हाल ही में अपनी तीन सहायक कंपनियों टाटा कंज्यूमर सोलफुल प्राइवेट लिमिटेड, नॉरिशको बेवरेजेज लिमिटेड और टाटा स्मार्टफूडज लिमिटेड का मर्जर कर दिया है.
एफएमसीजी सेक्टर में दांव क्यों लगा रहे हैं बड़े ग्रुप?
भारत के कॉर्पोरेट दिग्गज एचयूएल, आईटीसी, नेस्ले इंडिया, ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज, गोदरेज, मैरिको और कोलगेट-पामोलिव जैसे मजबूत ट्रेडिशनल लीडर्स के प्रभुत्व वाले क्षेत्र पर दांव क्यों लगा रहे हैं? जैसा कि भारत की इकोनॉमी लगातार हाई ग्रोथ रेट पर आगे बढ़ रही है और वित्त वर्ष 2028 तक जापान और जर्मनी दोनों को पछाड़कर तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी बनने की भविष्यवाणी की गई है. भारत की जीडीपी 5 ट्रिलियन डॉलर को पार कर जाएगी. जिसमें एफएमसीजी सेक्टर सबसे बड़े लाभार्थियों में से एक होगा क्योंकि बढ़ती डिस्पोजेबल इनकम को बढ़ावा मिलेगा. ऐसे में बड़े कारोबारी समूह इस अवसर का लाभ उठाने के बारे में सोच रहे हैं.
2030 तक भारत को सबसे बड़ा बाजार
रिलायंस इंडस्ट्रीज ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा है कि भारतीय खुदरा बाजार दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ते बाजारों में से एक है, जिसके 2027 तक 1.4 ट्रिलियन डॉलर को पार करने की उम्मीद है. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत 2030 तक तीसरा सबसे बड़ा खुदरा बाजार बनने की ओर अग्रसर है, इसमें कहा गया है कि बढ़ते शहरीकरण, आय के बढ़ते स्तर, महिला वर्कफोर्स का विस्तार और महत्वाकांक्षी युवा आबादी जैसे कारकों से विकास को गति मिलती है. इसके अलावा, प्रीमियम और लग्जरी प्रोडक्ट्स की बढ़ती मांग इस ग्रोथ और बढ़ावा देगी.
युवा आबादी में लगातार इजाफा
टाटा कंज्यूमर प्रोडक्ट्स लिमिटेड के चेयरमैन एन चंद्रशेखरन ने हाल ही में कहा है कि भारत का कंज्यूमर मार्केट एक लॉन्गटर्म स्ट्रक्चरल अपॉर्च्यूनिटीज को रिप्रेजेंट करता है, जो जनसंख्या, बढ़ते मध्यम वर्ग, तेजी से शहरीकरण, बढ़ती डिस्पोजेबल इनकम और बढ़ती आकांक्षाओं से प्रेरित है. उन्होंने कहा कि भारत का मध्यम वर्ग इस दशक के अंत तक आबादी के लगभग 30 फीसदी से बढ़कर 50 फीसदी हो जाने की उम्मीद है. यह लगभग 300 मिलियन अतिरिक्त लोग हैं जो मध्यम वर्ग में प्रवेश करेंगे. इसके अलावा, तेजी से शहरीकरण, बढ़ती खर्च योग्य आय और उपभोक्ताओं की बढ़ती आकांक्षाएं, सभी टाटा कंज्यूमर प्रोडक्ट्स लिमिटेड के लिए अच्छे संकेत हैं. महंगाई और अनिश्चित मौसम जैसी चुनौतियों के बावजूद भारत के वो बड़े ग्रुप जो इस सेक्टर में अपने आपको एक्सपेंड कर रहे हैं वो इन्हें नजरअंदाज कर सकते हैं.
तेजी से ग्रो कर रहा एफएमसीजी सेक्टर
इंवेस्टमेंट बैंक यूबीएस ने हाल ही में एक रिपोर्ट में कहा है कि भारत 2026 में जर्मनी और जापान को पछाड़कर और अमेरिका और चीन के बाद तीसरा सबसे बड़ा कंज्यूमर मार्केट बनने की राह पर है, क्योंकि अमीर लोगों की संख्या में लगातार इजाफा देखने को मिल रहा है. यूबीएस ने 2028 तक 10,000 डॉलर से अधिक वार्षिक आय वाले 88 मिलियन लोगों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि 2023 तक, भारत में अनुमानित 40 मिलियन लोग समृद्ध कैटेगिरी में थे, जिनके अगले 5 वर्षों में दोगुने से अधिक होने की संभावना है.
पिछले साल फिच सॉल्यूशन कंपनी बीएमआई की एक रिपोर्ट में भी यही भविष्यवाणी की गई थी. रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत का प्रति व्यक्ति घरेलू खर्च इंडोनेशिया, फिलीपींस और थाईलैंड जैसी अन्य विकासशील एशियाई देशों की तुलना में सालाना 7.8 फीसदी अधिक होगा. रिपोर्ट के अनुसार आसियान और भारत में कुल घरेलू खर्च के बीच का अंतर भी लगभग तीन गुना हो जाएगा.
लगातार बढ़ रहा है खर्च
पिछले एक दशक में घरेलू खपत दोगुनी हो गई है. हाल ही में जारी घरेलू उपभोग खर्च सर्वे डेटा के अनुसार, प्रति परिवार ग्रामीण क्षेत्रों में, औसत मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग खर्च (एमपीसीई) 2011-12 में 1,430 रुपए था जो 2022-23 में बढ़कर 3,773 रुपए हो गया, जबकि शहरी क्षेत्रों में, औसत एमपीसीई 2011-12 में 2,630 रुपए से बढ़कर 6,459 रुपए हो गया. भोजन पर खर्च की हिस्सेदारी में गिरावट आई है, जबकि नॉन-फूड प्रोडक्ट्स पर खर्च की हिस्सेदारी में इजाफा देखने को मिला है.
इससे पता चलता है कि भारतीय परिवारों के पास अधिक खर्च करने योग्य आय है और वे कपड़े, जूते, ट्रांसपोर्ट, एजुकेशन, हेल्थ और मनोरंजन जैसी विवेकाधीन वस्तुओं पर अधिक खर्च कर रहे हैं. ग्रामीण भारत में भोजन पर खर्च का हिस्सा 2011-12 में 52.9 फीसदी से गिरकर 2022-23 में 46.38 फीसदी हो गया है, जबकि शहरी भारत में भोजन पर खर्च का हिस्सा 2011-12 में 42.62 फीसदी से गिरकर 2022-23 में 39.17 फीसदी हो गया है. इसका मतलब यह है कि भारत में फूड प्रोडक्ट्स से लेकर नॉन-फूड प्रोडक्ट्स तक की खपत न केवल बढ़ रही है बल्कि मैच्योर भी हो रही है.