पीएम मोदी गणेश पूजा के लिए गए सीजेआई चंद्रचूड़ के घर, इसमें हंगामा करने जैसी क्या बात ?
नई दिल्ली प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बुधवार को नई दिल्ली स्थित भारत के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के घर पर गणपति पूजा समारोह में शामिल हुए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद इसकी जानकारी सोशल साइट X पर दी है. इस दौरान पीएम नरेंद्र मोदी सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ और उनकी पत्नी के साथ भगवान गणेश की आरती […]
नई दिल्ली
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बुधवार को नई दिल्ली स्थित भारत के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के घर पर गणपति पूजा समारोह में शामिल हुए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद इसकी जानकारी सोशल साइट X पर दी है. इस दौरान पीएम नरेंद्र मोदी सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ और उनकी पत्नी के साथ भगवान गणेश की आरती करते और पूजा करते नजर आए. प्रधानमंत्री ने पूजा करते हुए पारंपरिक महाराष्ट्रियन टोपी पहनी हुई थी. दरअसल, गणेश पूजा सबसे अधिक पॉपुलर महाराष्ट्र में है. इसलिए स्वाभाविक है कि पीएम मोदी ने महाराष्ट्रीयन टोपी को वरीयता दी होगी. सामान्य सी इस बात को लेकर सत्ता के गलियारों में कुछ लोगों को मिर्ची लग रही है. लगातार कुछ लोग दोनों के मिलने को भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरा बता रहे हैं.
1-हंगामा है क्यूं बरपा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के घोर विरोधी सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण ट्वीट करके कहते हैं कि न्यायाधीश के आचार संहिता का उल्लंघन उस स्थिति को दर्शाता है जिसमें न्यायाधीश ने अपने कार्यालय की गरिमा के अनुरूप पर्याप्त दूरी बनाए रखने में विफलता दिखाई है. इसका तात्पर्य है कि न्यायाधीश के किसी भी कार्य या चूक ने उसके उच्च पद की गरिमा और सार्वजनिक मान्यता को प्रभावित किया है. भूषण का रिकॉर्ड है कि उनको कभी भी पीएम मोदी का काम अच्छा नहीं लगा है. अब चूंकि मोदी सीजेआई के घर पहुंच गए, इसलिए सीजेआई भी अब उनके लिए सम्माननीय रहे. मतलब साफ है कि उन्हें विरोध के लिए विरोध करना ही है. प्रशांत भूषण अन्ना आंदोलन में अरविंद केजरीवाल के साथ थे. बाद में अरविंद केजरीवाल ने उनसे छुटकारा पा लिया था.
न्यायपालिका के खिलाफ एक बार प्रशांत के दो ट्वीट को लेकर न्यायालय ने उन्हें अवमानना का दोषी ठहराया था. बाद में प्रशांत भूषण पर सुप्रीम कोर्ट ने 1 रुपये का आर्थिक जुर्माना लगाया था. सुप्रीम कोर्ट ने उन पर क्यों केवल एक रुपये का ही जुर्माना लगाया, यह भी सवाल उठ सकता है. क्या एक सामान्य आदमी के साथ भी ऐसा ही सुलूक होता है? सुप्रीम कोर्ट ने तब कहा था कि एक रुपये की जुर्माना राशि 15 सितंबर तक जमा कराने में विफल रहने पर तीन माह की जेल हो सकती है और वकालत से तीन साल तक प्रतिबंधित किया जा सकता है.
शिवसेना (उद्धव ठाकरे) के नेता संजय राउत भी मोदी के चंद्रचूड़ से मुलाकात पर खफा हैं. राउत की बात इसलिए समझ में आती है क्योंकि महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होना है. राउत की पार्टी के सामने बीजेपी मुख्य कंटेंडर है. राउत को परेशानी इसलिए भी हो रही होगी क्योंकि मोदी ने एक तीर से कई शिकार किए हैं. मोदी ने मराठी टोपी पहनकर मराठा स्वाभिमान को सम्मान दिया है. जाहिर है विरोधी परेशान तो होंगे ही.
संजय राउत मोदी और सीजेआई के मुलाकात पर लिखते हैं
संविधान के घर को आग लगी
घरके चिरागसे…
1- EVM को क्लीन चीट
2- महाराष्ट्र में चल रही संविधान विरोधी सरकार की सुनवाई पर 3 साल से तारीख पे तारीख
3- प. बंगाल बलात्कर मामले मे suemoto हस्तक्षेप लेकिन
महाराष्ट्र रेप कांड का जिक्र नहीं.
4- दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल की जमानत पर तारीख पे तारीख.
ये सब क्युं हो रहा है?
क्रॉनॉलॉजी समझ लीजिये…
भारत माता की जय!!!
सोशल मीडिया पर एक हैंडल लिखता है कि इन लोगों के दोहरे मानदंड देखिए. कांग्रेस नेता और सुप्रीम कोर्ट के वकील अभिषेक मनु सिंघवी कहते हैं सीजेआई मेरे पुराने मित्र हैं. इससे इन्हें कोई परेशानी नहीं है.कपिल सिब्बल और सीजेआई एक साथ किसी उद्घाटन समारोह में रिबन कटिंग समारोह में भाग लेते हैं तो भी इन्हें कोई परेशानी नजर नहीं आती है.
2-संविधान में ऐसा कहीं लिखा है क्या कार्यपालिका और न्यायपालिका के प्रधान नहीं मिल सकते
जो लोग मोदी और चंद्रचूड़ की मुलाकात से भारतीय लोकतंत्र पर खतरे के रूप में देखते हैं उन्हें नहीं पता है कि संविधान में क्या लिखा है. संविधान में कहीं भी ये नहीं कहा गया है कि कार्यपालिका और न्यायपालिका एक दूसरे से मुलाकात नहीं कर सकते. दरअसल, किसी भी स्वस्थ लोकतंत्र के लिए सेप्रेशन ऑफ पावर और कोऑपरेशन ऑफ पावर दोनों को अलग नजरिए से देखने की जरूरत है. लोकतंत्र के इन दोनों स्तंभों में इतनी दूरी भी नहीं होनी चाहिए कि दोनों के बीच दीवार बन जाए. भारतीय जनता को सही मायने में न्याय तभी मिल पाएगा जब दोनों मिलकर देश की भलाई के लिए काम करेंगे.
एक बात और है. अगर दोनों चोरी-छिपे मिलते, अपनी मुलाकात को छुपाते तो लोकतंत्र के खतरे वाली बात समझ में आती. पर यहां तो पीएम मोदी खुद ट्वीट करके जानकारी देते हैं. फोटो और वीडियो भी ट्वीट करते हैं. समझने वाली बात यह है कि दोनों अगर चाहते तो गोपनीय मुलाकात हो जाती और किसी को पता भी नहीं लगता.
3-सीजेआई ने जब-जब सरकार को आंख दिखाई उसे भी देखना चाहिए
सीजेआई चंद्रचूड़ ने मोदी सरकार के खिलाफ कई महत्वपूर्ण निर्णय दिए हैं जो उनके न्यायिक स्वतंत्रता और सरकार की नीतियों पर उनके दृष्टिकोण को दर्शाते हैं.
– समलैंगिक विवाह का मामला: CJI चंद्रचूड़ ने समलैंगिक विवाह के मामले में महत्वपूर्ण टिप्पणियां की, जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया कि व्यक्तिगत गोद लेने का अधिकार वैवाहिक स्थिति से प्रभावित नहीं होता. उन्होंने यह भी टिप्पणी की कि समलैंगिक संबंध और क्वीयर अधिकार शहरी-एलीटिस्ट अवधारणाओं में नहीं है, जो केंद्र सरकार के दृष्टिकोण से भिन्न था.
– महाराष्ट्र गवर्नर का मामला: महाराष्ट्र गवर्नर के राज्य में सरकार गठन पर टिप्पणी करने पर CJI चंद्रचूड़ ने असहमति जताई. उन्होंने पूर्व गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी द्वारा फ्लोर टेस्ट बुलाने के निर्णय को गलत ठहराया, हालांकि, उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री के रूप में बहाल करने से इनकार कर दिया.
– सील कवर में प्रस्तुतियां: CJI ने सील कवर में प्रस्तुतियों की प्रथा की आलोचना की और पारदर्शिता पर जोर दिया. उन्होंने केंद्रीय सरकार द्वारा सील कवर में दिए गए सुझाव को अस्वीकार कर दिया, यह कहते हुए कि इससे पारदर्शिता की कमी होती है और यह दूसरी ओर को अंधेरे में छोड़ देता है.
– न्यायिक नियुक्तियाँ: CJI चंद्रचूड़ ने उच्च न्यायपालिका में नियुक्तियों के लिए सरकार द्वारा नामों को अस्वीकार करने की प्रथा की आलोचना की. उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि कोलेजियम की सिफारिशों को सरकार द्वारा अनिश्चितकाल तक रोका न जाए और चयनित न्यायाधीशों के नामों को त्वरित रूप से मंजूर किया जाए. CJI चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने अडानी ग्रुप पर हिन्डनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट के संबंध में केंद्र सरकार द्वारा सील कवर में दिए गए सुझाव को अस्वीकार कर दिया गया.
– चुनावी बॉन्ड्स मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सरकार की काफी किरकिरी हुई थी. मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से माना था कि केंद्र सरकार की 2018 चुनावी बॉन्ड योजना असंवैधानिक है. उन्होंने पाया कि यह योजना संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है. इसके अलावा, उन्होंने माना कि यह योजना अनुच्छेद 14 के तहत स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के सिद्धांतों का उल्लंघन करती है.