राजा शंकर शाह एवं कुंवर रघुनाथ शाह ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ संघर्ष करते हुए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया
"166वां बलिदान दिवस" भोपाल भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कई ऐसे वीरों का योगदान है, जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया। इन वीरों में गोंडवाना (गढ़ा कटंगा) साम्राज्य के राजा शंकर शाह और उनके पुत्र कुंवर रघुनाथ शाह का नाम अमर है। राजा शंकर शाह एवं कुंवर रघुनाथ […]
"166वां बलिदान दिवस"
भोपाल
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कई ऐसे वीरों का योगदान है, जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया। इन वीरों में गोंडवाना (गढ़ा कटंगा) साम्राज्य के राजा शंकर शाह और उनके पुत्र कुंवर रघुनाथ शाह का नाम अमर है। राजा शंकर शाह एवं कुंवर रघुनाथ शाह ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ संघर्ष करते हुए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। उनके बलिदान की पुण्य स्मृति में हर वर्ष 18 सितंबर को बलिदान दिवस के रूप में मनाया जाता है।
राजा शंकर शाह जबलपुर, मध्यप्रदेश के गोंड राजवंश के शासक थे। उनका जन्म गोंडवाना के वीर योद्धा परिवार में हुआ था। राजा शंकर शाह का शासन क्षेत्र वर्तमान मध्यप्रदेश के जबलपुर और उसके आसपास के क्षेत्रों तक फैला हुआ था। वह न केवल एक बहादुर राजा थे बल्कि अपने राज्य और प्रजा की स्वतंत्रता के प्रति बेहद संवेदनशील भी थे। उनके पुत्र कुंवर रघुनाथ शाह भी अपने पिता की तरह वीर और स्वराज प्रेमी थे।
राजा शंकर शाह ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की योजना बनाई थी। उनका मानना था कि अंग्रेज भारतीयों के स्वाभिमान और समृद्ध संस्कृति को नष्ट करने पर तुले हैं। उन्होंने अपने पुत्र कुंवर रघुनाथ शाह के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष का बिगुल फूंका। सन् 1857 के विद्रोह के दौरान जब पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की लहर चल रही थी, उसी समय राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह ने भी अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष की योजना बनाई। उन्होंने कविताओं और गीतों के माध्यम से जन-जागरण किया और जनता को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित किया, लेकिन उनकी गुप्त योजनाओं की भनक अंग्रेजों को लग गई।
राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह को अंग्रेजी सरकार ने 14 सितंबर 1858 को गिरफ्तार कर लिया। उन पर अंग्रेजों के खिलाफ षड्यंत्र रचने का आरोप लगाया गया। चार दिनों तक उन्हें कई प्रकार की यातनाएं दी गईं और आखिरकार 18 सितंबर 1858 को जबलपुर की कोतवाली के सामने सार्वजनिक रूप से दोनों वीरों को तोप के मुँह से बांधकर उड़ा दिया गया। इस प्रकार दोनों ही वीर देश के नाम शहीद हो गये।
राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह का बलिदान न केवल गोंडवाना के इतिहास में बल्कि पूरे भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अद्वितीय स्थान रखता है। उनका संघर्ष और बलिदान हमें यह सिखाता है कि मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए प्रोणोत्सर्ग भी कुछ नहीं है। उनका यह त्याग आने वाली पीढ़ियों के लिए सदैव प्रेरणा स्रोत बना रहेगा।
दोनों वीर रणबांकुरों राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस पर हर साल 18 सितंबर को मध्यप्रदेश सहित पूरे देश में श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है। उनके योगदान को याद कर हम यह संकल्प लेते हैं कि देश की स्वतंत्रता, अखंडता और समरसता बनाए रखने के लिए हमें भी उनके दिखाये मार्ग पर चलना होगा। उनका जीवन, साहस और बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है, जो सदियों तक भारतवासियों को प्रेरणा देता रहेगा।
अमर शहीदों के सम्मान में……
1. राज्य सरकार द्वारा हर साल 18 सितम्बर को "बलिदान दिवस" मनाया जा रहा है।
2. राज्य सरकार द्वारा छिन्दवाड़ा विश्वविद्यालय का नामकरण "राजा शंकर शाह विश्वविद्यालय" किया गया है।
3. अमर शहीद राजा शंकर शाह एवं कुंवर रघुनाथ शाह के बलिदान की याद में केन्द्र व राज्य सरकार के संयुक्त प्रयासों से जबलपुर में करोड़ों रूपये की लागत से "संग्रहालय सह स्मारक" का निर्माण कराया जा रहा है।
4. राज्य सरकार के स्वराज संस्थान द्वारा इन जनजातीय नायकों के जीवन पर एलबम भी तैयार किया गया है।