रीवा में डे-एनयूएलएम से मनजीत सिंह और मुकेश साहू के जीवन में आया बदलाव
भोपाल दीनदयाल अंत्योदय योजना राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (डे-एनयूएलएम) प्रदेश में शहरी क्षेत्रों में रहने वाले निर्धन परिवारों के लिये…
भोपाल
दीनदयाल अंत्योदय योजना राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (डे-एनयूएलएम) प्रदेश में शहरी क्षेत्रों में रहने वाले निर्धन परिवारों के लिये मददगार साबित हुई है। राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन के माध्यम से शहरी क्षेत्रों में पथ विक्रेताओं और छोटा व्यवसाय करने वालों को आर्थिक मदद देकर उन्हें फायदा पहुँचाया जा रहा है। इस योजना से रीवा के मंजीत सिंह और मुकेश साहू के जीवन में बदलाव आया है। उनकी आर्थिक स्थिति ठीक होने से समाज में उनकी प्रतिष्ठा बढ़ी है।
मंजीत सिंह
रीवा के मंजीत सिंह एक निर्धन परिवार से ताल्लुक रखते हैं। मंजीत के सिर से बचपन में पिता का साया उठ गया था। इसके बाद परिवार की सारी जिम्मेदारी मंजीत के ऊपर ही थी। इस वजह से मंजीत सिंह कम उम्र से ही अपने परिवार का भरण पोषण करने के लिये दूसरों की दुकान पर कार्य करने लगे। उनके मन में इच्छा थी कि वे अपना स्वयं का व्यापार करे। कुछ पैसों की मदद के बाद मंजीत कपड़े की फैरी करने लगे और गली-गली सायकल से कपड़े का व्यवसाय करने लगे। कई वर्षों के बाद भी उनकी आमदनी में कोई खास परिवर्तन नहीं आ पाया।
इसके बाद उन्होंने बाजार में कपड़े की दुकान खोलने का फैसला किया। पूंजी की कमी के कारण व्यवसाय शुरू करने में उन्हें दिक्कत हुई। इसके बाद मंजीत ने दीनदयाल अंत्योदय योजना में रीवा नगर निगम में ऋण के बारे में पता किया। उनके दिये गये आवेदन पर परीक्षण के बाद 2 लाख रूपये का ऋण मंजूर हुआ। आज वे खुद की कपड़े की दुकान सफलतापूर्वक चला रहे हैं। उनका परिवार खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहा है।
मुकेश साहू
मुकेश साहू रीवा के वार्ड नं.-1 निपनिया में अपने परिवार के साथ रहकर जीवनयापन कर रहे हैं। उनके परिवार में कुल 4 सदस्य हैं। मुकेश साहू बताते हैं कि वे काफी पहले से आइस्क्रीम का व्यवसाय कर रहे थे। कोरोना काल में लॉकडाउन के कारण उनकी दुकान काफी समय तक बंद रही। उनके पास थोड़ी बहुत पूंजी थी जो विपरीत परिस्थितियों में परिवार के भरण-पोषण के कारण खत्म हो गई। ऐसे वक्त में उनके पास गरीबी रेखा का कार्ड था। खाद्यान्न पर्ची से उन्हें प्रतिमाह अनाज मिलता रहा।
मुकेश साहू ने अपनी पुरानी आइस्क्रीम की दुकान को दुबारा से चलाने का विचार बनाया। इसके लिये उन्हें पूंजी की आवश्यकता थी। उन्होंने नगर निगम रीवा में सम्पर्क किया और उनके ऋण प्रकरण में परीक्षण के बाद यूनियन बैंक ऑफ इंडिया से 50 हजार रूपये का ऋण प्राप्त हुआ। उन्होंने दुकान शुरू कर अपने परिवार को आर्थिक मजबूती दी। आज वे बैंक की अधिकांश किश्ते जमा कर चुके हैं। नगरीय प्रशासन विभाग की योजना से मिली मदद आज उनकी समाज में प्रतिष्ठा भी बढ़ी है।