अगर मृतक के आश्रितों ने सभाला कारोबार तो दुर्घटना मुआवजे को कम नहीं किया जायेगा: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक अहम फैसले में कहा है कि अगर किसी मृतक के आश्रितों (बेटे या बेटियों) ने उसके कारोबार को संभाल लिया तो इस आधार पर मोटर दुर्घटना मुआवजे को कम नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने इसके साथ ही हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया और मोटर एक्सिडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल (MACT) द्वारा निर्धारित बीमा राशि का भुगतान करने का आदेश दिया। जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि मुआवजे के दावों का आकलन करते समय मृतक के व्यवसाय में योगदान पर विचार किया जाना चाहिए। पीठ ने इस फैसले के साथ ही एक मृतक दंपत्ति की बेटियों को बड़ी राहत दी है, जिन्होंने हाई कोर्ट के फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी। मामले में मृतक दंपत्ति एक व्यवसाय चलाते थे और सड़क दुर्घटना में उनकी मौत हो गई थी। इसके बाद उनकी बेटियों ने दोनों (माता-पिता) के लिए एक-एक करोड़ के मुआवजे की मांग की थी। लाइव लॉ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, MACT ने उनके आवेदन पर विचार करने के बाद मृतक पिता के लिए 58.24 लाख और माता के लिए 93.61 लाख रुपये का मुआवजा तय किया और कहा कि 7.5% वार्षिक ब्याज के साथ इस राशि का बुगतान किया जाए। इस फैसले खिलाफ ओरिएंटल इंश्योरेंस से हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और तर्क दिया कि चूंकि मृतकों की बेटियों ने कारोबार संभाल लिया है, इसलिए उनकी क्षति का आंकलन कम करके आंका जाय। इस पर मद्रास हाई कोर्ट ने बेटियों द्वारा व्यवसाय को अपने हाथ में लेने के कारण न्यूनतम वित्तीय नुकसान का हवाला देते हुए MCAT द्वारा तय क्लेम राशि को घटाकर 26.68 लाख और 19.22 लाख रुपये कर दिया। इसके बाद पीड़ित बेटी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में इस बात पर विचार किया कि क्या हाई कोर्ट द्वारा मुआवजा राशि कम करना और उसके पीछे के तर्क सही हैं। जस्टिस अमानुल्लाह ने फैसले में हाई कोर्ट के निर्णय को पलट दिया और लिखा कि इसने व्यवसाय की स्थापना में मृतक व्यक्तियों के योगदान को नजरअंदाज कर दिया।न्यायालय ने इस बात पर भी जोर दिया कि अपीलकर्ता के अनुभव और परिपक्वता की कमी के कारण, उन्हें कम उम्र में व्यवसाय को स्थापित करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ा होगा, जिससे उनके लाभ में गिरावट आई होगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुआवजा तय करने के कारकों को निर्धारित करने में सही रुख नहीं दिखाया गया है। इसलिए इंश्योरेंस कंपनी को MACT द्वारा तय मुआवजे का भुगतान करना होगा। बता दें कि याचिकाकर्ता विष्णु गंगा के माता-पिता की साल 2007 में एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी, जब वे दोनों एक टेम्पो से जा रहे थे, तभी दूसरी तरफ से आ रही एक बस ने उन्हें टक्कर मार दी थी। अपने माता पिता की मौत के बाद गंगा ने दोनों के लिए एक-एक करोड़ के मुआवजे का दावा ठोका था।

Feb 1, 2025 - 00:00
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अगर मृतक के आश्रितों ने सभाला कारोबार तो दुर्घटना मुआवजे को कम नहीं किया जायेगा: सुप्रीम कोर्ट

अगर-मृतक-के-आश्रितों-ने-सभाला-कारोबार-तो-दुर्घटना-मुआवजे-को-कम-नहीं-किया-जायेगा:-सुप्रीम-कोर्ट

नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक अहम फैसले में कहा है कि अगर किसी मृतक के आश्रितों (बेटे या बेटियों) ने उसके कारोबार को संभाल लिया तो इस आधार पर मोटर दुर्घटना मुआवजे को कम नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने इसके साथ ही हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया और मोटर एक्सिडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल (MACT) द्वारा निर्धारित बीमा राशि का भुगतान करने का आदेश दिया।

जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि मुआवजे के दावों का आकलन करते समय मृतक के व्यवसाय में योगदान पर विचार किया जाना चाहिए। पीठ ने इस फैसले के साथ ही एक मृतक दंपत्ति की बेटियों को बड़ी राहत दी है, जिन्होंने हाई कोर्ट के फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी। मामले में मृतक दंपत्ति एक व्यवसाय चलाते थे और सड़क दुर्घटना में उनकी मौत हो गई थी। इसके बाद उनकी बेटियों ने दोनों (माता-पिता) के लिए एक-एक करोड़ के मुआवजे की मांग की थी।

लाइव लॉ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, MACT ने उनके आवेदन पर विचार करने के बाद मृतक पिता के लिए 58.24 लाख और माता के लिए 93.61 लाख रुपये का मुआवजा तय किया और कहा कि 7.5% वार्षिक ब्याज के साथ इस राशि का बुगतान किया जाए। इस फैसले खिलाफ ओरिएंटल इंश्योरेंस से हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और तर्क दिया कि चूंकि मृतकों की बेटियों ने कारोबार संभाल लिया है, इसलिए उनकी क्षति का आंकलन कम करके आंका जाय।

इस पर मद्रास हाई कोर्ट ने बेटियों द्वारा व्यवसाय को अपने हाथ में लेने के कारण न्यूनतम वित्तीय नुकसान का हवाला देते हुए MCAT द्वारा तय क्लेम राशि को घटाकर 26.68 लाख और 19.22 लाख रुपये कर दिया। इसके बाद पीड़ित बेटी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में इस बात पर विचार किया कि क्या हाई कोर्ट द्वारा मुआवजा राशि कम करना और उसके पीछे के तर्क सही हैं।

जस्टिस अमानुल्लाह ने फैसले में हाई कोर्ट के निर्णय को पलट दिया और लिखा कि इसने व्यवसाय की स्थापना में मृतक व्यक्तियों के योगदान को नजरअंदाज कर दिया।न्यायालय ने इस बात पर भी जोर दिया कि अपीलकर्ता के अनुभव और परिपक्वता की कमी के कारण, उन्हें कम उम्र में व्यवसाय को स्थापित करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ा होगा, जिससे उनके लाभ में गिरावट आई होगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुआवजा तय करने के कारकों को निर्धारित करने में सही रुख नहीं दिखाया गया है। इसलिए इंश्योरेंस कंपनी को MACT द्वारा तय मुआवजे का भुगतान करना होगा।

बता दें कि याचिकाकर्ता विष्णु गंगा के माता-पिता की साल 2007 में एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी, जब वे दोनों एक टेम्पो से जा रहे थे, तभी दूसरी तरफ से आ रही एक बस ने उन्हें टक्कर मार दी थी। अपने माता पिता की मौत के बाद गंगा ने दोनों के लिए एक-एक करोड़ के मुआवजे का दावा ठोका था।

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