हाईकोर्ट ने कहा है वक्फ बोर्ड बुरहानपुर के किले में मौजूद स्मारकों पर मालिकाना हक नहीं जता सकता
बुरहानपुर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि वक्फ बोर्ड बुरहानपुर के किले में मौजूद उन स्मारकों पर मालिकाना हक नहीं जता सकता, जिन्हें केंद्र सरकार पहले ही 'प्राचीन और संरक्षित' घोषित कर चुकी है। यह विवाद शाह शुजा के मकबरे, नादिर शाह के मकबरे और किले में स्थित बीबी साहिबा […]
बुरहानपुर
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि वक्फ बोर्ड बुरहानपुर के किले में मौजूद उन स्मारकों पर मालिकाना हक नहीं जता सकता, जिन्हें केंद्र सरकार पहले ही 'प्राचीन और संरक्षित' घोषित कर चुकी है। यह विवाद शाह शुजा के मकबरे, नादिर शाह के मकबरे और किले में स्थित बीबी साहिबा मस्जिद को लेकर था। जस्टिस गुरपाल सिंह अहलूवालिया की बेंच ने अपने फैसले में कहा कि विवादित स्मारकों को प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम, 1904 की धारा 1(1) (प्राचीन स्मारक घोषित) और धारा 3(1) (संरक्षित स्मारक घोषित) के तहत संरक्षण दिया गया था।
केंद्र सरकार की है संपत्ति
ऐसे में वक्फ बोर्ड वक्फ अधिनियम, 1995 की धारा 5 (2) के तहत इन्हें वक्फ संपत्ति घोषित करते हुए कोई और अधिसूचना जारी नहीं कर सकता। कोर्ट ने जोर देकर कहा कि विवादित संपत्ति को पहले ही वर्ष 1913 और 1925 में प्राचीन स्मारक और संरक्षित स्मारक घोषित किया जा चुका था। इस प्रकार, उक्त अधिसूचना जारी होने के बाद, संपत्ति अब आयुक्त की संरक्षकता में है और संपत्ति केंद्र सरकार की है । साथ ही यह भी कहा कि 1995 का कानून लागू होने पर ये संपत्तियां 'मौजूदा वक्फ संपत्तियां' नहीं थीं।
वक्फ बोर्ड की नहीं है संपत्ति
सिंगल बेंच ने आगे कहा कि जब तक 1904 के अधिनियम की धारा 14 के तहत मुख्य आयुक्त संपत्ति पर अपनी संरक्षकता नहीं छोड़ देते, तब तक बोर्ड की अधिसूचना प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम के तहत जारी की गई अधिसूचनाओं को रद्द नहीं करेगी। अदालत ने आगे कहा कि उस संपत्ति के संबंध में जारी की गई एक गलत अधिसूचना, जो वक्फ अधिनियम के प्रारंभ होने की तारीख को मौजूदा वक्फ संपत्ति नहीं है, उसे वक्फ संपत्ति नहीं बनाएगी। साथ ही यह भी कहा कि ऐसी अधिसूचना अपने आप 1904 के अधिनियम के तहत जारी की गई अधिसूचनाओं को रद्द नहीं करेगी।
केंद्र का ही रहेगा कब्जा
इसलिए, अदालत ने यह व्यवस्था दी कि बोर्ड विवादित प्राचीन और संरक्षित स्मारकों से केंद्र सरकार को बेदखल करने की मांग सही तरीके से नहीं कर सकता है।
शाहजहां की बहू का है मकबरा
ऐसा कहा जाता है कि शाह शुजा का मकबरा बेगम बिलकिस का मकबरा है जो शाहजहां की बहू थीं। प्रत्न समीक्षा, पुरातत्व का एक जर्नल, खंड 11 के अनुसार, फारुकी वंश के दसवें सुल्तान मुहम्मद शाह फारुकी II के मकबरे को गलती से नादिर शाह का मकबरा बताया जाता है। इसी तरह, बीबी साहेबा मस्जिद संभवतः गुजरात के सुल्तान की बेटी रानी बेगम रुकैया ने बनवाई थी।
मध्य प्रदेश वक्फ बोर्ड के सीईओ ने 2013 में एक आदेश जारी कर इन स्मारकों को 1995 के अधिनियम के आधार पर वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया था। केंद्र सरकार ने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हालांकि बोर्ड की ओर से पेश हुए वकील ने तर्क दिया कि इस मामले को पहले वक्फ ट्रिब्यूनल के समक्ष अपील में सुना जाना चाहिए था।
इन तीन इमारतों पर विवाद
एएसआई की तरफ से कहा गया है कि शाह शुजा स्मारक, नादिर शाह का मकबरा और बुरहानपुर के किले में स्थित बीबी साहिबा की मस्जिद भी प्राचीन और संरक्षित स्मारक हैं. शाह शुजा स्मारक मुगल सम्राट शाहजहां के बेटे शाह शुजा की पत्नी बेगम बिलकिस की कब्र है.
बेगम बिलकिस की बेटी के जन्म देते समय मौत हो गई थी, जिसे बुरहानपुर में दफनाया गया था. एएसआई ने कहा कि जब इन स्मारकों से प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम 1904 के तहत संरक्षणकता छोड़ी नहीं गई तो इसे वक्फ बोर्ड कैसे अपनी संपत्ति घोषित कर सकता है.
इसपर दूसरे पक्ष की तरफ से जवाब दिया गया कि जब सीईओ ने संपत्ति को वक्फ बोर्ड की संपत्ति घोषित कर दिया था तो उनके पास इसे खाली कराने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. कोर्ट की तरफ से कहा गया कि इस संपत्ति के संबंध में गलत अधिसूचना जारी की गई. वक्फ बोर्ड की अधिसूचना विवादित संपत्ति पर केंद्र सरकार का स्वामित्व नहीं छीनेगी.
वक्फ बोर्ड ने 2013 में इन्हे घोषित किया था अपनी संपत्ति :
मध्यप्रदेश वक्फ बोर्ड द्वारा, साल 2013 में इन स्मारकों को आदेश जारी अपनी संपत्ति घोषित की थी। केंद्र सरकार ने वक्फ बोर्ड के इस आदेश को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट का रुख किया था।