डायनासोरों को खत्म करने वाला एस्टेरॉयड दूसरी दुनिया से आया था – वैज्ञानिकों का नया खुलासा
नईदिल्ली लगभग 66 मिलियन साल पहले, एक भयानक विस्फोट ने पृथ्वी पर जीवन को तहस-नहस कर दिया था. धरती पर मौजूद सभी जीवों और पौधों में से एक-चौथाई नष्ट हो गए थे. वह धमाका एक एस्टेरॉयड के पृथ्वी से टकराने के चलते हुआ था. वह टक्कर इतनी भयानक थी कि मेक्सिको के पास 145 […]
नईदिल्ली
लगभग 66 मिलियन साल पहले, एक भयानक विस्फोट ने पृथ्वी पर जीवन को तहस-नहस कर दिया था. धरती पर मौजूद सभी जीवों और पौधों में से एक-चौथाई नष्ट हो गए थे. वह धमाका एक एस्टेरॉयड के पृथ्वी से टकराने के चलते हुआ था. वह टक्कर इतनी भयानक थी कि मेक्सिको के पास 145 किलोमीटर चौड़ा गड्डा हो गया था. आज हम उसे चिकशुलूब क्रेटर के नाम से जानते हैं. नई रिसर्च बताती है कि डायनासोर समेत कई प्रजातियों का अंत करने वाली वह घटना बृहस्पति से परे मौजूद एक क्षुद्रग्रह से हुई एक दुर्लभ टक्कर थी.
चिकशुलूब क्रेटर के बारे में अधिकतर वैज्ञानिक मानते थे कि यह गड्ढा जिस चट्टान से बना, वह हमारे सौरमंडल के भीतर से ही आई थी. लेकिन कहां से? साफ तौर पर इसका पता नहीं चल पा रहा था. अब क्रेटर के अवशेषों की जांच के बाद, वैज्ञानिकों ने पाया है कि रूथेनियम नामक एक दुर्लभ तत्व की रासायनिक संरचना मंगल और बृहस्पति की कक्षाओं के बीच मंडरा रहे एस्टेरॉयड्स के समान है. इस रिसर्च के नतीजे 15 अगस्त को 'साइंस' पत्रिका में छपे हैं.
वैज्ञानिकों ने प्राचीन मलबे की स्टडी करके यह पता किया कि एस्टेरॉयड किस चीज का बना था. यह एस्टेरॉयड कार्बोनेसियस था. यानी सी-टाइप. मतलब ये कि इसमें कार्बन की मात्रा बहुत ज्यादा थी. जर्मनी स्थिति यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोन के जियोकेमिस्ट मारियो फिशर गोड्डे और उनके साथियों ने यह स्टडी की है.
सौर मंडल के बाहर से आया था एस्टेरॉयड
मारियो ने बताया कि वह एस्टेरॉयड हमारे सौर मंडल में मौजूद एस्टेरॉयड से मिलता नहीं है. यह बाहर से आया था. इसी ने डायनासोरों की जिंदगी खत्म कर दी. यह स्टडी हाल ही में नेचर जर्नल में प्रकाशित हुई है. इसी एस्टेरॉयड की टक्कर के बाद से क्रिटेसियस काल खत्म हो गया था. चिक्सूलूब क्रेटर बना था. छोटा-मोटा नहीं था ये गड्ढा.
180 km चौड़ा और 20 km गहरा गड्ढा बना था
यह 180 किलोमीटर चौड़ा, 20 किलोमीटर गहरा था. सोचिए कि एक कार्बन एस्टेरॉयड की टक्कर कितनी खतरनाक हो सकती है. इससे जो मलबा उड़ा आज वो क्ले बनकर कई जगहों पर जमा है. जिसमें इरिडियम, रूथेनियम, ओसमियम, रोडियम, प्लेटिनम और पैलेडियम मिल रहा है.
विशेष धातु की वजह से हुई एस्टेरॉयड की पहचान
ये सारे धातु धरती पर दुर्लभ हैं, लेकिन एस्टेरॉयड्स में कॉमन होते हैं. वैज्ञानिकों ने रूथेनियम पर खास ध्यान दिया. क्ले में मौजूद रूथेनियम की मात्रा की जांच की. इस धातु के सात आइसोटोप्स हैं. तीन तो टक्कर से निकले मलबे में मिले. ये आइसोटोप्स इस बात की पुष्टि करते हैं कि टकराने वाला एस्टेरॉयड कार्बन से भरा हुआ था.
कितने प्रकार के होते हैं एस्टेरॉयड्स?
रूथेनियम से भरे हुए एस्टेरॉयड हमारे सौर मंडल में कम मिलते है. इसमें जो आइसोटोप्स मिले हैं, वो सौर मंडल के बाहर से आए किसी एस्टेरॉयड के लगते हैं. सी-टाइप एस्टेरॉयड सौर मंडल के सबसे प्राचीन पदार्थ हैं. सबसे ज्यादा कॉमन भी हैं. इसके बाद पत्थर से भरे एस-टाइप और भी दुर्लभ धातुओं से भरे एम-टाइप एस्टेरॉयड आते हैं.
सी-टाइप एस्टेरॉयड्स में सौर मंडल के बनने के सबूत मिलते हैं. ये सौर मंडल के बाहर थे. बाद में धीरे-धीरे कुछ सौर मंडल के अंदर आ गए. जो आमतौर पर मंगल और बृहस्पति ग्रह के बीच बने एस्टेरॉयड बेल्ट में घूमते रहते हैं. लेकिन डायनासोरों को खत्म करने वाला एस्टेरॉयड सीधे सौर मंडल के बाहर से आया था.
एस्टेरॉयड्स में कहां से आया रूथेनियम?
रूथेनियम बेहद दुर्लभ और स्थित तत्व है. वैज्ञानिकों के अनुसार, यह तत्व तारों की पिछली पीढ़ियों के भीतर बना था और जब उनकी विस्फोटक मौत हुई तो यह आसपास फैल गया. यह दुर्लभ तत्व आखिरकार हमारे सौर मंडल में मौजूद ग्रहों और क्षुद्रग्रहों (एस्टेरॉयड्स) में समा गया. पृथ्वी पर, यह ग्रह के भीतर बहुत गहराई में डूब गया था. चिकशुलूब क्रेटर, पृथ्वी पर सौरमंडल के बाहरी हिस्से में स्थित एस्टेरॉयड से बना एकमात्र ज्ञात इम्पैक्ट क्रेटर है.