टीनएजर लड़कियां यौन इच्छाओं पर नियंत्रण रखें ‘, कलकत्ता HC की टिप्पणी को SC ने किया दरकिनार
नई दिल्ली किशोरियों को सेक्स की इच्छा पर काबू रखने की सलाह देने वाले कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया है। शीर्ष न्यायालय ने नाबालिग से बलात्कार के आरोपी का फिर से दोषी करार दिया है। हाईकोर्ट की तरफ से किशोरियों की दी गई सलाह पर सुप्रीम कोर्ट ने आपत्ति […]
नई दिल्ली
किशोरियों को सेक्स की इच्छा पर काबू रखने की सलाह देने वाले कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया है। शीर्ष न्यायालय ने नाबालिग से बलात्कार के आरोपी का फिर से दोषी करार दिया है। हाईकोर्ट की तरफ से किशोरियों की दी गई सलाह पर सुप्रीम कोर्ट ने आपत्ति जताई थी और स्वत: संज्ञान लिया था। इससे पहले निचली अदालत की तरफ से भी दोषी करार दिया था।
नाबालिग से बलात्कार के आरोपी की दोषसिद्धि को सुप्रीम कोर्ट ने बहाल कर दिया है। खास बात है कि दोषी अपराध के बाद नाबालिग के साथ रहने लगा था और दोनों का एक बच्चा भी है। कोर्ट ने पीड़िता से बातचीत के लिए एक समिति भी गठित की है, ताकि पता लगाया जा सके कि वह आरोपी के साथ रहना चाहती है या नहीं। कमेटी की तरफ से पश्चिम बंगाल सरकार को रिपोर्ट सौंपने के बाद सजा तय की जाएगी।
मंगलवार को मामले की सुनवाई जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस उज्जल भुइयां कर रहे थे। जस्टिस ओक ने कहा, 'हमने धारा 376 के तहत दोष बहाल कर दिया है। कमेटी सजा पर फैसला लेगी। हमने राज्यों को निर्देश दे दिए हैं…।' उन्होंने कहा, 'इस मामले को जेजे बोर्ड को भेजा जाना चाहिए। हमने कहा था कि कैसे फैसला लिखा जाना चाहिए। हमने सभी राज्यों को जेजे एक्ट की धारा 19(6) को लागू करने के निर्देश दिए हैं। हमने तीन एक्सपर्ट्स की समिति भी गठित की है।'
शीर्ष अदालत ने पिछले साल आठ दिसंबर को फैसले की आलोचना की थी और इसे उच्च न्यायालय की 'बिल्कुल आपत्तिजनक और गैर जरूरी' टिप्पणी करार दी थी। उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय की कुछ टिप्पणियों का स्वत: संज्ञान लिया था और उसपर रिट याचिका के रूप में सुनवाई शुरू की थी। शीर्ष अदालत ने कहा था कि फैसला लिखते वक्त न्यायाधीशों से 'उपदेश' की उम्मीद नहीं की जाती है।
क्या बोला था हाईकोर्ट
18 अक्टूबर 2023 के आदेश में हाईकोर्ट ने कहा था कि किशोरियों को 'यौन इच्छाओं पर काबू' करना चाहिए, क्योंकि 'जब वे दो मिनट के सुख के लिए ऐसा करती हैं, तो समाज की नजरों में लूजर साबित हो जाती हैं।' अदालत ने आरोपी को बरी कर दिया था। जबकि, इससे पहले निचली अदालत उसे दोषी करार दिया था।