मायावती पर बीजेपी विधायक की टिप्पणी से अखिलेश हुए लाल, बुआ-भतीजा के साथ आने की बढ़ीं अटकलें?
लखनऊ/नई दिल्ली. उत्तर प्रदेश के सियासी गलियारों में सपा-बसपा के फिर एक साथ आने की अटकलें तेज हो गई हैं। इसकी वजह अखिलेश यादव और मायावती के ताजा बयान हैं। अखिलेश यादव ने मायावती पर आपत्तिजनक टिप्पणी को लेकर भाजपा विधायक को आड़े हाथों लिया तो मायावती ने भी अखिलेश के प्रति आभार जताया है। […]
लखनऊ/नई दिल्ली.
उत्तर प्रदेश के सियासी गलियारों में सपा-बसपा के फिर एक साथ आने की अटकलें तेज हो गई हैं। इसकी वजह अखिलेश यादव और मायावती के ताजा बयान हैं। अखिलेश यादव ने मायावती पर आपत्तिजनक टिप्पणी को लेकर भाजपा विधायक को आड़े हाथों लिया तो मायावती ने भी अखिलेश के प्रति आभार जताया है।
इसके बाद समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव रामअचल राजभर ने यह दावा करके हलचल मचा दी कि सामाजिक न्याय के मुद्दे पर अगले विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव और मायावती फिर से साथ आ सकते हैं। अब आपको बताते हैं कि आखिर अचानक से उत्तर प्रदेश की सियासत में यह नया राग क्यों और कैसे शुरू हो गया है। अखिलेश यादव ने 23 अगस्त को सोशल मीडिया प्लेटफार्म 'एक्स' पर एक पोस्ट कर एक टीवी चैनल के डिबेट शो की एक वीडियो क्लिप शेयर करते हुए बसपा प्रमुख मायावती के खिलाफ भाजपा के एक विधायक की आपत्तिजनक टिप्पणियों पर नाराजगी जताई थी। अखिलेश ने पोस्ट में कहा कि उत्तर प्रदेश के एक भाजपा विधायक द्वारा राज्य की एक पूर्व महिला मुख्यमंत्री जी (मायावती) के प्रति कहे गये अभद्र शब्द दर्शाते हैं कि भाजपा नेताओं के मन में महिलाओं और खासतौर से वंचित-शोषित समाज से संबंध रखने वालों के प्रति कितनी कटुता भरी है। उन्होंने लिखा कि राजनीतिक मतभेद अपनी जगह होते हैं, लेकिन एक महिला के रूप में उनका मान-सम्मान खंडित करने का किसी को भी अधिकार नहीं है। सपा अध्यक्ष ने भाजपा विधायक के खिलाफ मानहानि का मुकदमा चलाए जाने की मांग भी की।
उन्होंने कहा कि भाजपा नेता कह रहे हैं कि उन्हें मुख्यमंत्री बनाकर हमने गलती की थी, यह भी लोकतांत्रिक देश में जनमत का अपमान है और बिना किसी आधार के ये आरोप लगाना भी बेहद आपत्तिजनक है कि वह सबसे भ्रष्ट मुख्यमंत्री थीं। अखिलेश यादव यहीं नहीं रुके। कहा कि भाजपा ऐसे विधायकों को प्रश्रय देकर महिलाओं के मान-सम्मान को गहरी ठेस पहुंचा रही है। अगर ऐसे लोगों के खिलाफ भाजपा तुरंत अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं करती है तो मान लेना चाहिए कि ये किसी एक विधायक का व्यक्तिगत विचार नहीं है बल्कि पूरी भाजपा का विचार है। यह घोर निंदनीय है। सपा मुखिया के इस बयान पर बसपा प्रमुख मायावती ने उनके प्रति आभार जताया। मायावती ने 'एक्स' पर अपनी पोस्ट में लिखा- 'सपा मुखिया ने मथुरा जिले के एक भाजपा विधायक को उनके गलत आरोपों का जवाब देकर बीएसपी. प्रमुख के ईमानदार होने के बारे में सच्चाई को माना है, उसके लिए पार्टी आभारी है। पार्टी को भाजपा के इस विधायक के बारे में ऐसा लगता है कि उसकी अब भाजपा में कोई पूछ नहीं रही है। इसलिए वह बसपा प्रमुख के बारे में अनाप-शनाप बयानबाजी करके सुर्खियों में आना चाहता है, जो अति-दुर्भाग्यपूर्ण है। जबकि भाजपा को चाहिए कि वह उसके विरुद्ध सख्त कार्रवाई करे और यदि वह दिमाग़ी तौर पर बीमार है तो उसका इलाज भी जरूर कराए, वरना इसके पीछे बीजेपी का कोई षडयन्त्र ही नजर आता है, यह कहना भी गलत नहीं होगा। यदि भाजपा अपने विधायक के विरुद्ध कोई भी सख़्त कार्रवाई नहीं करती है तो फिर इसका जवाब पार्टी के लोग अगले विधानसभा चुनाव में उसकी ज़मानत जब्त करा कर तथा वर्तमान में होने वाले 10 उपचुनावों में भी इस पार्टी को जरूर देंगे।
अटकलें हुईं तेज —
सपा मुखिया और बसपा प्रमुख के इन बयानों के सामने आने के बाद राजनीतिक गलियारों में दोनों के एक बार फिर साथ आने की संभावनाएं जताई जाने लगीं। इस बीच वाराणसी पहुंचे सपा के राष्ट्रीय महासचिव रामअचल राजभर ने कहा कि वर्तमान में सामाजिक न्याय का मुद्दा बहुत ही ज्वलंत है। उन्होंने कहा कि जिस तरीके से सत्ताधारी दल सामाजिक न्याय का हनन कर रहा है उसे देखते हुए सभी राजनीतिक दलों को एक हो जाना चाहिए।
2019 में सपा-बसपा ने साथ लड़ा था लोकसभा चुनाव –
बता दें कि सपा-बसपा 2019 में गठबंधन में लोकसभा चुनाव लड़ चुकी हैं लेकिन बाद में दोनों की राह जुदा हो गई। हाल के आम चुनाव में कांग्रेस की कोशिश थी कि इंडिया गठबंधन में बसपा भी शामिल हो लेकिन बात बनीं नहीं। अखिलेश और मायावती वर्तमान दौर में एक-दूसरे के धुर विरोधी माने जाते हैं। ऐसे में अचानक दोनों नेताओं का सुर बदलना राजनीतिक क्षेत्र में चर्चाओं का विषय बना हुआ है। मायावती को लेकर की गई प्रतिकूल टिप्पणी पर अखिलेश का उनके साथ आना दलितों का साथ पाने के रूप में ही देखा जा रहा है। 2019 के चुनाव में एनडीए और भाजपा को 2014 की तुलना में यूपी में नौ सीटों का नुकसान झेलना पड़ा था। हालांकि अखिलेश यादव को इससे कोई फायदा या नुकसान नहीं हुआ था। सपा ने उस चुनाव में भी 5 सीटों पर जीत हासिल की थी। बसपा जो 2014 में एक भी सीट नहीं जीत सकी थी, उसे 2019 में 10 सीटों पर जीत मिली थी।