चीन और रूस के बीच बढ़ती दोस्ती पर ताइवान ने तीखा तंज कसा, कहा जिनपिंग को अपनी 10 लाख वर्ग किमी जमीन वापस लेना चाहिए
मास्को/ बीजिंग चीन और रूस के बीच बढ़ती दोस्ती पर अब ताइवान ने बहुत तीखा तंज कसा है। ताइवान के राष्ट्रपति लाई चिंग ते ने कहा है कि अगर चीन का ताइवान पर दावा क्षेत्रीय अखंडता से जुड़ा है तो बीजिंग की सरकार को रूस से अपनी 10 लाख वर्ग किमी जमीन को वापस लेना […]
मास्को/ बीजिंग
चीन और रूस के बीच बढ़ती दोस्ती पर अब ताइवान ने बहुत तीखा तंज कसा है। ताइवान के राष्ट्रपति लाई चिंग ते ने कहा है कि अगर चीन का ताइवान पर दावा क्षेत्रीय अखंडता से जुड़ा है तो बीजिंग की सरकार को रूस से अपनी 10 लाख वर्ग किमी जमीन को वापस लेना चाहिए। लाई ने कहा कि रूस इस समय सबसे कमजोर है और चीन के लिए यही बढ़िया मौका है कि वह अपनी जमीन को वापस ले ले। चीन का दावा है कि ताइवान उसका इलाका है और वह किसी भी कीमत पर उसे वापस लेकर रहेगा। ताइवानी राष्ट्रपति के इस बयान से रूस और चीन के बीच सीमा विवाद को एक बार फिर से ताजा कर दिया है। आइए जानते हैं पूरा विवाद जब चीन को सदी की सबसे बड़ी शर्मिंदगी झेलनी पड़ी थी और उसकी कसक आज तक बनी हुई। उधर, रूस की सेना ने तो चीन से निपटने की पूरी तैयारी तक कर रखी है।
रूस और चीन के बीच सीमा विवाद की जड़ में साल 1858 में हुई संधि है। यह संधि दूसरे अफीम युद्ध में चीन की हार के बीच रूसी साम्राज्य और यिशान के बीच हुई थी। यिशान चीन के क्विंग साम्राज्य का अधिकारी था। इस संधि ने रूस और चीन के बीच आधुनिक सीमा का रास्ता साफ किया। इस संधि के बाद रूस को चीन की 10 लाख वर्ग किमी की जमीन मिल गई थी। इसमें स्टानोवोय रेंज से लेकर अमूर नदी तक का इलाका शामिल है। इसमें हैशेंगवेई शामिल है जिसे आज रूस का व्लादिवोस्तोक शहर कहा जाता है। क्विंग सरकार ने शुरू में इस संधि को मान्यता देने से इंकार कर दिया था लेकिन साल 1860 में इसे मंजूरी देना पड़ा। चीन ने इसे आज भी एक असमान संधि करार देता है जिसे उसे 19वीं सदी में विदेशी ताकतों से करना पड़ा।
चीन के राष्ट्रवादी रूस से मांग रहे व्लादिवोस्तोक
क्विंग साम्राज्य ने साल 1895 में एक और 'असमान' संधि की और ताइवान को जापान को सौंप दिया। साल 145 में दूसरे विश्वयुद्ध के अंत में ताइवान को चीन गणराज्य को सौंप दिया गया था। चीन गणराज्य की सरकार माओ के साथ गृहयुद्ध हारने के बाद साल 1949 में ताइवान भाग गई थी। रूस के चीनी जमीन पर कब्जे को लेकर चीन के अंदर अक्सर आवाजें उठती रही हैं। चीन के राष्ट्रवादियों ने हाल ही में इस मुद्दे को उठाया था और उन्होंने व्लादिवोस्तोक पर अपना दावा ठोका था। उन्होंने मांग की थी कि पुतिन व्लादिवोस्तोक को वापस लौटाए।
चीन के एक सोशल मीडिया यूजर रॉबर्ट वू ने लिखा, 'इतिहास के मुताबिक रूस को हमें व्लादिवोस्तोक और विशाल इलाके को लौटाना चाहिए जिसे 100 साल पहले उसने ले लिया था।' चीन के एक अन्य राष्ट्रवादी ने कहा कि आज का मंगोलिया और रूस का साइबेरिया इलाका तांग साम्राज्य के दौरान चीन का हिस्सा था और इसकी राजधानी शिआन थी। तांग राजवंश सातवीं सदी में चीन में शासन करता था। पिछले दिनों एक खुलासा हुआ था कि रूस की सेना ने चीन के हमले के डर से कई युद्ध योजना बना रखी है। रूसी सेना को डर सता रहा है कि चीन इस इलाके पर कब्जा करने के लिए धावा बोल सकता है। साल 2010 के आसपास रूसी सेना ने सैन्य अभ्यास भी किया था।
चीन की चाल, रूस ने भारत से मांगी मदद
विश्लेषकों का कहना है कि रूस के व्लादिवोस्तोक इलाके पर चीन ने नजरें गड़ा रखी हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह यहां की जमीन में छिपे प्राकृतिक संसाधन हैं। व्लादिवोस्तोक के आसपास के रूसी फॉर ईस्ट इलाके में तेल और गैस के विशाल भंडार छिपे हुए हैं। यहां पर भारत और जापान ने भी अरबों डॉलर का निवेश कर रखा है। चीन लगातार सीमाई इलाके में अपने नागरिकों को भेज रहा है ताकि वहां अपना प्रभाव बढ़ाया जा सके। वहीं व्लादिवोस्तोक के इलाके में बहुत कम रूसी लोग रहते हैं। चीन के इस खतरे को देखते हुए रूस भारत को व्लादिवोस्तोक से सटे इलाके में शहर बसाने के लिए कह रहा है। भारत इस इलाके में अरबों डॉलर का निवेश कर रहा है। एक चीनी विश्लेषक ने कहा था कि ताइवान, भारत के बाद चीन रूस से अपने इलाके को वापस लेगा।