सुप्रीम कोर्ट ने ‘बुलडोजर जस्टिस’ को देश के कानून पर बुलडोजर चलाने जैसा कहा ….

नई दिल्ली  सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक बार फिर 'बुलडोजर जस्टिस' पर कड़ी टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि सरकारी अधिकारियों का ऐसा करना देश के 'कानून को ध्वस्त करने जैसा' है। शीर्ष अदालत ने साफ किया कि अपराध में शामिल होना किसी की संपत्ति को ढहाने का आधार नहीं हो सकता। इससे पहले […]

सुप्रीम कोर्ट ने ‘बुलडोजर जस्टिस’ को देश के कानून पर बुलडोजर चलाने जैसा कहा  ….

नई दिल्ली
 सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक बार फिर 'बुलडोजर जस्टिस' पर कड़ी टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि सरकारी अधिकारियों का ऐसा करना देश के 'कानून को ध्वस्त करने जैसा' है। शीर्ष अदालत ने साफ किया कि अपराध में शामिल होना किसी की संपत्ति को ढहाने का आधार नहीं हो सकता। इससे पहले 2 सितंबर को भी सुप्रीम कोर्ट ने इसी तरह की टिप्पणी की थी और मनमाने ढंग से बुलडोजर ऐक्शन रोकने के लिए दिशानिर्देश बनाने की बात कही थी। आरोपियों के खिलाफ बुलडोजर ऐक्शन की शुरुआत सबसे पहले यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार ने की थी। उसके बाद अब मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात जैसे कुछ बाकी राज्य भी उसी राह पर निकल चुके हैं।

यह मामला गुजरात के एक परिवार का था, जिन्होंने अपने घर पर बुलडोजर कार्रवाई की धमकी के खिलाफ याचिका दायर की थी। जस्टिस ऋषिकेश रॉय, सुधांशु धूलिया और एस वी एन भट्टी की बेंच ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि एक सदस्य द्वारा कथित अपराध के लिए पूरे परिवार को घर गिराकर दंडित नहीं किया जा सकता। बेंच ने कहा, 'अदालत इस तरह की तोड़फोड़ की धमकियों से बेखबर नहीं रह सकती, देश में ऐसी कल्पना भी नहीं की जा सकती जहां कानून सर्वोपरि है।'

बेंच ने आगे कहा, "ऐसी कार्रवाइयों को 'देश के कानून पर बुलडोजर चलाने' जैसा माना जा सकता है।" बेंच ने कहा कि एक ऐसे देश में जहां राज्य के कार्य कानून के नियमों से बंधे हैं, वहां परिवार के एक सदस्य द्वारा अपराध के लिए परिवार के अन्य सदस्यों या उनके कानूनी रूप से बने घर के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जा सकती। बेंच ने कहा कि अपराध में कथित संलिप्तता संपत्ति को ध्वस्त करने का आधार नहीं है। इसके अलावा, कथित अपराध साबित होना भी जरूरी है।

एक ऐसे देश में जहां राज्य के ऐक्शन कानून के नियमों से बंधे हैं, वहां परिवार के एक सदस्य के अपराध के लिए परिवार के अन्य सदस्यों या उनके कानूनी रूप से बने घर के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जा सकती। अदालत इस तरह की तोड़फोड़ की धमकियों से बेखबर नहीं रह सकती, नहीं तो ऐसी कार्रवाइयां देश के कानून पर बुलडोजर चलाने जैसी होंगी।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील इकबाल सैयद ने बेंच को बताया कि परिवार पिछले दो दशकों से जिस घर में रह रहा है, उसके निर्माण में कोई गैरकानूनी बात नहीं है। उन्होंने 2004 में ग्राम पंचायत की तरफ से पारित उस प्रस्ताव का भी हवाला दिया जिसमें आवासीय घर बनाने की अनुमति दी गई थी।

दरअसल, परिवार के एक सदस्य के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज होने के बाद नगर पालिका ने घर गिराने की धमकी दी थी। याचिकाकर्ता का आरोप है कि कानून को अपराध के आरोपी व्यक्ति के खिलाफ अपना काम करना चाहिए, लेकिन पूरे परिवार को दंडित नहीं किया जाना चाहिए।

याचिका में कहा गया है कि, 'नगर पालिका या नगर पालिका की आड़ में किसी को भी याचिकाकर्ता के कानूनी रूप से निर्मित और कानूनी रूप से कब्जे वाले घर/निवास को ध्वस्त करने की धमकी देने या बुलडोजर जैसे कदम उठाने का कोई अधिकार नहीं है।'

सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई 4 हफ्ते बाद तय करते हुए याचिकाकर्ता को अंतरिम राहत दे दी है। बेंच ने कहा, 'इस बीच, याचिकाकर्ता की संपत्ति के संबंध में सभी संबंधित पक्षों को यथास्थिति बनाए रखनी होगी।'