दहशत का माहौल : इजरायली रॉकेट के डर से सड़कों पर सन्नाटा, दुकानें-बाजार बंद

 तेहरान इजरायल युद्ध के मोर्चे पर है और सालभर से आसपास के देशों के हमले झेल रहा है और उनका…

दहशत का माहौल : इजरायली रॉकेट के डर से सड़कों पर सन्नाटा, दुकानें-बाजार बंद

 तेहरान

इजरायल युद्ध के मोर्चे पर है और सालभर से आसपास के देशों के हमले झेल रहा है और उनका माकूल जवाब भी दे रहा है. इजरायल पर फिलिस्तीनी संगठन हमास, लेबनान से हिज्बु्ल्लाह, यमन से हूती विद्रोही, इराक और सीरिया से ईरान समर्थित मिलिशिया लगातार रॉकेट और बम बरसा रहे हैं. ईरान के हमले का भी खतरा बना हुआ है. इस सबके बीच, इजरायली सेना अपने दुश्मनों को चुन-चुनकर मार रही है और उनका खात्मा कर रही है. फिलहाल, यह जंग खत्म होते नहीं दिख रही है और अरब देशों में तनाव देखने को मिल रहा है.

युद्ध की शुरुआत हमास ने की और अंजाम तक इजरायल पहुंचाते दिख रहा है. 7 अक्टूबर 2023 को सबसे पहले हमास के लड़ाकों ने इजरायल में घुसकर नरसंहार किया तो पलटवार में इजरायली सेना ने फिलिस्तीनी लड़ाकों (हमास) की कमर तोड़ दी और गाजा को बारूद का ढेर बना दिया है. उसके बाद अब हमास के सहयोगी निशाने पर आ गए हैं. हफ्तेभर से लेबनान में दहशत का माहौल है. सड़कों पर सन्नाटा पसर गया है. एक झटके में हिज्बुल्लाह का चीफ नसरल्लाह का खात्मा हो गया है. अब इजरायली डिफेंस फोर्स ने हूती विद्रोहियों पर बम गिराए हैं.

अब इजरायल का टारगेट बन गए हमास के सहयोगी

हिज्बुल्लाह, लेबनान का आतंकी संगठन है. हूती, यमन का शिया मिलिशिया ग्रुप है और 2014 से यमन के बड़े हिस्से पर ईरान के समर्थन वाले हूती विद्रोहियों का कब्जा है. जानकार कहते हैं कि हमास ने जब इजरायल में घुसकर नरसंहार किया था, तभी यह तय हो गया था कि इस हमले का अंजाम भी उतना ही भयावह होने वाला है. इजरायल ने पहले हमास के अंतिम लड़ाके को मार गिराने तक युद्ध भूमि में रहने का ऐलान किया और फिर जब हमास के समर्थन में लेबनान, हूती जैसे संगठन कूदे तो अब वे भी इजरायल के अगले टारगेट बन गए हैं.

क्या एक और गल्फ वॉर करीब है?

इस समय पश्चिम एशिया सबसे उथल-पुथल भरे दौर में है. आने वाले समय में इस क्षेत्र में संघर्ष बढ़ सकता है. अमेरिका ने भी इजरायल की मदद का ऐलान कर दिया है. फिलहाल, हालिया संघर्ष ने पश्चिम एशिया में तनाव को और बढ़ा दिया है, जिससे यह सवाल उठ रहा है कि क्या एक और गल्फ वॉर करीब हो सकता है. हालांकि, इस सवाल का जवाब कुछ फैक्टर्स पर निर्भर करता है.

रॉयटर्स ने एक अमेरिकी सीनेटर का हवाला देते हुए यह जानकारी दी है। सीनेट आर्म्ड सर्विसेज एयरलैंड सब कमिटी के अध्यक्ष मार्क केली के मुताबिक इजरायल ने हमले में 900-किलो के मार्क 84 श्रृंखला के बम का इस्तेमाल किया था। इन्हें बंकर-बस्टर के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने कहा, “इन हथियारों का आगे भी इस्तेमाल किया जायेगा और हम उन हथियारों का निर्यात जारी रख रहे हैं। वह 2,000 पाउंड का बम जिसका इस्तेमाल नसरल्लाह को खत्म करने के लिए किया गया था वह मार्क 84 श्रृंखला का बम था।”

अमेरिका को नहीं थी हमले की जानकारी

JDAMs अपनी तकनीक और GPS प्रणाली का उपयोग करके साधारण अनगाइडेड बम को एक निर्देशित हथियार में बदल देते हैं। अमेरिका और इजरायल की नजदीकियां जग जाहिर है। अमेरिका ने गाजा में संघर्ष शुरू होने के बाद इजरायल में हथियारों की आपूर्ति बढ़ा दी है। हालांक व्हाइट हाउस के मुताबिक इजरायल ने उन्हें बेरूत में नसरल्लाह को मारने वाले हवाई हमले के बारे में पहले से कोई जानकारी नहीं दी थी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को इस बारे में तभी पता चला जब इस हमले को पूरी तैयारी हो चुकी थी।

इजरायल ने एक हफ्ते में 7 हिजबुल्लाह कमांडरों को मार गिराया

इजरायल डिफेंस फोर्सेज (IDF) ने हाल ही में लेबनान पर अपने हमले तेज कर दिए हैं और एक हफ्ते में कम से कम सात हिजबुल्लाह कमांडरों को मार गिराया है। बेरूत में इजरायली हवाई हमले में नसरल्लाह की मौत के एक दिन बाद ईरान समर्थित आतंकवादी समूह ने अपने केंद्रीय परिषद के उप प्रमुख नबील कौक की हत्या की भी पुष्टि की है। समूह ने यह भी कहा कि हमले में एक अन्य वरिष्ठ कमांडर अली कराकी की भी मौत हो गई। हमलों में मारे गए अन्य हिजबुल्लाह कमांडरों में इब्राहिम अकील, अहमद वेहबे, मोहम्मद सुरौर और इब्राहिम कोबेसी शामिल हैं। इस बीच इजरायल ने रविवार को लेबनान में हिजबुल्लाह के ठिकानों पर बमबारी की है जिसमें एक दिन में 100 से ज्यादा लोग मारे गए हैं। लेबनान के स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक हमले में 105 लोगों की मौत हो गई है वहीं 359 लोग घायल हो गए।

क्षेत्रीय शक्तियों को प्रभावित कर सकता है युद्ध

जानकार कहते हैं कि अब संघर्ष का समाधान निकालने की जरूरत है. अगर समाधान नहीं मिलता है तो इसका असर आसपास के देशों पर भी पड़ेगा, जिससे व्यापक सैन्य संघर्ष की स्थिति बन सकती है. दुनिया देख रही है कि इजरायल और ईरान के बीच लगातार तनाव बना हुआ है और यह संघर्ष अन्य क्षेत्रीय शक्तियों को भी प्रभावित कर सकता है. खासकर ईरान समर्थित गुटों के जरिए. यदि यह संघर्ष बढ़ता है तो यह एक व्यापक क्षेत्रीय युद्ध में बदल सकता है. ईरान-इजरायल के बीच जंग होती है तो इसका सीधा असर अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल पर पड़ेगा.

तो बिगड़ सकती है स्थिति?

माना जा रहा है कि अमेरिका, रूस, चीन और यूरोपीय देशों जैसे बड़े देशों की प्रतिक्रियाएं भी अहम भूमिका निभाएंगी. यदि ये देश कूटनीतिक हल ढूंढने की कोशिश करेंगे तो संघर्ष के बड़े स्तर पर पहुंचने की संभावना कम हो सकती है. हालांकि, यदि सैन्य हस्तक्षेप बढ़ता है तो स्थिति बिगड़ सकती है.

यदि संघर्ष और बढ़ता है तो वैश्विक आर्थिक अस्थिरता भी बढ़ सकती है, जिससे गल्फ वॉर की संभावनाएं बढ़ जाएंगी. गल्फ के देशों की तेल आपूर्ति और वैश्विक बाजार पर इसका सीधा असर पड़ेगा. हालांकि, यह कहना मुश्किल है कि गल्फ वॉर हो सकता है, लेकिन मौजूदा तनाव को देखते हुए इस संभावना को नकारा भी नहीं जा सकता है. यदि कूटनीतिक प्रयासों से कोई समाधान नहीं निकला तो एक बड़े संघर्ष की आशंका बनी रहेगी.

ईरान क्यों नाराज है?

दरअसल, दो महीने पहले ही ईरान की राजधानी तेहरान में हमास चीफ इस्माइल हानिया मारा गया था. आरोप इजरायल पर लगा था. इस हमले के बाद ईरान में रोष देखा जा रहा है और उसने बदला लेने की कसम खाई है. ईरान, ना सिर्फ हिज्बुल्लाह को पूरा समर्थन दे रहा है, बल्कि युद्ध के लिए मददगार भी बना है. पश्चिम एशिया में खतरनाक स्थिति बन गई है. इस क्षेत्र में एक व्यापक युद्ध छिड़ने की आशंका बढ़ रही है. यह कहा जा सकता है कि ये पूरा क्षेत्र एक बारूद का ढेर बन गया है.

अगर इजरायल और ईरान के बीच युद्ध होता है तो इसका प्रभाव सिर्फ इन दोनों देशों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि गल्फ क्षेत्र के अन्य देशों जैसे सऊदी अरब, कुवैत, ओमान, और संयुक्त अरब अमीरात पर भी पड़ेगा. ईरान के साथ कई शिया समर्थित गुट और संगठन जुड़े हुए हैं, जैसे लेबनान का हिज्बुल्लाह और यमन के हूती विद्रोही. दूसरी ओर सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और अन्य सुन्नी देश हैं, जो साइलेंट मोड में देखे जा रहे हैं. कतर मध्यस्थ भूमिका में है, लेकिन किसी का खुलकर समर्थन या विरोध नहीं किया है. जानकार कहते हैं कि यदि इजरायल-ईरान का संघर्ष बढ़ता है तो यह क्षेत्रीय संघर्ष का रूप ले सकता है, जिसमें गल्फ देशों की भागीदारी भी शामिल हो सकती है.

गल्फ वॉर शब्द का इस्तेमाल पहले भी 1980 के दशक में ईरान-इराक युद्ध और 1991 के इराक के खिलाफ अमेरिकी गठबंधन की लड़ाई के लिए किया गया.