वाशिंगटन
अमेरिका ने ईरान से तेल और पेट्रोकेमिकल व्यापार में शामिल छह कंपनियों और कई जहाजों पर प्रतिबंध लगाए हैं। इनमें भारत और पाकिस्तान की एक-एक फर्म भी शामिल है। यह कार्रवाई अमेरिका की उस नीति का हिस्सा है, जिसके तहत वह ईरान पर आर्थिक दबाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। यह जानकारी अमेरिकी विदेश मंत्रालय और ट्रेजरी विभाग के ऑफिस ऑफ फॉरेन एसेट्स कंट्रोल (OFAC) ने दी।
पाकिस्तान के लाहौर में स्थित एलायंस एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड और नई दिल्ली में स्थित भारत की साई साबुरी कंसल्टिंग सर्विसेज पर ईरानी तेल व्यापार में उनकी कथित भूमिका के लिए प्रतिबंध लगाए गए हैं। OFAC के अनुसार, ये कंपनियां ईरान के तेल और पेट्रोकेमिकल उत्पादों को गुप्त रूप से भेजने में शामिल एक नेटवर्क का हिस्सा थीं, जो अमेरिकी प्रतिबंधों का उल्लंघन करता है।
प्रतिबंधों का कारण और असर
ये प्रतिबंध अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की “अधिकतम दबाव” नीति का हिस्सा हैं, जिसका उद्देश्य ईरान के तेल निर्यात को शून्य तक कम करना और उसके परमाणु कार्यक्रम, बैलिस्टिक मिसाइल विकास और क्षेत्रीय प्रभाव को सीमित करना है। अमेरिकी ट्रेजरी सचिव स्कॉट बेसेन्ट ने कहा, “हम ईरान के राजस्व स्रोतों को निशाना बनाना जारी रखेंगे और उसके ऐसे वित्तीय संसाधनों तक पहुंच को बाधित करेंगे, जो उसकी अस्थिर करने वाली गतिविधियों को बढ़ावा देते हैं।”
पाकिस्तान की एलायंस एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड पहले भी अमेरिकी प्रतिबंधों का उल्लंघन करने के लिए ब्लैकलिस्ट हो चुकी है। इसके अलावा, संयुक्त अरब अमीरात (UAE), ईरान और पनामा आधारित कंपनियों और उनके संचालित जहाजों को भी निशाना बनाया गया है। साई साबुरी कंसल्टिंग सर्विसेज पर दो एलपीजी टैंकरों, बैटेलूर और नील के कॉमर्शियल मैनेजर के रूप में काम करने का आरोप है, जो ईरानी तेल के परिवहन में शामिल थे।
एक अरब डॉलर के तेल व्यापार पर लगा दिए नए प्रतिबंध
अमेरिका ने ईरान के करीब एक अरब डॉलर के तेल व्यापार पर एक बार फिर प्रतिबंध लगाए हैं। ईरान के तेल व्यापार को हिजबुल्लाह से मिलने वाली आर्थिक मदद पर प्रतिबंध लगाया है। अमेरिका ने ट्रेजरी डिपार्टमेंट ने ईरान पर लगाए गए प्रतिबंधों की जानकारी दी। ट्रेजरी सचिव स्कॉट बेसेन्ट ने बताया कि ईरान के साथ न्यूक्लियर डील पर बातचीत करने से पहले तेल व्यापार के लिए मिलने वाली आर्थिक मदद को रोकने के लिए प्रतिबंध लगाए गए हैं। अमेरिका जानता है कि ईरान को तेल व्यापार करने के लिए हिजबुल्लाह पैसा देता है, लेकिन हिजबुल्ला ईरान से तेल लेकर उसे ईराक का तेल बताकर आगे सप्लाई करता है।
हिजबुल्लाह की वित्तीय संस्था ऐसे कमाती मुनाफा
ट्रेजरी सचिव ने बताया कि अमेरिका को हिजबुल्लाह के कंट्रोल वाली वित्तीय संस्था अल-क़र्द अल-हसन के बारे में पता चला है, जिसके अधिकारियों ने लाखों डॉलर के लेन-देन किया है, जिससे हिजबुल्लाह का फायदा हो रहा है। यह संस्था ईराक के बिजनेसमैन सलीम अहमद सईद की कंपनियां के मुनाफा कमा रही है। हिजबुल्लाह की यह संस्था सलीम की कंपनियों को फंडिंग करती है। सलीम की कंपनियां साल 2020 से ईरान से तेल खरीद रही है और उसे ईराक के तेल में मिलाकर अरबों डॉलर का मुनाफा कमा रहा है। ईरान से कच्चे तेल की इस खरीद फरोख्त का सीधा फायदा हिजबुल्लाह को हो रहा है, लेकिन अमेरिका ऐसा होने नहीं देगा।
प्रतिबंधों से ईरान को होगा यह नुकसान
ट्रेजरी सचिव ने कहा कि अमेरिका ईरान के रेवेन्यू सोर्स को टारगेट करता रहेगा, ताकि ईरान के रेवेन्यू में कटौती हो और देश में क्षेत्रीय अस्थिरता को बढ़ावा मिले। ऑयल सपलाई करने वाले कई जहाज भी प्रतिबंधित किए हैं, जो सीक्रेट तरीके से ईरान के स्मगल ऑयल को तस्करों तक तेल पहुंचाते हैं। इसलिए अमेरिका ने 16 वित्तीय संस्थाओं और समुद्री जहाजों पर कार्रवाई की है, जो, अवैध तरीके से ईरान के तेल की तस्करी में शामिल थे। क्योंकि इन संस्थाओं को तेल बेचकर मिलने वाला पैसा आतंकवादी संगठनों हिजबुल्लाह, हमास और हूती विद्रोहियों को समर्थन में देता है। इसलिए तेल व्यापार पर प्रतिबंध लगाकर इस आय को रोकने की कोशिश की गई है।
बता दें कि ईरान के तेल व्यापार पर अमेरिका प्रतिबंध लगाता रहा है और समय के साथ प्रतिबंध कड़े भी किए हैं। साल 2018 में ईरान जब परमाणु समझौते (JCPOA) से बाहर हुआ तो अमेरिका ने ईरान के तेल व्यापार पर प्रतिबंध लगाए। इन प्रतिबंधों का मकसद ईरान की अर्थव्यवस्था को कमजोर करना, उस पर न्यूक्लियर प्रोग्राम पर बातचीत करने के लिए दबाव डालना था।
ईरान का ‘शैडो फ्लीट’ और तेल व्यापार
अमेरिका का दावा है कि ईरान अपने तेल निर्यात को बनाए रखने के लिए “शैडो फ्लीट” या “डार्क फ्लीट” का उपयोग करता है, जो गुप्त रूप से तेल और पेट्रोकेमिकल उत्पादों को ट्रांसफर करता है। ये जहाज अक्सर बंदरगाहों की क्षेत्रीय सीमाओं के बाहर जहाज-से-जहाज ट्रांसफर के जरिए तेल की उत्पत्ति को छिपाते हैं। इस तरह का व्यापार मुख्य रूप से चीन जैसे देशों को टारगेट करता है, जो ईरान का सबसे बड़ा तेल खरीदार है।
वैसे ये यह पहली बार नहीं है जब भारतीय कंपनियों पर ईरानी तेल व्यापार के लिए प्रतिबंध लगाए गए हैं। इस साल फरवरी में, चार अन्य भारतीय कंपनियों पर भी इसी तरह के आरोपों में प्रतिबंध लगाए गए थे। इसके अलावा, अक्टूबर 2024 में, भारत की गब्बारो शिप सर्विसेज और दिसंबर 2024 में दो अन्य भारतीय शिपिंग कंपनियों पर भी प्रतिबंध लगाए गए थे।
ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध 1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद से लागू हैं, लेकिन 2018 में ट्रंप प्रशासन द्वारा ईरान परमाणु समझौते से हटने के बाद इनमें और तेजी आई। इन प्रतिबंधों का मुख्य उद्देश्य ईरान के परमाणु और मिसाइल कार्यक्रमों को रोकना और क्षेत्रीय आतंकवादी समूहों को उसके समर्थन को कम करना है। हाल के महीनों में, इजरायल और अमेरिका द्वारा ईरान की परमाणु सुविधाओं पर हमलों के बाद ये प्रतिबंध और सख्त हो गए हैं।