विवेक झा, नई दिल्ली/भोपाल, 8 जुलाई 2025:
देश भर में 9 जुलाई 2025 को बैंकिंग सेवाएं पूरी तरह से प्रभावित रहने वाली हैं। ऑल इंडिया बैंक इंप्लॉईज़ एसोसिएशन (AIBEA), ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन (AIBOA) और बैंक इंप्लॉईज़ फेडरेशन ऑफ इंडिया (BEFI) सहित कई बड़े बैंकिंग यूनियनों ने इस दिन राष्ट्रव्यापी आम हड़ताल का ऐलान किया है।
यह हड़ताल केंद्र सरकार की आर्थिक और श्रम नीतियों के विरोध में की जा रही है। यूनियन नेताओं का कहना है कि सरकार की नीतियां पूरी तरह से कॉरपोरेट्स को लाभ पहुंचाने वाली हैं, जबकि गरीब, श्रमिक और आम जनता लगातार हाशिए पर धकेले जा रहे हैं।
बड़े कॉरपोरेट्स को फायदा, आम आदमी पर बोझ: यूनियनों का आरोप
हड़ताल का नेतृत्व कर रहे AIBEA के महासचिव सी. एच. वेंकटचलम ने कहा कि देश में आर्थिक नीतियां इस कदर बदल दी गई हैं कि उनका सीधा लाभ बड़े उद्योगपतियों को मिल रहा है। सरकार टैक्स छूट और निजीकरण के जरिए कॉरपोरेट घरानों को ताकतवर बना रही है, जबकि आम नागरिक पर टैक्स और महंगाई का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है।
उनका कहना है कि “गरीब के उपयोग की वस्तुएं भी जीएसटी के दायरे में हैं, जिससे जीवन यापन मुश्किल हो गया है।”
बेरोजगारी और ‘फिक्स टर्म’ नौकरियों पर चिंता
बैंक कर्मियों की यूनियनों ने बढ़ती बेरोजगारी, खासकर युवाओं में, पर भी गंभीर चिंता जताई है। उनका कहना है कि पढ़े-लिखे युवा भी रोजगार के लिए भटक रहे हैं और सरकार की नई ‘फिक्स टर्म जॉब’ नीति स्थायित्व देने की बजाय अस्थिरता को बढ़ावा दे रही है।
काम के घंटे बढ़ाने की मानसिकता का विरोध
यूनियनों ने इन्फोसिस के एन. आर. नारायणमूर्ति और एल एंड टी के सुब्रमण्यम जैसे उद्योगपतियों के 70–90 घंटे काम कराने के सुझावों की आलोचना करते हुए कहा कि ये सोच “मुनाफा पहले, मज़दूर बाद में” की नीति का हिस्सा है। ‘ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस’ के नाम पर श्रमिकों से ज़्यादा काम लिया जा रहा है, जिससे उनके स्वास्थ्य और जीवन संतुलन पर सीधा असर पड़ रहा है।
श्रम कानूनों में बदलाव और यूनियन विरोधी माहौल
प्रेस विज्ञप्ति में आरोप लगाया गया है कि सरकार पुरानी श्रम सुरक्षा नीतियों को खत्म कर नए लेबर कोड लागू कर रही है जो मजदूरों को उनके मौलिक अधिकारों से वंचित कर देंगे। यूनियनों का कहना है कि हड़ताल का अधिकार, यूनियन गठन और न्यूनतम वेतन जैसे अधिकारों पर हमला किया जा रहा है।
पब्लिक सेक्टर को बेचने की कोशिशों का विरोध
सरकारी बैंकों और बीमा कंपनियों के निजीकरण की कोशिशों पर भी यूनियनें मुखर हैं। उनका कहना है कि सार्वजनिक बैंकों के जरिए ₹140 लाख करोड़ की जनता की जमा राशि को संभाला जा रहा है, और उसे निजी हाथों में देना सीधा धोखा होगा।
देशव्यापी समर्थन और व्यापक भागीदारी
इस राष्ट्रव्यापी हड़ताल को विभिन्न मज़दूर यूनियनों, किसान संगठनों और स्वतंत्र ट्रेड यूनियन फेडरेशनों का व्यापक समर्थन प्राप्त है। इसमें INTUC, AITUC, HMS, CITU, AIUTUC, TUCC, SEWA, AICCTU, LPF, UTUC और कई अन्य संगठन शामिल हैं।
वित्तीय क्षेत्र से जुड़ी यूनियनें — जैसे AIBEA, AIBOA, BEFI, AIIEA, GIEAAIA, AILICEF — भी पूरी ताकत से हड़ताल में भाग लेंगी। इसके अलावा, AIBOC, NCBE, INBEF और INBOC जैसी अन्य बैंक यूनियनें भी समर्थन दे रही हैं।
हड़ताल में सरकारी बैंकों के साथ-साथ कुछ निजी और विदेशी बैंक, सहकारी बैंक, ग्रामीण बैंक, एलआईसी और जनरल इंश्योरेंस कंपनियों के कर्मचारी भी भाग लेंगे।
जनता से सहयोग की अपील
यूनियनों ने आम जनता से अपील की है कि वे इस संघर्ष में सहयोग करें, क्योंकि यह केवल कर्मचारियों की नहीं बल्कि पूरे देश की आर्थिक और सामाजिक संरचना की रक्षा का आंदोलन है।