विवेक झा, भोपाल। टैक्स लॉ बार एसोसिएशन द्वारा अपने सदस्यों के लिए एक महत्वपूर्ण कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसमें जीएसटी और आयकर कानून से जुड़ी कई जटिलताओं पर विस्तार से चर्चा की गई। इस ज्ञानवर्धक सत्र का संचालन युवा और प्रतिभाशाली अधिवक्ता सानिध्य पस्तोर ने किया।
कार्यशाला का केंद्र बिंदु था – बकाया जीएसटी देनदारी, व्यवसाय का हस्तांतरण, उत्तराधिकार एवं कंपनी संबंधी कानूनी जवाबदेही।
व्यवसाय स्थानांतरण पर बकाया की जिम्मेदारी:
अधिवक्ता सानिध्य पस्तोर ने बताया कि यदि कोई व्यक्ति जिसके ऊपर जीएसटी की देनदारी बकाया है, वह अपना व्यवसाय किसी अन्य को बेच देता है या किसी अन्य रूप में हस्तांतरित करता है, तब भी उसकी वह पुरानी बकाया जिम्मेदारी समाप्त नहीं होती। अगर वह व्यक्ति उक्त देनदारी का भुगतान नहीं करता है, तो नया व्यवसायी भी उस बकाया राशि के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।
कंपनियों के विलय और निदेशकों की जिम्मेदारी
कार्यशाला में यह भी स्पष्ट किया गया कि कंपनियों के आपसी विलय की स्थिति में भी दोनों इकाइयों की संयुक्त जिम्मेदारी रहती है कि वे पुराने बकायों का भुगतान करें। जीएसटी अधिनियम की धारा 89 के अनुसार, किसी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के निदेशक (Directors) को भी उस कंपनी के लंबित जीएसटी भुगतान के लिए व्यक्तिगत रूप से जवाबदेह ठहराया जा सकता है।
भागीदारी फर्मों एवं उत्तराधिकार की स्थिति
फर्म के संदर्भ में पस्तोर ने कहा कि साझेदार भी फर्म के बकाया जीएसटी भुगतान के लिए उत्तरदायी होते हैं। हालांकि, यदि कोई भागीदार नियमानुसार समय पर यह सूचना दे देता है कि वह फर्म से अलग हो गया है, तो वह भविष्य की देनदारी से मुक्त हो सकता है।
वहीं किसी व्यवसायी की मृत्यु की स्थिति में उसके उत्तराधिकारी पर भी जीएसटी देनदारी का भार आता है। लेकिन यह उत्तरदायित्व सिर्फ उतनी ही संपत्ति तक सीमित होता है, जितनी संपत्ति उसे उत्तराधिकार में प्राप्त हुई है।
संपत्ति का निशुल्क हस्तांतरण:
एक अन्य महत्वपूर्ण बिंदु यह था कि यदि कोई व्यक्ति बिना किसी उचित मूल्य के अपनी संपत्ति किसी अन्य को हस्तांतरित करता है, तो ऐसा हस्तांतरण कानून की दृष्टि में शून्य (Null & Void) माना जाएगा। विभाग ऐसी संपत्ति को जब्त कर बकाया वसूल सकता है।
संस्था के पदाधिकारियों की उपस्थिति
इस ज्ञानवर्धक कार्यशाला में टैक्स लॉ बार एसोसिएशन के अध्यक्ष मृदुल आर्य, उपाध्यक्ष अंकुर अग्रवाल, सचिव मनोज पारख, कोषाध्यक्ष धीरज अग्रवाल, वरिष्ठ सदस्य राजेश्वर दयाल और अवधेश शाह सहित कई अधिवक्ता व चार्टर्ड अकाउंटेंट उपस्थित रहे।
कार्यशाला के अंत में उपस्थित सदस्यों ने इस तरह के आयोजन को समय की मांग बताया और भविष्य में और भी तकनीकी विषयों पर ऐसी जानकारीपूर्ण चर्चाएं आयोजित करने की आवश्यकता पर बल दिया।