भोपाल में हड़ताल की पूर्व संध्या पर मजदूरों का मशाल जुलूस, सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ गूंजे नारे

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विवेक झा, भोपाल, 8 जुलाई 2025। देशव्यापी आम हड़ताल के पूर्व दिवस पर राजधानी भोपाल में केंद्र सरकार की जनविरोधी एवं श्रमिक विरोधी नीतियों के खिलाफ श्रमिक संगठनों ने जोरदार मशाल जुलूस निकाला और सभा आयोजित की। यह आयोजन 9 जुलाई को प्रस्तावित राष्ट्रव्यापी आम हड़ताल के समर्थन में किया गया, जिसमें बैंक, बीमा, सरकारी और असंगठित क्षेत्र के लाखों कर्मचारी शामिल होंगे।

शाम 6 बजे इंदिरा प्रेस कॉम्प्लेक्स स्थित पंजाब नेशनल बैंक शाखा के सामने विभिन्न ट्रेड यूनियनों से जुड़े सैकड़ों कर्मी झंडों, बैनरों और प्लेकार्ड्स के साथ जुटे। उन्होंने केंद्र सरकार की आर्थिक एवं श्रम नीतियों के विरोध में जोरदार नारेबाजी की और मशालों के साथ विरोध प्रदर्शन किया।

प्रदर्शन के बाद हुई सभा में विभिन्न यूनियनों के नेताओं ने सरकार की नीतियों पर कड़ा प्रहार करते हुए आमजन से 9 जुलाई को होने वाली हड़ताल का समर्थन करने की अपील की। सभा को वी.के. शर्मा, शिवशंकर मौर्य, पूषण भट्टाचार्य, विनोद भाई, यशवंत पुरोहित, दीपक रत्न शर्मा, एस.सी. जैन, अजय श्रीवास्तव नीलू, रमेश राठौड़, भगवान स्वरूप कुशवाह, महेंद्र सिंह ठाकुर, ओ.पी. डोंगरीवाल, शैलेंद्र शर्मा, पी.एन. वर्मा, शैलेंद्र कुमार शैली समेत कई नेताओं ने संबोधित किया।

20 करोड़ से अधिक कामगार हड़ताल में होंगे शामिल

ट्रेड यूनियनों का संयुक्त मोर्चा, मध्य प्रदेश के प्रवक्ता वी. के. शर्मा ने बताया कि  इस राष्ट्रव्यापी हड़ताल में 20 करोड़ से अधिक मजदूर, कर्मचारी, अधिकारी भाग लेंगे। यह हड़ताल देशभर के 10 केंद्रीय श्रमिक संगठनों — इंटक, एटक, एचएमएस, सीटू, एआईयूटीयूसी, सेवा, टीयूसीसी, एआईसीसीटीयू, एलपीएफ, यूटीयूसी — के आह्वान पर आयोजित की जा रही है। इसके साथ ही 100 से अधिक स्वतंत्र ट्रेड यूनियनों का समर्थन भी शामिल है।

हड़ताल में भाग लेने वाले प्रमुख संगठनों में बैंक, बीमा, बीएसएनएल, पोस्टल, आयकर विभाग, आंगनवाड़ी, आशा कार्यकर्ता, मध्यान्ह भोजन कर्मी, खेतिहर मजदूर, किसान संगठन, पेंशनर्स, मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव, हम्माल मजदूर संगठन आदि शामिल हैं। कई यूनियनों ने नैतिक समर्थन देने के साथ हड़ताल की सभाओं और प्रदर्शनों में भाग लेने का एलान किया है।

केंद्र सरकार की नीतियों पर तीखा हमला

नेताओं ने अपने भाषणों में कहा कि सरकार की नीतियाँ पूरी तरह कॉरपोरेट समर्थक हो चुकी हैं। देश की संपदा कुछ चुनिंदा उद्योगपतियों को सौंपी जा रही है, जबकि आमजन महंगाई, बेरोजगारी और असुरक्षा की चक्की में पिस रहा है। सरकार “ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस” के नाम पर श्रमिकों के अधिकारों पर कुठाराघात कर रही है।

बेरोजगारी, विशेष रूप से युवाओं में, एक विकराल समस्या बन चुकी है, और सरकार स्थायी रोजगार के अवसर पैदा करने के बजाय “फिक्स टर्म जॉब” जैसी नीतियां लागू कर रही है, जिससे स्थायित्व और सामाजिक सुरक्षा खत्म होती जा रही है।

महंगाई भी चरम पर है। आम उपभोक्ता की रोजमर्रा की आवश्यक वस्तुओं पर जीएसटी का बोझ डाला गया है, जिससे जीवनयापन और कठिन होता जा रहा है।

लेबर कोड और यूनियन पर हमला

सभा में वक्ताओं ने सरकार द्वारा पुराने श्रम कानूनों को हटाकर नए लेबर कोड लागू करने की आलोचना की। उनका कहना था कि इन कानूनों से श्रमिकों को मिलने वाले अधिकार — जैसे यूनियन गठन, हड़ताल का अधिकार, न्यूनतम वेतन — छिन लिए जाएंगे।

“ट्रेड यूनियन मुक्त भारत” की सरकार की सोच मजदूर विरोधी है। कंपनियों को खुली छूट दी जा रही है कि वे ठेके पर सस्ते मज़दूर रखें और बिना जवाबदेही के काम करवाएं।

असंगठित क्षेत्र और महिलाओं की दुर्दशा

नेताओं ने कहा कि देश के असंगठित क्षेत्र के श्रमिक, जिनमें बड़ी संख्या में महिलाएं हैं, बहुत खराब हालात में काम कर रहे हैं। इनके लिए बनाए गए सुरक्षा कानूनों को भी कमजोर किया जा रहा है, जिससे शोषण और असमानता और गहराई से जड़ पकड़ रही है।

पब्लिक सेक्टर को बचाने की पुकार

सरकार सार्वजनिक बैंकों और बीमा कंपनियों का निजीकरण करने पर आमादा है। जबकि यही संस्थान देश की आर्थिक रीढ़ हैं और जनता की ₹140 लाख करोड़ से अधिक की जमा राशि संभालते हैं। इन्हें निजी हाथों में देना देश के साथ धोखा होगा।

खेती और किसान संकट

सभा में किसान संगठनों का भी प्रतिनिधित्व रहा। वक्ताओं ने कहा कि खेती देश की रीढ़ है, लेकिन आज कृषि क्षेत्र की जीडीपी में भागीदारी घटती जा रही है। किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की मांग कर रहे हैं, पर सरकार कॉरपोरेट्स को फसलों का नियंत्रण सौंपना चाहती है।


भोपाल में हड़ताल की पूर्व संध्या पर हुआ यह प्रदर्शन एक चेतावनी है कि देश का श्रमिक वर्ग अब चुप नहीं बैठेगा। वह अपने अधिकारों, रोजगार, सम्मान और भविष्य की सुरक्षा के लिए मैदान में उतर चुका है। 9 जुलाई को देशभर में मजदूरों की आवाज़ गूंजेगी — “मुनाफा नहीं, मज़दूर पहले!”


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