राजकोषीय घाटा बढ़कर ₹41,202 करोड़ तक पहुंचा, जबकि केंद्र से अनुदानों में 29.10% की वृद्धि दर्ज
विवेक झा, भोपाल | मध्यप्रदेश राज्य की वित्तीय स्थिति को लेकर भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की ताज़ा रिपोर्ट ने गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। वित्त वर्ष 2022-23 में मध्यप्रदेश सरकार को केंद्र सरकार से ₹2,03,986 करोड़ की कुल प्राप्तियाँ हुईं, जिसमें केंद्रांश और अनुदानों में 29.10% की वृद्धि दर्ज की गई। इसके बावजूद राज्य पर ₹41,202 करोड़ का राजकोषीय घाटा दर्ज हुआ है — जो सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) का 3.11% है।
सहायता बढ़ी, लेकिन घाटा क्यों?
कैग रिपोर्ट के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2018-19 में केंद्र से सहायता ₹1.48 लाख करोड़ थी, जो 2022-23 में बढ़कर ₹2.03 लाख करोड़ हो गई। बावजूद इसके, घाटे की यह स्थिति राज्य की आय और व्यय के बीच लगातार बढ़ते असंतुलन को दर्शाती है।
वित्तीय वर्ष 2021-22 में जहां घाटा ₹37,487 करोड़ था, वहीं 2022-23 में यह बढ़कर ₹41,202 करोड़ तक पहुंच गया। यह तब है जब राज्य को केंद्र से अधिक धनराशि मिली है।
कैग ने चिन्हित कीं 3 प्रमुख कमजोरियां
-
अप्रभावी खर्च प्रबंधन – प्राप्त सहायता का अधिकांश भाग पूर्ववर्ती योजनाओं, ब्याज भुगतान और वेतन/पेंशन में चला गया।
-
योजना अनिश्चितता – ₹20,685 करोड़ की योजनाओं में से ₹719 करोड़ की ही उपयोगिता प्रमाणपत्र जमा की गई।
-
गैर-राजस्व व्यय में तीव्र वृद्धि – वेतन, पेंशन और ब्याज जैसे राजस्व व्ययों पर अत्यधिक निर्भरता।
घाटे की गहराई का विश्लेषण
वर्ष | केंद्र से प्राप्त कुल सहायता (₹ करोड़) | राजकोषीय घाटा (₹ करोड़) |
---|---|---|
2018-19 | 1,48,893 | 2,801 |
2019-20 | — | 18,356 |
2020-21 | — | — |
2021-22 | — | 37,487 |
2022-23 | 2,03,986 | 41,202 |
(नोट: सभी आँकड़े CAG रिपोर्ट से संकलित)
राजस्व वृद्धि हुई, पर उत्पादकता घटी
रिपोर्ट बताती है कि राजस्व की प्राप्तियों में तो वृद्धि हुई है, लेकिन उसके अनुपात में उत्पादक व्यय या परिसंपत्तियों के निर्माण पर अपेक्षित निवेश नहीं हुआ। केंद्र की अनुदान राशि का अधिकतर हिस्सा केवल व्यावसायिक या प्रशासनिक व्ययों में खप गया।
अब आम आदमी क्या समझे
-
सरकार को केंद्र से मदद मिल रही है, लेकिन वो पैसा सिर्फ़ काम में नहीं लग रहा, काफी हिस्सा पुराने खर्चों को चुकाने में जा रहा है।
-
नई सड़कें, अस्पताल, स्कूल जैसे विकास कार्यों के लिए पैसे की कमी हो रही है।
-
यह स्थिति लंबे समय तक चली, तो इसका असर आम जनता की सुविधाओं पर पड़ेगा।
संक्षेप में कहें, तो
पैसा आया, लेकिन इस्तेमाल सही नहीं हुआ।
पुराने कर्ज़, वेतन और पेंशन में पैसा डूबता गया।
नई योजनाएं या जनता के काम में कम खर्च हो पाया।
इसी वजह से सरकार घाटे में चली गई।
वित्तीय संतुलन की चिंता
कैग का मानना है कि “राज्य को प्राप्त सहायता का समुचित उपयोग, योजना कार्यान्वयन की पारदर्शिता और परियोजनाओं का समय पर निष्पादन” सुनिश्चित किया जाए, अन्यथा यह बढ़ती सहायता भी अर्थव्यवस्था को संभाल नहीं पाएगी।