CAG रिपोर्ट में खुलासा: 2022-23 में 20,685 करोड़ रुपये की योजनाओं पर खर्च, लेकिन 719 करोड़ का ही उपयोगिता प्रमाणपत्र जमा; जवाबदेही और पारदर्शिता पर गंभीर प्रश्न।
विवेक झा,भोपाल | मध्यप्रदेश सरकार की वित्तीय जवाबदेही एक बार फिर सवालों के घेरे में है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) द्वारा प्रस्तुत राज्य वित्त पर रिपोर्ट में यह गंभीर तथ्य सामने आया है कि वर्ष 2022-23 में राज्य सरकार ने विभिन्न योजनाओं पर ₹20,685.36 करोड़ खर्च किए, लेकिन इनमें से सिर्फ ₹719 करोड़ की ही उपयोगिता प्रमाण पत्र (UPC) जमा कराई गई।
यानी कि ₹19,965 करोड़ से अधिक खर्च का कोई पुख्ता लेखा-जोखा नहीं दिया गया। यह स्थिति राज्य की वित्तीय पारदर्शिता और प्रशासनिक दक्षता पर सवाल खड़े करती है।
क्या होता है उपयोगिता प्रमाण पत्र (UPC)
उपयोगिता प्रमाणपत्र वह दस्तावेज होता है, जो यह प्रमाणित करता है कि सरकारी योजना के अंतर्गत प्राप्त राशि को तय शर्तों और उद्देश्यों के अनुसार उपयोग किया गया है। यदि UPC समय पर नहीं दिया जाता, तो यह माना जाता है कि या तो पैसा गलत तरीके से खर्च किया गया है या फिर खर्च ही नहीं हुआ।
CAG ने क्या कहा?
CAG की रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि –
“इतनी बड़ी राशि के उपयोग के बावजूद समय पर उपयोगिता प्रमाणपत्र प्रस्तुत नहीं करना गंभीर वित्तीय लापरवाही है। इससे योजनाओं की पारदर्शिता और कार्यक्षमता पर संदेह उत्पन्न होता है।”
इन क्षेत्रों में सबसे अधिक अनुपस्थित रहे प्रमाणपत्र
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ऊर्जा क्षेत्र के उपक्रमों (₹17,858 करोड़)
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नगरीय विकास और आवास विभाग (₹7,332 करोड़)
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अन्य तकनीकी व प्रशासनिक विभाग – जैसे खनिज, लोक निर्माण, शिक्षा, औद्योगिक नीति आदि
1. ऊर्जा क्षेत्र के उपक्रम: ₹17,858 करोड़ का हिसाब अधूरा
ऊर्जा क्षेत्र की विभिन्न कंपनियों जैसे –
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मध्यप्रदेश पावर जनरेशन कंपनी
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मध्यप्रदेश पावर ट्रांसमिशन कंपनी
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मध्यप्रदेश पूर्व/पश्चिम/मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनियाँ
इन सभी ने राज्य सरकार से विभिन्न योजनाओं (जैसे ट्रांसमिशन सुधार, स्मार्ट मीटरिंग, अधोसंरचना निर्माण) के लिए धन प्राप्त किया, लेकिन ₹17,858 करोड़ की राशि के उपयोग का कोई प्रमाण पत्र नहीं दिया।
इससे यह संदेह गहराता है कि इतनी बड़ी राशि का कहीं उपयोग सही तरीके से नहीं हुआ, या फिर जानबूझकर विवरण छिपाया जा रहा है।
2. नगरीय विकास एवं आवास विभाग: ₹7,332 करोड़ अनुत्तरित
शहरी योजनाओं जैसे –
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स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट
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प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी)
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अमृत योजना
में ₹7,332 करोड़ खर्च किए गए, लेकिन इनका खर्च कहां और कैसे हुआ – यह साबित करने वाले दस्तावेज़ अनुपस्थित हैं।
इससे न केवल योजनाओं के क्रियान्वयन पर सवाल खड़े होते हैं, बल्कि केंद्र से मिलने वाली आगामी किस्तों पर भी खतरा मंडरा सकता है।
3. अन्य विभाग: तकनीकी, खनिज, निर्माण और शिक्षा क्षेत्र भी घेरे में
अन्य जिन विभागों ने भी बजट खर्च किया और UPC जमा नहीं किया, उनमें शामिल हैं:
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खनिज संसाधन विभाग
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लोक निर्माण विभाग (PWD)
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उच्च एवं तकनीकी शिक्षा विभाग
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औद्योगिक नीति एवं निवेश प्रोत्साहन विभाग
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लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग
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वन विभाग
इन सभी क्षेत्रों में योजनाएं तो चलाई गईं, लेकिन उनके खर्च का पुख्ता प्रमाण अनुपस्थित है।
इससे संकेत मिलता है कि या तो खर्च बिना पारदर्शिता के हुआ या फिर प्रशासनिक लापरवाही के चलते रिपोर्टिंग समय पर नहीं हो पाई।
कहां चूकी सरकार?
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योजनाओं की मॉनिटरिंग में कमी
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वित्त विभाग और क्रियान्वयन एजेंसियों के बीच तालमेल का अभाव
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पूर्व वर्षों की शेष परियोजनाओं का अधूरा लेखा-जोखा
क्या हो सकते हैं इसके प्रभाव
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केंद्र सरकार आगामी अनुदानों या बजट आवंटन में कटौती कर सकती है।
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योजनाओं की वैधता पर सवाल खड़े हो सकते हैं।
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लोकसभा व विधानसभा में इस विषय को लेकर विपक्ष सरकार को घेर सकता है।
योजनाओं में बजट तो मिल गया, लेकिन ज़मीन पर कितना काम हुआ – यह साबित करने वाला सबसे अहम कागज़ (UPC) ही नहीं है। इससे सरकारी जवाबदेही और ईमानदारी दोनों कटघरे में आ गई है। CAG की यह टिप्पणी आने वाले समय में सरकारी योजनाओं की निगरानी और बजट आवंटन की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकती है।