भोपाल। कार्यस्थल पर महिलाओं का लैंगिक उत्पीड़न केवल महिलाओं का मुद्दा नहीं, बल्कि यह उनकी सुरक्षा, गरिमा और समान अवसरों से जुड़ा गंभीर सवाल है। साथ ही यह किसी भी संस्थान की प्रतिष्ठा और नैतिकता पर भी सीधा असर डालता है। प्रत्येक संस्थान की जिम्मेदारी है कि वह कार्यस्थल का ऐसा माहौल बनाए, जहाँ महिला कर्मचारी निर्भय और सुरक्षित होकर कार्य कर सकें, क्योंकि सुरक्षित कार्यस्थल हर कर्मचारी का मौलिक अधिकार है।
यह विचार सामाजिक संस्था ‘सरोकार’ की संस्थापक और सचिव सुश्री कुमुद सिंह ने व्यक्त किए। वे बागसेवनिया स्थित पीएम श्री केन्द्रीय विद्यालय क्रमांक-3 में 26 सितम्बर को शिक्षकों के लिए आयोजित जागरूकता कार्यशाला को संबोधित कर रही थीं। कार्यशाला का विषय था — “कार्यस्थल पर महिलाओं का लैंगिक उत्पीड़न (रोकथाम और निवारण) अधिनियम – POSH Act के प्रति जागरूकता।”
80 शिक्षकों ने लिया भाग
इस कार्यशाला में विद्यालय के करीब 80 शिक्षक प्रतिभागी के रूप में उपस्थित रहे। सुश्री कुमुद सिंह ने POSH अधिनियम के प्रावधानों, उद्देश्यों और महत्व के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने विभिन्न गतिविधियों और उदाहरणों के माध्यम से यह समझाया कि कार्यस्थल पर महिलाओं की इच्छा के विरुद्ध किया गया अनुचित शारीरिक स्पर्श, अभद्र इशारे, अश्लील टिप्पणी, आपत्तिजनक सामग्री दिखाना, अशोभनीय ईमेल या संदेश भेजना, यौन संबंध के लिए दबाव बनाना, करियर को नुकसान पहुंचाने की धमकी देना — ये सभी कृत्य लैंगिक उत्पीड़न की श्रेणी में आते हैं।
उन्होंने बताया कि ऐसी किसी भी स्थिति में पीड़ित महिला अपने संस्थान की आंतरिक शिकायत समिति या स्थानीय समिति में शिकायत दर्ज करा सकती है। समिति की जिम्मेदारी होगी कि वह तुरंत संज्ञान लेकर निष्पक्ष जांच कर दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई करे।
शिक्षकों के सवाल और सुझाव
कार्यशाला में सवाल-जवाब का सत्र भी हुआ। शिक्षकों ने जिज्ञासावश कई प्रश्न पूछे, जैसे —
-
ऐसे मामलों में सबूत क्या होंगे?
-
क्या पुरुष भी शिकायत दर्ज कर सकते हैं?
-
यदि आंतरिक समिति में शिकायत न करनी हो तो विकल्प क्या है?
सत्र के दौरान सुझाव भी आए, जिनमें विशेष रूप से यह बात उभरकर सामने आई कि विद्यार्थियों को छोटी उम्र से ही लैंगिक संवेदनशीलता और सुरक्षित कार्य वातावरण के प्रति जागरूक किया जाना चाहिए।
विद्यालय प्रशासन का समर्थन
विद्यालय के प्राचार्य जितेंद्र रावत ने कहा कि यह केवल अधिनियम को समझने की बात नहीं है, बल्कि पूरा मुद्दा लैंगिक संवेदनशीलता का है। शिक्षकों की भूमिका समाज में इस संवेदनशीलता को बढ़ाने में अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने संस्था ‘सरोकार’ का आभार व्यक्त करते हुए भविष्य में भी ऐसे कार्यक्रम आयोजित करने की इच्छा जताई।
विद्यालय के उप प्राचार्य महेश बिरला भी पूरे कार्यक्रम के दौरान मौजूद रहे और सभी गतिविधियों में शिक्षकों के साथ सक्रिय रूप से शामिल हुए।