आम धारणा यह है कि प्रॉपर्टी में निवेश हर हाल में फायदे का सौदा है और इसमें लगा पैसा बढ़ेगा ही। हालांकि यह निवेश जितना आकर्षक है, इससे जुड़े जोखिम और पेचीदगियां भी कम नहीं हैं। रियल एस्टेट में निवेश से जुड़े कुछ सवाल या उलझनें लोगों के मन में हमेशा बनी रहती हैं। मकान खरीदना बेहतर है या प्लाट या फिर कॉमर्शियल प्रॉपर्टी में पैसा लगाया जाए। कितने दिनों बाद बेचने पर अच्छा रिटर्न मिलेगा। ऐसी उलझनों को दूर करने के लिए प्रॉपर्टी निवेश से जुड़ी कुछ बातों पर गौर करना जरूरी है। यह कहना है रियल एस्टेट एक्सपर्ट विजय आमले का, जो करीब 25 साल से भोपाल में अपनी टीम के साथ राजधानी के लोगों का घर खरीदने का सपना पूरा करा रहे हैं।
खरीदना अपनी मर्जी बेचना बाजार पर निर्भर
विजय आमले बताते हैं कि रियल एस्टेट में निवेश से पहले एक बात ध्यान में रखें कि प्रॉपर्टी की खरीद-फरोख्त अब भी ज्यादातर परंपरागत तरीके से ही होती है। इसलिए शेयर या म्यूचुअल फंड की तरह आप इसे जब मर्जी आए, तभी बाजार भाव बेच कर तुरंत रिटर्न हासिल नहीं कर सकते। अच्छी कीमत हासिल करने के लिए आपको खरीदार की तलाश करनी होगी।
अपने मनमुताबिक दाम पाने के लिए आपको अच्छा खासा इंतजार भी करना पड़ सकता है। इसलिए प्रापर्टी में निवेश करने वाले के पास धैर्य होना बहुत जरूरी है। इसके अलावा कई बार प्रॉपर्टी खरीदते समय और बेचते वक्त बाजार की स्थिति बिल्कुल अलग दिखाई पड़ सकती है। किसी खास समय या फेज में मांग में कमी से प्रॉपटी की कीमतें कम भी होती दिखती हैं। इसलिए अकसर प्रॉपर्टी बाजार में सही कीमत मिलने के इंतजार में प्रॉपर्टी को रोककर रखना पड़ता है।
कम से कम पांच साल इंतजार जरूरी
हालांकि वर्ष 2008 से पहले खासकर महानगरों में प्रॉपर्टी की कीमतें हर महीने या दो महीनें में भी बढ़ा करती थीं, लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता। प्रॉपर्टी में अच्छा रिटर्न लोकेशन, डेवलपमेंट और प्रॉपर्टी की मांग में बढ़ोतरी पर टिका है। कुछ अपवादों को छोड़कर अच्छा रिटर्न पाने के लिए कम से कम पांच साल का इंतजार जरूरी है। अगर आप अपनी बचत को प्रॉपर्टी में लगाने जा रहे हैं तो इस समय सीमा को ध्यान में रखकर ही अपनी फाइनेंस प्लानिंग करें।
बेचने के दाम अलग खरीदने का भाव अलग
प्रॉपर्टी बाजार पर चूंकि असंगठित क्षेत्र का बोलबाला है। इसलिए यहां जमीनी हकीकत और दावों में अकसर बड़ा फर्क देखने को मिलता है। प्रॉपर्टी खरीदते समय कीमतों को बढ़ाचढ़ा कर बताया जाता है और फिर उसी के आधार पर बिक्री के भाव स्थापित होते जाते हैं। इसके विपरीत बेचते वक्त मार्केट में ठहराव और आपूर्ति अधिक, खरीदार कम होने जैसी बाते कह कर कीमत कम से कम लगाने की कोशिश की जाती है।
आप यह जानकर खुश हो सकते हैं कि समय के साथ आपकी प्रॉपर्टी की कीमत इतनी बढ़ गई है, लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू यह है कि बढ़ी हुई इस कीमत पर खरीदार मिलने में दिक्कत आ सकती है। इसलिए लोकेशन, प्रॉपर्टी का वैल्यूएशन संपर्क और इलाके के विकास जैसे बुनियादी पहलुओं को देखकर ही किसी प्रॉपर्टी को खरीदने का फैसला लें।
ईएमआई की वैल्यू घटेगी, किराया बढ़ेगा
अगर आप दीर्घकालीन मुनाफे के साथ लगातार आमदनी के मकसद से प्रॉपर्टी में निवेश करना चाहते हैं, तो ऐसा मकान खरीदना सबसे बेहतर है, जिसे आसानी से अच्छे किराए पर दिया जा सके। इससे आपको अपने निवेश पर सालाना तीन से चार फीसदी तक किराया भी मिलेगा, जो हर साल 5-10 फीसदी बढ़ सकता है। शहरों में आमतौर पर चालीस लाख का फ्लैट 12-15 हजार रुपये महीना किराया देता है। फ्लैट की कीमत सालाना 15 फीसदी तक आराम से बढ़ जाती है। इस तरह अगर आप होम लोन लेकर भी फ्लैट खरीदते हैं तो ईएमआई की वैल्यू महंगाई बढ़ने के साथ कम महसूस होगी, जबकि किराया और प्रॉपर्टी की कीमत हर साल बढ़ती जाएगी।
क्या खरीदें: प्लॉट या मकान
150 से 250 गज का प्लॉट उन लोगों के लिए अच्छा विकल्प है, जो उभरते टियर टू या थ्री शहरों में प्रॉपर्टी में लंबे समय के लिए निवेश करना चाहते हैं। अगर आप इस पर मकान नहीं बना रहे हैं तो इस निवेश पर आयकर छूट का फायदा नहीं मिलेगा और तुरंत कोई आमदनी भी यह आपको नहीं देगा। उधर, होम लोन के ब्याज पर आपको सालाना डेढ़ लाख रुपये की आयकर छूट का फायदा मिलता है। हालांकि कई बार प्लॉट के दाम मकान के मुकाबले तेजी से बढ़ते हैं क्योंकि पुराना होने पर मकान को मरम्मत की जरूरत पड़ती है और इसकी वैल्यू कम हो जाती है, लेकिन प्लॉट के साथ ऐसे कोई दिक्कत नहीं होती।
अटका प्रोजेक्ट बिगाड़ सकता है प्लानिंग
हाउसिंग और कमर्शियल प्रोजेक्ट का अटक जाना अब आम बात है। इस जोखिम को ध्यान में रखना बेहद जरूरी है। अच्छी लोकेशन और प्रतिष्ठित बिल्डर के प्रोजेक्ट में बुकिंग करने के बाद लोग पजेशन से पहले भी इसे बेचकर भी अच्छा मुनाफा कमा जाते हैं, लेकिन महज इस इरादे से प्रॉपर्टी खरीदना मुनासिब नहीं होता, क्योंकि कई बार पैसा फंसने का जोखिम भी रहता है।
छुपे खर्चों के बारे में जरूर जान लें
मकान या जमीन के सपने को पूरा करने के लिए लोग जीवन भर की कमाई लगा देते हैं। ऐसे में प्रॉपर्टी या घर खरीदते समय इसके साथ आने वाले अतिरिक्त खर्चों के बारे में भी जानना जरूरी है। अमूमन, एक एजेंट प्रॉपर्टी खरीदते समय जो खर्च आपको बताता है, उसके अलावा भी उसमें कई दूसरे खर्चे शामिल रहते हैं। यह आपके बजट को करीब 25 फीसदी बढ़ा सकते हैं। इसलिए बेहतर रहेगा कि घर या प्रापर्टी खरीदते समय अतिरिक्त खर्चों के बारे में जानकारी प्राप्त कर उनके लिए तैयार रहा जाए।
रजिस्ट्रेशन लागत
प्रॉपर्टी की कुल लागत में से रजिस्ट्रेशन लागत का एक बहुत बड़ा हिस्सा होता है। ज्यादातर राज्यों में सभी कानूनी शुल्क जैसे स्टॉम्प ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन फीस कुल प्रॉपर्टी की कीमत का 7 से 12 फीसदी होता है। सामान्य तौर पर स्टॉम्प ड्यूटी 8-12 फीसदी होती है, जिसका मतलब है कि अगर आपने 50 लाख रुपये की प्रॉपर्टी खरीदी है, तो इसके लिए स्टॉम्प पेपर की लागत 5 लाख रुपये होगी, जिस पर सेल डीड लिखी जाएगी।
इसके साथ ही इसके रजिस्ट्रेशन के लिए कोर्ट में फीस दी जाएगी जो कुल प्रॉपर्टी का 1 से 2 फीसदी होगा। इन सबके अलावा खरीदार को और भी बहुत से खर्च उठाने पड़ते हैं जैसेकि नोटरी की फीस और वकील की फीस जो अदालत में आपके लिए काम करेगा। प्रॉपर्टी के वेरिफिकेशन और रजिस्ट्रेशन के लिए जो काउंसिल होती है वह भी प्रॉपर्टी की कुल लागत का करीब 1 फीसदी शुल्क लेती है। इन सब खर्चों को अपने बजट में शामिल करना बहुत जरूरी होता है।
पार्किंग स्पेस का खर्च
पिछले कुछ सालों से बड़े आवासीय कॉम्पलेक्स में पार्किंग के लिए अलग से फीस वसूलने का चलन चल पड़ा है। यह प्रॉपर्टी, लोकेलिटी और दिए गए पार्किंग स्पेस के मुताबिक 2-5 लाख रुपये के बीच हो सकता है। हालांकि, मार्च 2012 के बाद से सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक आवासीय कॉम्पलेक्स में पार्किंग स्पेस के लिए अलग से कोई अतिरिक्त राशि नहीं वसूली जा सकती है। यह अलग बात है कि ज्यादातर डेवलपर प्रॉपर्टी की लागत में अतिरिक्त कीमत जोड़कर इसकी भरपाई कर लेते हैं।
इंटीरियर की लागत
प्रॉपर्टी खरीदने के बाद उसमें आंतरिक साज सज्जा के ऊपर कुछ खर्च करना जरूरी हो जाता है। इस खर्च को आरंभिक लागत में नहीं जोड़ा जाता है लेकिन घर खरीदने की लागत में इसका बहुत बड़ा हिस्सा होता है। देखा जाए तो यह कुल प्रॉपर्टी की लागत का करीब 1 फीसदी हो सकता है।
ब्याज का नुकसान
देश में प्रॉपर्टी प्रोजेक्ट का लंबित होना एक आम बात है। इस देरी से ना सिर्फ प्रॉपर्टी की लागत बढ़ती है बल्कि खरीदार को इसके तहत अतिरिक्त खर्चे भी उठाने पड़ते हैं। जैसेकि, होम लोन लेने वाले ग्राहक को अतिरिक्त ब्याज का भुगतान करना पड़ता है।
रीयल्टी प्रोजेक्ट में 6 महीने से 1 साल की देरी सामान्य बात है और इसे अपने खर्चों की प्लानिंग में सोचकर चलना चाहिए। इसके अलावा इस देरी से मकान मालिक को किराये में देरी का नुकसान उठाना पड़ता है। साथ ही जब तक प्रॉपर्टी बनकर तैयार नहीं हो जाती और मकान मालिक को दी नहीं जाती तब तक उसे टैक्स में छूट का फायदा भी नहीं मिल पाता है।
जानिएः क्या है मतलब इन बातों का
कॉरपेट एरिया- कॉरपेट एरिया से मतलब है कि मकान के अंदर एक दीवार से दूसरी दीवार तक इस्तेमाल करने योग्य एरिया।
बिल्ड अप एरिया- बिल्ड अप एरिया में कॉरपेट एरिया, अंदर और बाहर की दीवारों का एरिया और अथारिटी की ओर से अनिवार्य फ्लावर बेड, ड्राई बॉलकनी जैसे एरिया शामिल होते हैं।
सुपर बिल्ड अप एरिया- सुपर बिल्ड अप एरिया में बिल्ड अप एरिया और लॉबी, सीढ़ी और लिफ्ट के कॉमन स्पेस के आने वाले एरिया शामिल होते हैं।
डाटा होने न देगा घाटा
हमारे देश में आम निवेशक आज भी रियल एस्टेट को सबसे सुरक्षित मानते हैं। निवेश का पसंदीदा विकल्प होने के बावजूद दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि आमतौर पर लोग फोन पर बात करके या दूसरों की बातों पर यकीन करके प्रॉपर्टी में पैसा लगा देते हैं, जिसमें रिटर्न पर निवेश (आरओआई) की बात बहुत बढ़ा-चढ़ा कर बताई जाती हैं।
जाहिर है कि इस तरह किया गया निवेश निवेशक की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरता है। इसलिए ऐसी स्थिति से बचने के लिए आंकड़ों या डाटा पर नजर डालकर उसके आधार पर निवेश की रणनीति बनाना मुनासिब रहता है, क्योंकि निवेशक के लिए यह यथार्थपरक साबित होता है।
अलग-अलग शहरों, यहां तक कि एक ही शहर के विभिन्न इलाकों में मांग और आपूर्ति की स्थिति भिन्न-भिन्न होती है। इसलिए जिस जगह प्रॉपर्टी खरीदी जा रही है वहां मांग कैसी है और प्रॉपर्टी की उपलब्धता कितनी है। यह आंकड़ा देखने के बाद निवेश करने में ही समझदारी रहती है। यह आंकड़ा प्रॉपर्टी में किए गए निवेश पर रिटर्न की संभावनाओं को भी स्पष्ट कर देता है।
निवेशकों का रुझान टीयर-2 व टीयर-3 शहरों की ओर
रियल एस्टेट सेक्टर में टीयर-1 शहरों का प्रभुत्व करीब एक दशक से बना हुआ है। यहां प्रापर्टी की कीमत और उसकी सालाना ग्रोथ ने निवेशकों को खासा आकर्षित किया। धीरे-धीरे अब तेजी से बढ़ती कैपिटल वैल्यू के चलते टीयर-2 और टीयर-3 के शहर भी सक्षम निवेशकों का ध्यान अपनी ओर खींच रहे हैं।
व्यावसायिक और आवासीय, रीयल्टी के दोनों सेगमेंट में टीयर-1 शहरों में भारी मांग रही, जिसके चलते निवेशकों को यहां प्रापर्टी से अच्छा खासा ग्रोथ हासिल हुआ। हालांकि, अब इन शहरों में भूमि की कमी के चलते रीयल एस्टेट का विस्तार और रफ्तार पहले की तरह तेज नहीं रह गई है। यही वजह है कि अब रीयल्ट एस्टेट के लिए टीयर- 2 और टीयर- 3 शहरों में मांग तेजी से बढ़ रही है।