“कर्ज, करप्शन और कुपोषण में उलझा बजट, आदिवासी और आमजन हुए दरकिनार

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भोपाल, 30 जुलाई 2025।
मध्य प्रदेश विधानसभा के मानसून सत्र के तीसरे दिन सदन में सत्ता और विपक्ष के बीच तीखी नोकझोंक और आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी रहा। अनुपूरक बजट सहित चार विधेयकों के साथ कई ज्वलंत मुद्दे सदन में उठाए गए। नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने सरकार पर कर्ज, प्रचार, भ्रष्टाचार और जनहित की अनदेखी जैसे गंभीर आरोप लगाए, वहीं कांग्रेस विधायकों ने पेसा कानून के नाम पर आदिवासी उत्पीड़न और ट्रांसफर इंडस्ट्री को लेकर सरकार को घेरा।

कर्ज का खाका बना बजट: सिंघार का आरोप

अनुपूरक बजट पर बोलते हुए नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने कहा कि सरकार ने मार्च से लेकर जुलाई तक भारी-भरकम कर्ज लिया है और अब जनता की समस्याओं की बजाय बजट का उपयोग सिर्फ ब्रांडिंग और प्रचार में किया जा रहा है। उन्होंने कहा, “हर दिन सरकार डेढ़ करोड़ सिर्फ प्रचार में उड़ा रही है, लेकिन बच्चों का कुपोषण और जनता की पीड़ा अनदेखी की जा रही है।” सिंघार ने सवाल उठाया कि मुख्यमंत्री के पास विदेश यात्राओं के लिए समय और बजट है लेकिन विधानसभा सत्र छोटा कर दिया जाता है ताकि जनता की आवाज न उठ सके। उन्होंने विधायकों के वेतन में वृद्धि की भी मांग उठाई।

ट्रांसफर बना कमाई का जरिया: कांग्रेस विधायक का आरोप

कांग्रेस विधायक ओमकार सिंह मरकाम ने सदन में आरोप लगाया कि ट्रांसफर के नाम पर करोड़ों की वसूली हो रही है। उन्होंने कहा कि सत्ता पक्ष के विधायकों को 15-15 करोड़ विकास कार्यों के लिए दिए जा रहे हैं, जबकि विपक्षी विधायकों को जानबूझकर दरकिनार किया गया है।

मरकाम ने आरोप लगाया कि अधिकारी कर्मचारियों पर ट्रांसफर का दबाव डालकर एक नया ‘फंड जेनरेशन मॉडल’ चलाया जा रहा है। आशा और आउटसोर्स कर्मचारियों को समय पर भुगतान नहीं किया जा रहा है, जिससे基层 स्तर पर स्वास्थ्य सेवाएं चरमरा गई हैं।

सड़कें बह रहीं, स्कूल भवन नहीं, अस्पतालों में स्टाफ नहीं

कांग्रेस विधायक लखन घनघोरिया ने जबलपुर की 56 करोड़ की सड़क का हवाला देते हुए कहा कि एक बारिश में सड़क बह गई, जिससे निर्माण गुणवत्ता पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं।

विधायक फुंदेलाल मार्को ने सवाल उठाया कि भवनविहीन स्कूलों के लिए बजट क्यों नहीं है। वहीं, स्वास्थ्य केंद्रों के निर्माण अधूरे हैं और अस्पतालों में डॉक्टर व सफाई कर्मचारियों की भारी कमी है। यह स्थिति बुनियादी ढांचे की बदहाली और सरकारी उदासीनता को उजागर करती है। स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली पर भी विपक्ष ने सरकार को घेरा।

विधायक भंवर सिंह शेखावत ने कहा कि अस्पतालों में उपकरण हैं, पर चलाने वाले टेक्नीशियन नहीं। डिप्टी सीएम राजेन्द्र शुक्ल ने माना कि कर्मचारी भरने और निर्माण कार्यों में देरी हो रही है लेकिन जल्द ही प्रक्रिया पूरी की जाएगी।

पेसा कानून पर घमासान: कांग्रेस का अनोखा विरोध प्रदर्शन

सत्र की शुरुआत कांग्रेस विधायकों के पत्ते पहनकर विरोध प्रदर्शन से हुई। उनका आरोप था कि पेसा कानून को प्रदेश में सही तरीके से लागू नहीं किया जा रहा है और आदिवासियों को वन भूमि से बेदखल किया जा रहा है। सिंघार ने कहा कि आदिवासी क्षेत्रों में जबरन बेदखली की जा रही है और भू-अधिकार पत्र तो दिए गए हैं, पर रजिस्ट्री अब तक नहीं की गई।

ग्रामीण विकास मंत्री प्रहलाद पटेल ने इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि विपक्ष को मूल्यांकन का अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा कि पेसा कानून को बेहतर ढंग से लागू किया जा रहा है। वहीं, भाजपा विधायकों ने कांग्रेस को पाखंड करने वाला दल बताया। आदिवासी अधिकारों पर ये आरोप-प्रत्यारोप पेसा कानून की कमजोर क्रियान्वयन व्यवस्था की ओर इशारा करते हैं।

संस्कृत भाषा के उत्थान की मांग

भाजपा विधायक डॉ. अभिलाष पांडे ने संस्कृत भाषा के संरक्षण और संवर्धन को लेकर ध्यानाकर्षण प्रस्ताव सदन में रखा। उन्होंने संस्कृत को राज्य की दूसरी भाषा का दर्जा देने, अधिक संस्कृत विद्यालयों के संचालन और प्रतियोगिताएं कराने की मांग की। शिक्षा मंत्री उदय प्रताप सिंह ने संस्कृत में ही जवाब देते हुए कहा कि सरकार 278 विद्यालयों में शिक्षा दे रही है और शिक्षकों की नियुक्ति भी जारी है।

अन्य मुद्दे भी रहे चर्चा में

  • शराब दुकानों में एमआरपी से अधिक कीमत पर शराब बिक्री का मामला

  • स्मार्ट मीटर की तेज रीडिंग से बढ़े बिजली बिलों की शिकायत

  • छोटे उद्योगों के लिए ज़मीन महंगी, सोशल ऑडिट की मांग

  • महेश्वर जल विद्युत परियोजना पर अनिश्चितता

  • पिछोर को जिला बनाए जाने की मांग

  • नक्शा विहीन ग्रामों पर कार्रवाई की देरी

विधानसभा का तीसरा दिन मध्यप्रदेश की गहराती समस्याओं का आईना रहा — कर्ज का बोझ, भ्रष्टाचार की आंधी, आदिवासी उत्पीड़न, शिक्षा व स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली और प्रशासनिक अनदेखी जैसे मुद्दे केंद्र में रहे। विपक्ष ने इन सवालों को लेकर सरकार की जवाबदेही तय करने की कोशिश की, जबकि सत्ता पक्ष ने योजनाओं की उपलब्धियों का दावा किया। पर सवाल यह है कि क्या आम जनता को जवाब भी मिलेगा, या सब कुछ एक और ‘सत्र’ बनकर रह जाएगा?

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