इस्लामाबाद
पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में गुरुवार को भीषण हिंसा हुई है। इस हिंसा में तीन पुलिस अधिकारियों समेत 15 लोगों की मौत हुई है। सुरक्षा बलों और प्रदर्शनकारियों के बीच तीखी झड़पों में दर्जनों लोग घायल भी हुए हैं। सवाल यह है कि जिस कश्मीर को इस्लाम के नाम पर पाकिस्तान हथियाने का ख्वाब देखता है, उसके ही एक हिस्से में इतना असंतोष क्यों है। इसकी वजह है कि स्थानीय लोग अकसर सरकार की योजनाओं में भेदभाव के आरोप लगाते रहे हैं। इसके अलावा स्थानीय स्तर पर स्वायत्तता के अभाव, महंगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दे अहम रहे हैं। हालिया प्रदर्शनों का नेतृत्व जम्मू-कश्मीर जॉइंट ऐक्शन अवामी कमेटी की ओर से हो रहा है।
ऐक्टिविस्ट शौकत नवाज मीर के नेतृत्व में हो रहे इस आंदोलन की शुरुआत 29 सितंबर से हुई थी, जब बंद बुलाया गया था। इस बंद के तहत कई जिलों में पूरी तरह से शटडाउन हो गया था। फिलहाल पाकिस्तान की सरकार ने यहां इंटरनेट पर पाबंदी लगा रखी है। इसके अलावा मोबाइल सेवाएं भी ठप हैं। मुजफ्फराबाद में बाजार शांत हैं और वाहन भी पूरी तरह से खड़े हैं। हालात यह हैं कि पीओके के 40 लाख लोग अनिश्चितता के दौर से गुजर रहे हैं। वहीं पाकिस्तान की सरकार समस्याओं का हल करने की बजाय जनता पर ही आरोप लगा रही है कि वे फेक न्यूज के चलते आंदोलन कर रहे हैं, जिन्हें एक प्रोपेगेंडा के तहत फैलाया जा रहा है।
अब सवाल है कि आखिर किन मांगों को लेकर इतना बवाल हो रहा है। दरअसल इसकी जड़ें मई 2023 में जाकर मिलती हैं। तब स्थानीय लोगों ने बिजली के बेतहाशा बढ़े दामों के खिलाफ विरोध किया था। इसके अलावा आटे की महंगाई और सप्लाई में कमी के खिलाफ भी आंदोलन हुआ था। इन लोगों का कहना था कि आटे की तस्करी की जा रही है। तब सितंबर में प्रदर्शनकारियों ने मुजफ्फराबाद में बड़ा आंदोलन किया था। इसके बाद मई 2024 में भी ऐसा ही हुआ था और 5 लोग मारे गए थे। पाकिस्तान के पीएम शहबाज शरीफ ने तब बिजली की दरों में कमी करने और आटे के दाम घटाने का ऐलान किया था। इससे तात्कालिक तौर पर प्रदर्शन थम गए थे, लेकिन फिर से बवाल बढ़ा है।
मंत्रियों और अधिकारियों को मिलने वाली लग्जरी पर भी सवाल
फिलहाल जो आंदोलन चल रहा है, उसके तहत जम्मू-कश्मीर अवामी ऐक्शन कमेटी ने 38 मांगें रखी हैं। इनमें प्रमुख ये हैं कि स्थानीय लोगों को शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधाएं मुफ्त में दी जाएं। इसके अलावा सरकारी अधिकारियों को मिले अधिक अधिकारों के खिलाफ भी लोगों में गुस्सा है। सरकारी अधिकारियों और मंत्रियों को मिलने वाली मोटी पेंशन, पगार, सुरक्षाकर्मी, मकान, गाड़ियों के लिए ईंधन आदि को लेकर भी लोगों में गुस्सा है। इसे खत्म करने की मांग है। इसके अलावा 12 सीटों पर आरक्षण खत्म करने की भी मांग है, जिन्हें रिफ्यूजियों के लिए छोड़ा गया है।
भारतीय हिस्से से गए लोगों को मिलने वाले आरक्षण पर भी बवाल
स्थानीय लोगों का कहना है कि यह आरक्षण भारत से 1947 में पलायन करके आए लोगों को दिया गया था। लेकिन यह समूह एक मजबूत गुट है, जो राजनीतिक रूप से बहुत सक्षम है। ऐसे में उन्हें राजनीतिक रियायत मिलना ठीक नहीं है। एक मांग यह है कि 2023 और 2024 में हुए आंदोलन के दौरान जो मुकदमे लादे गए थे, उन्हें खत्म किया जाए। इसके अलावा पीओके में इन्फ्रा प्रोजेक्ट्स बढ़ाने की मांग की गई है। एक इंटरनेशनल एयरपोर्ट बनाने और सुरंगों एवं पुल के माध्यम से कनेक्टिविटी मजबूत करने की भी मांग हुई है।