वाशिंगटन
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के एच-1बी वीजा फीस को 100,000 डॉलर करने के फैसले को लेकर कानूनी लड़ाई शुरू हो गई है. शुक्रवार को यूनियनों, नियोक्ताओं और धार्मिक संगठनों के एक गठबंधन ने सैन फ्रांसिस्को की संघीय अदालत में याचिका दाखिल कर इस आदेश को रोकने की मांग की.
यह मुकदमा ट्रंप के उस ऐलान को पहली बार अदालत में चुनौती देता है जिसे उन्होंने दो हफ्ते पहले जारी किया था. इसमें कहा गया था कि अमेरिका में आने वाले नए एच-1बी वीजा धारकों को तभी प्रवेश मिलेगा जब उनके नियोक्ता अतिरिक्त 100,000 डॉलर का शुल्क जमा करें. हालांकि यह आदेश उन लोगों पर लागू नहीं होगा जिनके पास पहले से वीजा है या जिन्होंने 21 सितंबर से पहले आवेदन कर दिया था.
याचिकाकर्ताओं में यूनाइटेड ऑटो वर्कर्स यूनियन, अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ यूनिवर्सिटी प्रोफेसर्स, एक नर्स भर्ती एजेंसी और कई धार्मिक संगठन शामिल हैं. उन्होंने दलील दी कि ट्रंप को कानून द्वारा बनाए गए वीजा कार्यक्रम में इस तरह से बदलाव करने या नए शुल्क लगाने का अधिकार नहीं है. अमेरिकी संविधान के मुताबिक कर या शुल्क लगाने का अधिकार केवल कांग्रेस के पास है.
वीजा फीस बढ़ाने पर क्या है ट्रंप प्रशासन का पक्ष
ट्रंप प्रशासन ने इस कदम को सही ठहराते हुए कहा कि यह “सिस्टम के दुरुपयोग को रोकने और अमेरिकी वेतन स्तर को गिरने से बचाने” के लिए जरूरी है. व्हाइट हाउस प्रवक्ता एबिगेल जैक्सन ने कहा कि यह कदम उन कंपनियों को भी आश्वासन देता है जिन्हें वास्तव में विदेशी प्रतिभा की जरूरत है.
वर्तमान में नियोक्ता एच-1बी प्रायोजन के लिए कंपनी के आकार और अन्य कारकों के आधार पर लगभग 2,000 डॉलर से 5,000 डॉलर तक का शुल्क देते हैं. ट्रंप का आदेश इस लागत को कई गुना बढ़ा देगा.
एच-1बी वीजा का बड़ा लाभार्थी भारत
एच-1बी कार्यक्रम के तहत हर साल 65,000 वीजा और उन्नत डिग्री धारकों के लिए अतिरिक्त 20,000 वीजा उपलब्ध कराए जाते हैं. 2023-24 के आंकड़ों के अनुसार, भारत सबसे बड़ा लाभार्थी रहा है और उसे कुल मंजूर वीजा का लगभग 71% मिला, जबकि चीन का हिस्सा करीब 11.7% था.
याचिका में कहा गया है कि नया आदेश “पे टू प्ले” (Pay to Play) व्यवस्था बनाता है, जिसमें केवल वही कंपनियां विदेशी विशेषज्ञों को नियुक्त कर पाएंगी जो भारी शुल्क अदा कर सकेंगी. इससे न केवल इनोवेशन पर असर पड़ेगा बल्कि चयनात्मक प्रवर्तन और भ्रष्टाचार की संभावना भी बढ़ जाएगी.