* अध्यक्ष पाली का आरोप – कार्यकारिणी चुनावी पारदर्शिता में रुचि नहीं ले रही
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अचानक बुलाई गई बैठक और इस्तीफा स्वीकारने पर उठे सवाल
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कंपनी एक्ट की धारा 173 और 174 का हवाला देकर वैधता पर बहस तेज
विवेक झा, भोपाल। भोपाल चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज (BCCI) के अध्यक्ष तेजकुल पाल सिंह पाली द्वारा इस्तीफे की घोषणा ने व्यापार जगत में हलचल मचा दी है। इस्तीफे के बाद मान-मनोबल की कोशिशें तो चल रही हैं, लेकिन अंदरूनी राजनीति और नियम-कायदों की व्याख्या ने मामले को और पेचीदा बना दिया है।
पाली ने शुक्रवार देर रात महामंत्री आदित्य जैन को पत्र लिखकर पद छोड़ने का फैसला किया। उनका आरोप है कि कार्यकारिणी के किसी भी सदस्य ने चुनावी प्रक्रिया को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने में सहयोग नहीं किया। यहां तक कि महासचिव भी कार्यालय आकर पत्र-व्यवहार करने से परहेज करते रहे।
पाली का कहना है कि “निर्वाचन किसी भी संस्था का सबसे महत्वपूर्ण कार्य होता है, लेकिन जब कार्यकारिणी ही जिम्मेदारी से पीछे हट रही है, तो मैं इस प्रक्रिया की निष्पक्षता सुनिश्चित नहीं कर सकता।”
अचानक बैठक और विवादित प्रक्रिया
पाली के इस्तीफे के अगले ही दिन शनिवार को पदाधिकारियों ने पहले निजी दफ्तर में और फिर चैंबर ऑफिस में बैठक की। चर्चा है कि इस बैठक में मनोनीत सदस्यों को नहीं बुलाया गया, जबकि नियम कहता है कि इस्तीफा स्वीकारने का अधिकार उन्हीं के पास है।
व्यापार जगत में यह सवाल गूंज रहा है कि जो पदाधिकारी चुनावी प्रक्रिया में रुचि नहीं ले रहे थे, वही अचानक एकजुट होकर इस्तीफा स्वीकारने के लिए बैठक क्यों करने लगे? क्या यह कदम महज़ एक रणनीतिक चाल था ताकि अध्यक्ष पाली को चुनावी प्रक्रिया से दूर रखा जा सके?
चुनाव से पहले संकट गहराया
15 दिसंबर से 15 जनवरी के बीच चुनाव की तारीख तय हो चुकी है। नियम यह भी कहता है कि चुनावी घोषणा के बाद यदि अध्यक्ष इस्तीफा देता है तो पूरी कार्यकारिणी भंग मानी जाती है। इस स्थिति में अब न केवल अध्यक्ष बल्कि पूरी कार्यकारिणी पर अनिश्चितता के बादल मंडरा रहे हैं।
कानूनी पेंच: कंपनी एक्ट की धाराएँ भी आईं सामने
इस पूरे विवाद में अब कानूनी पहलू भी जुड़ गया है।
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धारा 173 (Companies Act, 2013) कहती है कि किसी भी कंपनी को वर्ष में कम से कम 4 बोर्ड मीटिंग करनी होती हैं और इनका नोटिस सभी निदेशकों को 7 दिन पहले भेजना चाहिए।
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धारा 174 के अनुसार, बैठक तभी वैध मानी जाएगी जब कम से कम 1/3 निदेशक (या 2 निदेशक, जो भी अधिक हो) उपस्थित हों।
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यदि अध्यक्ष ने इस्तीफा दे दिया है, तो उनकी अनुमति की आवश्यकता स्वतः समाप्त हो जाती है। ऐसे में महामंत्री या कोई अन्य निदेशक बैठक बुला सकता है, ताकि इस्तीफे को रिकॉर्ड कर आगे की प्रक्रिया की जा सके।
हालाँकि, यदि चैंबर के AOA (Articles of Association) में विशेष रूप से यह लिखा है कि अध्यक्ष की अनुमति से ही बैठक बुल सकती है, तो इस प्रक्रिया पर सवाल उठ सकते हैं।
इस्तीफा या राजनीतिक रणनीति?
व्यापारी वर्ग में चर्चा जोरों पर है कि यह इस्तीफा वास्तविक नाराज़गी का नतीजा है या फिर आगामी चुनावों में पाली को किनारे करने की रणनीति।
पाली को एक पूर्णकालिक अध्यक्ष माना जाता था, जिन्होंने अपने कार्यकाल में कार्यालय और गतिविधियों का विस्तार किया और सरकार के सामने व्यापारियों का पक्ष मजबूती से रखा। ऐसे में उनका अचानक इस्तीफा और उसे लेकर जल्दबाज़ी में की गई बैठकें, गहरी गुटबाजी और सत्ता समीकरणों की ओर इशारा करती हैं।
आगे क्या?
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यदि नियमों के मुताबिक देखा जाए, तो चुनावी घोषणा के बाद अध्यक्ष का इस्तीफा पूरी कार्यकारिणी के भंग होने का कारण बन सकता है।
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दूसरी ओर, कानूनी धारा 173 और 174 का हवाला देकर मौजूदा कार्यकारिणी इस्तीफा स्वीकारने का दावा कर रही है।
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इससे आने वाले दिनों में यह मामला सिर्फ चुनावी नहीं, बल्कि कानूनी लड़ाई का भी रूप ले सकता है।
भोपाल चैंबर, जो व्यापार जगत की प्रतिष्ठित संस्था मानी जाती है, अब नियम-कायदों और अंदरूनी राजनीति के चक्रव्यूह में उलझ गई है। आने वाले चुनाव इस संस्था के भविष्य के साथ-साथ उसकी विश्वसनीयता और पारदर्शिता की असली परीक्षा होंगे।