जबलपुर हाईकोर्ट का स्पष्ट निर्देश: सरकारी आवास पालतू जानवरों के लिए नहीं, केवल परिवार के लिए

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जबलपुर 

पालतू कुत्ते और बिल्लियां अब सिर्फ घर की खुशी का जरिया नहीं रह गई हैं, बल्कि कभी-कभी पड़ोसियों और परिवार के लिए कानूनी मुद्दा बन रही हैं। जबलपुर (Jabalpur) के व्हीकल फैक्ट्री में तैनात जूनियर वर्क्स मैनेजर (JWM) सैफ उल हक सिद्दीकी ने भी इसी कारण हाईकोर्ट का रुख किया, लेकिन शुक्रवार को सुनवाई के बाद कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।

मामला इस बात का है कि फैक्ट्री प्रशासन ने पड़ोसियों की शिकायत पर JWM को सरकारी क्वार्टर खाली करने के निर्देश दिए थे। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सरकारी क्वार्टर परिवार के लिए है, और यदि डॉग पालने की जिम्मेदारी याचिकाकर्ता पर है, तो वह किराए के मकान में रहकर पालतू डॉग का पालन कर सकता है।

पालतू डॉग्स और पड़ोसियों के बीच विवाद का कारण

हाल ही में देखा गया है कि पालतू डॉग और बिल्लियां न केवल पति-पत्नी के बीच मतभेद का कारण बन रही हैं, बल्कि पड़ोसियों के साथ भी संबंधों को प्रभावित कर रही हैं। पड़ोसियों ने शिकायत की थी कि JWM के घर में कई पालतू कुत्ते और बिल्लियां रहने के कारण शोर और गंदगी बढ़ रही है। इस शिकायत के बाद फैक्ट्री प्रशासन ने सरकारी क्वार्टर खाली करने का आदेश जारी किया।

JWM ने इसे अवैधानिक बताते हुए हाईकोर्ट में चुनौती दी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि क्वार्टर आवंटन केवल परिवार के लिए होता है, और किसी भी पालतू जानवर को वहां रखने की जिम्मेदारी परिवार के अधिकार में नहीं आती।

हाईकोर्ट का आदेश और तर्क

जस्टिस विवेक जैन की अदालत ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि फैक्ट्री प्रशासन का आदेश सही है। सरकारी क्वार्टर परिवार के रहने के लिए है, न कि पालतू जानवरों के लिए। पड़ोसियों की शिकायत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, और शांति बनाए रखना प्रशासन की जिम्मेदारी है। यदि याचिकाकर्ता पालतू डॉग पालना चाहते हैं, तो वह किराए का मकान लेकर अपनी जिम्मेदारी निभा सकते हैं। याचिकाकर्ता क्वार्टर का मालिक नहीं है, बल्कि इसे फैक्ट्री प्रशासन ने आवंटित किया है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि पालतू जानवरों के कारण उत्पन्न परेशानियों को प्रशासन और कानूनी तौर पर हल किया जा सकता है।

देश-विदेश में पालतू जानवरों से जुड़े विवाद

पालतू डॉग्स और बिल्लियों से जुड़े विवाद अब सिर्फ जबलपुर या किसी एक शहर तक सीमित नहीं रह गए हैं। यहां तक कि ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री ऋषि सुनक भी 2023 में अपने पालतू डॉग की वजह से सामाजिक और कानूनी बहस का हिस्सा बन चुके हैं।

भारत में भी कई परिवारों में पालतू जानवरों ने घर की शांति को चुनौती दी है, कभी पति-पत्नी के बीच तलाक की नौबत आई, तो कभी पड़ोसियों के साथ मतभेद और कानूनी याचिकाओं की झड़ी लग गई। इसलिए पालतू जानवर सिर्फ घर की खुशी का जरिया नहीं रहे, बल्कि वे अब सामाजिक और कानूनी जिम्मेदारियों का भी हिस्सा बन गए हैं, जिनका पालन हर मालिक को सोच-समझकर करना पड़ता है।

मिडिया और समाज पर प्रभाव

इस मामले ने समाज में पालतू जानवरों और पड़ोसियों के अधिकार के बीच संतुलन की चर्चा शुरू कर दी है। मीडिया ने इसे बड़े पैमाने पर कवर किया, और सोशल मीडिया पर भी जब इस तरह के विषय उजागर होते हैं, तो लोग अपनी तरह-तरह की राय देने में पीछे नहीं रहते। अदालत के आदेश ने साफ कर दिया कि सरकारी आवास का उपयोग निजी जिम्मेदारी और पालतू जानवरों के लिए नहीं किया जा सकता। पड़ोसियों और मालिकों के बीच उत्पन्न विवाद अब प्रशासनिक और कानूनी दृष्टि से नियंत्रित किया जा सकता है।

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