भोपाल चैंबर में इस्तीफे पर कानूनी पेंच: CS की राय ने बढ़ाई कार्यकारिणी की मुश्किलें, नियम उल्लंघन पर उठे सवाल

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तीन पत्र, दो बैठकें और नियमों की उलझन में फंसी बीसीसीआई की कमान — इस्तीफा वैध या अवैध, कानूनी प्रक्रिया पर उठे सवाल

विवेक झा, भोपाल I भोपाल चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज (BCCI) में अध्यक्ष तेजकुल पाल सिंह पाली के इस्तीफे के बाद संगठन का माहौल गर्म है। सोमवार को पूरे दिन इस्तीफे को लेकर मंथन, बैठकों और कानूनी व्याख्याओं का दौर चलता रहा। स्थिति इतनी जटिल हो गई कि चैंबर की कार्यकारी कमेटी में भी मतभेद खुलकर सामने आ गए। दरअसल, सोमवार को कार्यकारी अध्यक्ष चुने जाने की घोषणा की जानी थी, लेकिन नियमों की व्याख्या और नोटिस प्रक्रिया को लेकर मतभेद के चलते कई पदाधिकारी और सदस्य बैठक में नहीं पहुंचे। इससे बैठक को रद्द करना पड़ा। वहीं, दूसरे पक्ष ने समानांतर मीटिंग कर अपनी स्थिति स्पष्ट की, जिसमें अधिकांश पदाधिकारी और सदस्य मौजूद रहे। तीन पत्रों से बढ़ी उलझन दिन भर में तीन अलग-अलग पत्र सामने आए। एक पत्र महामंत्री आदित्य जैन ‘मान्या’ और दूसरा कार्यालय सचिव प्रदीप कुमार तिवारी के हस्ताक्षरित थे। दोनों ने पाली का इस्तीफा नियम अनुसार मंजूर बताया। महामंत्री जैन ने तो पाली को वॉट्सएप संदेश के जरिए भी त्यागपत्र स्वीकृति की सूचना भेजने की बात कही।

पाली के समर्थन में गुप्त बैठक

इधर, पाली के समर्थक गुट ने सोमवार को एमपी नगर स्थित एक होटल में गोपनीय बैठक की। सूत्रों के अनुसार, इसमें कई पदाधिकारी और कार्यकारिणी सदस्य शामिल हुए जिन्होंने त्यागपत्र की वैधता पर आपत्ति जताई और इसे “नियमों के विरुद्ध कदम” बताया। हालांकि बैठक के विवरण को गोपनीय रखा गया।

महामंत्री ने विवाद से किया इनकार

दूसरी ओर, बीसीसीआई के महासचिव आदित्य जैन ‘मान्या’ ने विवाद की बात से इंकार किया। उन्होंने कहा कि आज कार्यकारी अध्यक्ष को लेकर चर्चा प्रस्तावित थी, लेकिन अधिकांश सदस्य व्यस्त होने के कारण निर्णय टल गया। “कहीं कोई विवाद नहीं है,” उन्होंने स्पष्ट किया।

पूरी प्रक्रिया अवैध

वहीं, कंपनी सेक्रेटरी अमित कुमार जैन ने इस पूरी प्रक्रिया को “अवैध और नियमों के विरुद्ध” बताया। अब इस विवाद ने कानूनी रूप ले लिया है, क्योंकि हाल ही में प्रस्तुत की गई कंपनी सचिव  (CS) अमित कुमार जैन की राय ने न केवल इस्तीफे की प्रक्रिया, बल्कि पूरी कार्यकारिणी की वैधता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

रिपोर्ट के अनुसार इस्तीफे को लेकर जो बैठकें आयोजित की गईं, उनमें कंपनी एक्ट की धारा 173 (मीटिंग) और 174 (कोरम) का पालन नहीं हुआ। बायलॉज के मुताबिक सभी निदेशकों और मनोनीत सदस्यों को बैठक की सूचना समय पर देना अनिवार्य है, परंतु ऐसा नहीं किया गया।

प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों की अनदेखी

CS अमित कुमार जैन की राय के मुताबिक, यदि किसी संस्था की बैठक बिना पारदर्शिता या सीमित जानकारी के साथ आयोजित होती है, तो यह प्राकृतिक न्याय (Principles of Natural Justice) का उल्लंघन है। ऐसी स्थिति में बैठक के निर्णय अमान्य (Invalid) और शून्य (Null & Void) माने जा सकते हैं।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यदि कार्यकारिणी में पारदर्शिता नहीं रखी गई या सभी पात्र सदस्यों को शामिल नहीं किया गया, तो अध्यक्ष का इस्तीफा वैधानिक रूप से अस्वीकार्य माना जाएगा।

चुनाव पूर्व संकट गहराया

BCCI में पहले से ही आगामी त्रिवार्षिक चुनावों की घोषणा हो चुकी है, जो 15 दिसंबर से 15 जनवरी के बीच होने हैं। ऐसे में इस्तीफे का मुद्दा केवल संगठनात्मक नहीं बल्कि कानूनी और राजनीतिक चुनौती भी बन गया है।
CS की राय में यह भी स्पष्ट है कि यदि अध्यक्ष का पक्ष सुने बिना कार्यकारिणी कोई निर्णय लेती है, तो पूरा बोर्ड स्वतः भंग (Dissolved) माना जा सकता है। इससे चुनावी प्रक्रिया पर भी असर पड़ सकता है।

गुटबाजी और अविश्वास की जड़ में राजनीति

संगठन के भीतर दो गुटों की खींचतान अब खुलकर सामने आ चुकी है। सूत्र बताते हैं कि इस्तीफे की स्वीकृति के लिए जिस तेजी से बैठक बुलाई गई, वह “राजनीतिक सक्रियता” का संकेत है। कई सदस्यों का मानना है कि यह इस्तीफा केवल “प्रशासनिक मामला” नहीं, बल्कि “चुनावी रणनीति” का हिस्सा भी हो सकता है।

संस्था की साख पर असर

व्यापारी वर्ग में चर्चा है कि तेजकुल पाल सिंह पाली के नेतृत्व में संस्था ने कई सकारात्मक कदम उठाए — जैसे स्थायी कार्यालय का विस्तार, सरकारी मंचों पर व्यापारिक हितों की पैरवी और व्यापारी समस्याओं का समाधान। अब उनके अचानक इस्तीफे और ensuing विवाद ने संस्था की साख पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है।

कानूनी और संस्थागत लड़ाई के आसार

कंपनी सचिव की राय के अनुसार, यदि बायलॉज और कानूनी प्रक्रियाओं की पुनः समीक्षा नहीं हुई, तो आने वाले दिनों में यह विवाद कानूनी लड़ाई का रूप ले सकता है। इससे संस्था की विश्वसनीयता और कार्यकारिणी की वैधता पर भी प्रतिकूल असर पड़ने की संभावना है।

विशेषज्ञ टिप्पणी

कॉरपोरेट मामलों के विशेषज्ञ अधिवक्ता मनोज परमार का कहना है —

“कंपनी एक्ट की धारा 173 और 174 के अनुसार सभी निदेशकों को नोटिस देना और कोरम पूरा होना आवश्यक है। यदि ऐसा नहीं हुआ, तो पूरा निर्णय अदालत में चुनौती योग्य बन जाता है।”

सीए शैलेश तिवारी का कहना है —

“यह विवाद सिर्फ प्रक्रिया का नहीं, बल्कि पारदर्शिता और विश्वास का है। ऐसे में निष्पक्ष आमसभा बुलाकर ही समाधान संभव है।”

कब क्या हुआ

  1. सितंबर 2025: अध्यक्ष तेजकुल पाल सिंह पाली ने चुनावी घोषणा की — 15 दिसंबर से 15 जनवरी के बीच चुनाव।

  2. 20 सितंबर: कार्यकारिणी की मीटिंग में चुनावी प्रक्रिया पर मतभेद सामने आए।

  3. 27 सितंबर: पाली ने महासचिव को इस्तीफे का पत्र सौंपा।

  4. 28 सितंबर: कुछ पदाधिकारियों ने बिना पाली को बुलाए निजी कार्यालय में बैठक की।

  5. 3 अक्टूबर: कंपनी सचिव की राय सामने आई — इस्तीफे की प्रक्रिया नियमविरुद्ध और कानूनी विवाद योग्य बताई गई।

    भोपाल चैंबर में अध्यक्ष के इस्तीफे का मामला अब केवल नेतृत्व परिवर्तन नहीं, बल्कि संवैधानिकता, पारदर्शिता और संस्था की साख से जुड़ा प्रश्न बन गया है। CS की कानूनी राय ने इस विवाद को नया मोड़ दे दिया है, और अब यह तय करना अदालत या आगामी आमसभा के हाथ में होगा कि संस्था का भविष्य किस दिशा में जाएगा।

    CS Opinion on President Resignation

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