सोने-चांदी के बढ़ते दाम, हीरे पर जीएसटी और जॉब वर्क पर टैक्स दरों ने ज्वेलरी कारोबार को किया प्रभावित; सरकार से आयकर, जीएसटी और इंपोर्ट-एक्सपोर्ट नीति में रियायत की अपील
विवेक झा, भोपाल, 26 मई 2025।
भारत का ज्वेलरी उद्योग सदियों से देश की सांस्कृतिक और आर्थिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। लेकिन वर्तमान समय में यह उद्योग कई जटिल समस्याओं से जूझ रहा है। व्यापारियों का कहना है कि बढ़ते हुए सोने-चांदी के दाम और मौजूदा टैक्स सिस्टम, विशेष रूप से जीएसटी, आयकर, और इंपोर्ट-एक्सपोर्ट ड्यूटी ने उनके व्यवसाय को संकट में डाल दिया है।
सोने-चांदी की कीमतों में भारी उछाल
पिछले कुछ महीनों से सोने और चांदी की कीमतों में दिन-प्रतिदिन इजाफा हो रहा है। इससे ज्वेलरी तैयार करने की लागत में जबरदस्त वृद्धि हुई है। व्यापारी बताते हैं कि ग्राहक अब महंगे गहनों की खरीदारी से पीछे हट रहे हैं, जिससे बाज़ार में मांग में कमी आई है।
हीरे पर GST का ढांचा
हीरे पर लागू जीएसटी ढांचा भी ज्वेलरी व्यवसायियों के लिए चुनौती बनता जा रहा है:
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रफ डायमंड (अप्रसंस्कृत हीरे) पर 0.25% जीएसटी लिया जाता है।
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तराशे हुए, लेकिन बिना जड़े हुए हीरे पर भी यही 0.25% दर लागू होती है।
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जब यही हीरे सोने या अन्य धातु में जड़कर गहनों के रूप में बेचे जाते हैं, तो उस पर कुल मूल्य (धातु, हीरे और मेकिंग चार्ज सहित) का 3% जीएसटी लिया जाता है।
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इम्पोर्ट पर भी यही टैक्स लागू होता है — डायमंड्स पर 0.25% और ज्वेलरी पर 3%, जो कस्टम क्लीयरेंस के दौरान अदा किया जाता है।
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औद्योगिक उपयोग के हीरे, जिनका प्रयोग मशीनों और उपकरणों में होता है, उन पर भी 0.25% जीएसटी लागू है।
निर्यात के लिए राहत, लेकिन…
ज्वेलरी के निर्यात पर जीएसटी दर शून्य (Zero-Rated) है, जिससे कारोबारियों को इनपुट टैक्स क्रेडिट का रिफंड मिल सकता है। लेकिन व्यापारियों का कहना है कि रिफंड प्रक्रिया जटिल और समय लेने वाली है, जिससे उनकी कार्यशील पूंजी (Working Capital) पर असर पड़ता है।
जॉब वर्क पर टैक्स की मार
हीरा प्रसंस्करण में जॉब वर्क अहम भूमिका निभाता है, लेकिन उस पर भी टैक्स दरें भारी हैं:
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पंजीकृत वर्कर्स द्वारा किए गए जॉब वर्क पर 1.5% जीएसटी है।
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अन्य श्रमिकों द्वारा किए गए लेबर या रिपेयर कार्य पर यह दर 18% हो जाती है, जो उद्योग के लिए अत्यधिक है।
व्यवसायियों की मांगें
व्यापारियों और ज्वेलरी संघों ने केंद्र सरकार से निम्नलिखित मांगें की हैं:
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जीएसटी दरों में कटौती, विशेष रूप से जॉब वर्क और डायमंड सेट ज्वेलरी पर।
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सोने और चांदी की आयात नीति में ढील, ताकि कीमतों को स्थिर किया जा सके।
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निर्यात रिफंड प्रक्रिया को सरल और त्वरित बनाया जाए।
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आयकर कानूनों में राहत, खासकर छोटे और मध्यम व्यवसायियों के लिए।
व्यवसायियों की आवाज
भोपाल के एक प्रमुख ज्वेलरी व्यापारी एवं मप्र सराफा एसोसिएशन के कोषाध्यक्ष संजीव गर्ग गांधी का कहना है,
“हमारा व्यवसाय केवल लाभ के लिए नहीं, बल्कि लाखों कारीगरों की रोज़ी-रोटी से जुड़ा है। अगर सरकार ने समय पर टैक्स सिस्टम में सुधार नहीं किया, तो ज्वेलरी उद्योग में भारी गिरावट आ सकती है।”
निष्कर्ष
भारत का ज्वेलरी उद्योग न केवल देश की परंपरा से जुड़ा हुआ है, बल्कि यह लाखों लोगों को रोज़गार भी प्रदान करता है। ऐसे में सरकार से यह अपेक्षा की जा रही है कि वह वर्तमान समस्याओं को समझे और उद्योग को राहत प्रदान करे ताकि यह क्षेत्र दोबारा अपनी रफ्तार पकड़ सके।