भोपाल | टेक्स-ला बार एसोसिएशन द्वारा अपने सदस्यों के लिए आयोजित एक विशेष कर कार्यशाला में वरिष्ठ चार्टर्ड अकाउंटेंट ध्रुव पांडे ने कर प्रणाली की जटिलताओं को सरल भाषा में समझाते हुए कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि आयकर, जीएसटी और बेनामी संपत्ति जैसे कानूनों में कर निर्धारण की मूल बातें काफी हद तक समान होती हैं, और उन्हें समझना प्रत्येक कर सलाहकार के लिए आवश्यक है।
‘पूर्वता का नियम’ कर प्रणाली की रीढ़
श्री पांडे ने ‘पूर्वता के नियम’ (Doctrine of Precedent) को कर प्रणाली में एक महत्वपूर्ण औजार बताया। उन्होंने कहा कि एक बार किसी प्रकरण में उच्च न्यायालय या ट्रिब्यूनल द्वारा दिया गया निर्णय, अन्य समान मामलों में भी मार्गदर्शक बन सकता है। यह नियम कर निर्धारण और अपील दोनों ही स्तरों पर लागू होता है और यदि सही ढंग से उपयोग किया जाए तो पक्षकार को बड़ी राहत मिल सकती है।
अधिकारियों से सम्मानपूर्वक व्यवहार और सीमित जानकारी देने की सलाह
कार्यशाला में सीए पांडे ने उपस्थित कर सलाहकारों से कहा कि कर अधिकारियों के साथ सम्मानजनक व्यवहार बनाए रखना आवश्यक है, लेकिन साथ ही केवल आवश्यक जानकारी और कागजात ही प्रस्तुत किए जाने चाहिए। उन्होंने सलाह दी कि पक्षकार के हित में जो भी जानकारी साझा की जाए, वह सोच-समझकर और रणनीतिक रूप से की जाए।
धारा 73 और 74 को लेकर महत्वपूर्ण कानूनी स्पष्टीकरण
कर प्रावधानों की व्याख्या करते हुए उन्होंने एक अत्यंत महत्वपूर्ण बिंदु उठाया कि यदि किसी करदाता को धारा 73 के अंतर्गत शोकॉज नोटिस जारी किया गया है, और अधिकारी को जाँच में कर चोरी का प्रमाण मिलता है, तो वह सीधे धारा 74 के अंतर्गत आदेश पारित नहीं कर सकते जब तक धारा 73 की प्रक्रिया समाप्त नहीं हो जाती।
यह कानूनी स्थिति कर सलाहकारों और अधिवक्ताओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका सीधा प्रभाव कर प्रकरण की वैधता और अपील योग्यता पर पड़ता है।
पुनर्वालोकन और विभागीय अपील का प्रावधान
पांडे ने बताया कि किसी भी कर अधिकारी द्वारा पारित आदेश का उच्च अधिकारी पुनः परीक्षण कर सकता है, और यदि उन्हें लगता है कि कोई छूट गलत तरीके से दी गई है, तो विभाग स्वयं भी उस आदेश के खिलाफ अपील कर सकता है।
यह जानकारी कर सलाहकारों को इस दिशा में सतर्क रहने की आवश्यकता को दर्शाती है कि प्रत्येक आदेश को उसके संभावित प्रभावों के साथ गंभीरता से देखा जाए।
संगठन पदाधिकारियों की गरिमामयी उपस्थिति
कार्यक्रम की अध्यक्षता टेक्स-ला बार एसोसिएशन के अध्यक्ष मृदुल आर्य ने की। उपाध्यक्ष अंकुर अग्रवाल, सचिव मनोज पारख, कोषाध्यक्ष धीरज अग्रवाल, तथा वरिष्ठ सदस्य राजेश जैन, अशोक मिश्रा समेत अन्य गणमान्य अधिवक्ताओं की उपस्थिति ने कार्यक्रम की गरिमा को और बढ़ाया।
कार्यशाला के दौरान सहभागियों ने विषय से संबंधित कई प्रश्न पूछे जिनका संतोषजनक उत्तर श्री पांडे ने विस्तार से दिया।
इस ज्ञानवर्धक कार्यशाला ने कर सलाहकारों के लिए कई अहम कानूनी पहलुओं पर प्रकाश डाला। सीए ध्रुव पांडे द्वारा प्रस्तुत विवेचन न केवल व्यावहारिक अनुभवों पर आधारित था बल्कि उसमें अद्यतन कानूनी दृष्टिकोण भी समाहित था। टेक्स-ला बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित यह सत्र निश्चित रूप से सभी सदस्यों के लिए उपयोगी और प्रेरणादायक सिद्ध हुआ।