बीजेपी का राधाकृष्णन पर दांव, उद्धव से स्टालिन तक बढ़ी सियासी टेंशन

बीजेपी-का-राधाकृष्णन-पर-दांव,-उद्धव-से-स्टालिन-तक-बढ़ी-सियासी-टेंशन

नई दिल्ली

उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर बीजेपी ने अपने उम्मीदवार के नाम का ऐलान कर दिया है. एनडीए उम्मीदवार के तौर पर सीपी राधाकृष्णन के नाम पर मुहर लगी है, लेकिन विपक्ष ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं. बीजेपी ने सीपी राधाकृष्णन के नाम का ऐलान कर एनडीए को एकजुट रखने के साथ-साथ विपक्षी किले में भी सेंधमारी का दांव चल दिया है.

बीजेपी संसदीय बोर्ड की बैठक के बाद पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने राधाकृष्णन के नाम का ऐलान करते हुए कहा कि विपक्ष के साथ भी बातचीत कर उनके नाम पर सर्वसम्मति बनाने की कोशिश करेंगे. एनडीए की ओर से उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर राधाकृष्णन को उतारना मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है.

प्रधानमंत्री मोदी का हर एक फैसला राजनीतिक लिहाज से काफ़ी अहम होता है. ऐसे में राधाकृष्णन का चयन के पीछे बीजेपी की सोची-समझी रणनीति मानी जा रही है. सीपी राधाकृष्णन दक्षिण भारत के तमिलनाडु से आते हैं और फिलहाल महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं. इस तरह से बीजेपी ने उन्हें उम्मीदवार बनाकर डीएमके और एआईएडीएमके में सेंधमारी करने के साथ-साथ उद्धव ठाकरे की शिवसेना को भी कशमकश में डाल दिया है.

राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति चुनाव में सेंधमारी

देश में राष्ट्रपति चुनाव हो या फिर उपराष्ट्रपति का चुनाव, देखा गया है कि सत्तापक्ष ने विपक्षी खेमे में सेंधमारी करती रही है. चाहे कांग्रेस के नेतृत्व वाला यूपीए का दौर रहा हो या फिर मौजूदा बीजेपी के नेतृत्व वाला एनडीए.

यूपीए ने 2007 के राष्ट्रपति चुनाव में प्रतिभा देवीसिंह पाटिल को उम्मीदवार बनाया था, जिनके ख़िलाफ़ एनडीए से भैरों सिंह शेखावत चुनाव लड़े थे. प्रतिभा पाटिल महाराष्ट्र की होने के नाते शिवसेना ने एनडीए गठबंधन का हिस्सा होते हुए भी यूपीए को वोट किया था. इसी तरह 2012 के राष्ट्रपति चुनाव में यूपीए ने प्रणब मुखर्जी को जब उम्मीदवार बनाया था, तब भी एनडीए का हिस्सा होने के बावजूद शिवसेना और जेडीयू ने यूपीए को वोट किया था.

वहीं, 2017 के राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए ने राम नाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया था, तब जेडीयू ने विपक्ष में रहते हुए भी उनका समर्थन किया था क्योंकि वे बिहार के राज्यपाल थे. इसके बाद 2022 में उपराष्ट्रपति पद के चुनाव में एनडीए ने जगदीप धनखड़ को अपना उम्मीदवार बनाया था तो कांग्रेस की तरफ़ से मार्गरेट अल्वा विपक्षी उम्मीदवार थीं. इसके बाद भी टीएमसी ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया था जबकि धनखड़ के साथ ममता की अदावत जगजाहिर रही है.

 कशमकश में उद्धव से स्टालिन तक 

तमिलनाडु से आने वाले सीपी राधाकृष्णन एनडीए के संयुक्त उम्मीदवार हैं, जो फिलहाल महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं. ऐसे में उद्धव ठाकरे की शिवसेना और एमके स्टालिन की डीएमके कशमकश की स्थिति में फंस गए हैं. स्टालिन और उद्धव दोनों ही विपक्षी खेमे में हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने सीपी राधाकृष्णन का नाम आगे बढ़ाकर इन दोनों नेताओं के लिए मुश्किलें बढ़ा दी हैं.

उद्धव ठाकरे के लिए मुश्किल यह है कि अगर वे राधाकृष्णन को समर्थन नहीं देते हैं, तो यह सीधा मैसेज जाएगा कि उन्होंने अपने ही राज्यपाल के ख़िलाफ़ जाकर वोट किया. यही वजह है कि शिवसेना (यूबीटी) के नेता संजय राउत ने कहा, “सीपी राधाकृष्णन बहुत अच्छे इंसान हैं, वे विवादास्पद नहीं हैं और उनके पास अनुभव है. मैं उन्हें शुभकामनाएँ देता हूँ.” संजय राउत के बयान से साफ़ है कि उद्धव ठाकरे के सामने एनडीए कैंडिडेट का खुलकर विरोध करना आसान नहीं होगा.

वहीं, भारतीय जनता पार्टी ने तमिलनाडु की सियासत में भी डीएमके और एआईएडीएमके की टेंशन बढ़ा दी है. तमिलनाडु में क्षेत्रीय अस्मिता काफ़ी अहमियत रखती है. ऐसे में एमके स्टालिन के लिए राधाकृष्णन के नाम का विरोध करना आसान नहीं होगा. इसी तरह से एआईएडीएमके के लिए भी एनडीए के ख़िलाफ़ जाना मुश्किल होगा.

विपक्षी एकता कैसे रहेगी बरकरार?

उपराष्ट्रपति चुनाव में एनडीए की तरफ़ से सीपी राधाकृष्णन को उम्मीदवार बनाए जाने के बाद कांग्रेस के नेतृत्व वाले ‘इंडिया’ ब्लॉक के लिए आपसी एकता बनाए रखने की चुनौती खड़ी हो गई है. विपक्ष संयुक्त उम्मीदवार उतारकर एनडीए को टेंशन बढ़ाना चाहता था, लेकिन राधाकृष्णन की उम्मीदवारी होने के बाद ‘इंडिया’ ब्लॉक में भी सियासी चिंता बढ़ गई है.

डीएमके के लोकसभा और राज्यसभा में कुल 32 सांसद हैं और तमिलनाडु की सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते उसके सामने यह दुविधा रहेगी कि वह अपने राज्य के एनडीए उम्मीदवार का समर्थन करे या नहीं. डीएमके के लिए दुविधा इसलिए भी होगी, क्योंकि अगले साल तमिलनाडु में चुनाव हैं और बीजेपी और एआईएडीएमके इसे बड़ा मुद्दा बना सकते हैं.

सीपी राधाकृष्णन के नाम से विपक्षी एकता डगमगा सकती है. 2022 में टीएमसी ने वोटिंग में हिस्सा न लेकर कांग्रेस को गच्चा दे चुकी है. अब फिर से कांग्रेस के लिए सियासी चुनौती खड़ी हो गई है. देखना होगा कि उद्धव ठाकरे और एमके स्टालिन उपराष्ट्रपति चुनाव में क्या स्टैंड लेते हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *