बैंक कर्मियों का फूटा गुस्सा, 9 जुलाई को राष्ट्रव्यापी हड़ताल की चेतावनी

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विवेक झा, भोपाल, 26 जून 2025।
देशभर के बैंक कर्मचारी केंद्र सरकार की नीतियों से नाराज़ हैं और उन्होंने 9 जुलाई 2025 को एक राष्ट्रव्यापी बैंक हड़ताल का ऐलान किया है। यह हड़ताल ऑल इंडिया बैंक एम्प्लाईज एसोसिएशनऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन और बैंक एम्प्लाईज फेडरेशन ऑफ इंडिया के नेतृत्व में आयोजित की जा रही है। यह ऐलान केंद्र सरकार की कथित जनविरोधी, श्रमविरोधी और निजीकरण समर्थक नीतियों के खिलाफ किया गया है।

बैंक कर्मचारी केंद्र सरकार द्वारा लागू किए जा रहे चार नए श्रम संहिताओं, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और बीमा कंपनियों में निजीकरण, एफडीआई की बढ़ोतरी, आउटसोर्सिंग और ठेका प्रथा, नई पेंशन योजना (NPS), और कॉरपोरेट्स के खराब ऋणों पर ढिलाई जैसे मुद्दों को लेकर बेहद नाराज़ हैं।


भोपाल में सैकड़ों बैंक कर्मियों का प्रदर्शन

इस हड़ताल की तैयारी के तहत राजधानी भोपाल में आज शाम 5:15 बजे यूको बैंक के ज़ोनल कार्यालय, अरेरा हिल्स के सामने सैकड़ों बैंक कर्मचारियों और अधिकारियों ने प्रदर्शन किया। प्रदर्शन के दौरान जोरदार नारेबाजी की गई और सरकार की नीतियों की तीखी आलोचना की गई।

प्रदर्शन के बाद एक सभा का आयोजन हुआ, जिसमें कई वरिष्ठ बैंक यूनियन नेताओं ने भाग लिया। इन नेताओं में प्रमुख रूप से वी के शर्मा, दीपक रत्न शर्मा, संजय कुदेशिया, मोहम्मद नजीर कुरैशी, भगवान स्वरूप कुशवाह, गुणशेखरन, प्रभात खरे, जे पी दुबे, देवेंद्र खरे, विशाल धमेजा, किशन खेराजानी, सत्येंद्र चौरसिया, श्रीपाद घोटनकर, अमोल अचवाल, वैभव गुप्ता, के. वासुदेव सिंह, संतोष मालवीय, राम चौरसिया, अमित प्रजापति, सनी शर्मा, राजीव रंजन आदि शामिल रहे।

 


17 सूत्रीय मांगों के साथ आंदोलन का ऐलान

नेताओं ने बताया कि यह हड़ताल केवल बैंकिंग क्षेत्र की समस्याओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह केंद्रीय श्रमिक संगठनों की 17 सूत्रीय मांगों का भी समर्थन है, जिनमें मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:

  1. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और बीमा कंपनियों को मजबूत किया जाए।

  2. इन संस्थाओं के निजीकरण और विनिवेश की प्रक्रिया पर तत्काल रोक लगाई जाए।

  3. बीमा क्षेत्र में 100% एफडीआई की अनुमति वापस ली जाए।

  4. सभी बीमा कंपनियों को एकीकृत कर एक मजबूत सार्वजनिक इकाई बनाई जाए।

  5. बैंकों और बीमा कंपनियों में पर्याप्त स्थाई भर्ती की जाए।

  6. आउटसोर्सिंग और ठेका प्रणाली पर रोक लगे।

  7. एनपीएस को समाप्त कर ओपीएस (पुरानी पेंशन योजना) को बहाल किया जाए।

  8. कॉरपोरेट घरानों से एनपीए की वसूली के लिए कठोर कानून लागू हों।

  9. ग्राहकों के लिए सेवा शुल्क घटाया जाए।

  10. स्वास्थ्य और जीवन बीमा प्रीमियम पर लगाए गए जीएसटी को वापस लिया जाए।

  11. लेबर कोड के माध्यम से श्रमिक अधिकारों में कटौती न की जाए।

  12. ट्रेड यूनियनों के कार्यों में हस्तक्षेप बंद हो।

  13. बैंक कर्मचारियों की लंबित मांगों का समाधान शीघ्र किया जाए।

 


“कामगारों को गुलामी की ओर ले जाने वाली नीतियाँ” – वक्ताओं का आरोप

वक्ताओं ने केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि मौजूदा श्रम संहिताएँ (लेबर कोड) 29 मौजूदा श्रम कानूनों को समाप्त कर उनकी जगह रखी गई हैं, जो श्रमिकों को मिलने वाले कानूनी अधिकारों, जैसे – संगठित होने का अधिकार, सामूहिक सौदेबाजी, न्यूनतम वेतन, सामाजिक सुरक्षा, इत्यादि – को कमजोर करती हैं।

उनका कहना था कि यदि यह संहिताएँ लागू होती हैं तो देश का श्रमिक वर्ग मालिकों और प्रबंधन की दया पर निर्भर हो जाएगा और उनकी स्थिति “वेतनभोगी गुलामों” जैसी हो जाएगी।


सरकार की नीतियाँ बैंकों को कमजोर कर रही हैं

सभा को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक और बीमा कंपनियाँ दशकों से देश की आर्थिक रीढ़ रही हैं। छोटे व्यापारियों, किसानों, महिलाओं, मध्यम वर्ग, छात्रों और गरीब वर्ग को सुलभ ऋण और बीमा सेवाएँ देने में इनकी भूमिका अविस्मरणीय रही है।

परंतु वर्तमान सरकार की नीतियाँ इन संस्थाओं को कमजोर कर निजी हाथों में सौंपने की ओर बढ़ रही हैं। यह नीतियाँ लंबे समय में आम आदमी के हितों को नुकसान पहुँचाएँगी और वित्तीय सेवाओं को महँगा बना देंगी।

 


‘हड़ताल कोई विकल्प नहीं, लेकिन मजबूरी है’

प्रवक्ता वी. के. शर्मा ने कहा कि हड़ताल हमारा पहला विकल्प नहीं, लेकिन जब संवाद और बातचीत से समाधान नहीं निकलता, तो आंदोलन ही एकमात्र रास्ता बचता है। सरकार ने बार-बार बैंक कर्मचारियों और केंद्रीय संगठनों की मांगों को अनदेखा किया है।

अब यह आंदोलन केवल मांगों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह सरकार को चेतावनी है कि यदि श्रमिकों की उपेक्षा जारी रही तो राष्ट्रव्यापी जनआंदोलन खड़ा किया जाएगा।


हड़ताल से बैंकिंग सेवाएँ रहेंगी प्रभावित

प्रस्तावित हड़ताल में सार्वजनिक, निजी, विदेशी, सहकारी और ग्रामीण बैंकों के लाखों अधिकारी और कर्मचारी शामिल होंगे। इससे 9 जुलाई को देशभर में बैंकिंग सेवाएँ, जैसे – नकद लेनदेन, चेक क्लियरिंग, लोन प्रक्रियाएँ, ग्राहक सेवा आदि पूर्णतः ठप रह सकती हैं।

ग्राहकों को इस दिन ऑनलाइन और डिजिटल बैंकिंग सेवाओं पर निर्भर रहना पड़ सकता है, हालांकि उनमें भी आंशिक दिक्कतें आ सकती हैं।


आंदोलन तेज करने की चेतावनी

वक्ताओं ने साफ शब्दों में कहा कि यदि सरकार ने इस हड़ताल के बाद भी कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाया, तो आंदोलन और भी तेज किया जाएगा। और राष्ट्रव्यापी आम हड़तालेंजबरदस्त धरने, और राजनीतिक समर्थन के साथ राष्ट्रीय स्तर पर विरोध आयोजित किए जाएँगे।


9 जुलाई 2025 को प्रस्तावित यह राष्ट्रव्यापी बैंक हड़ताल केवल एक औद्योगिक कार्यविरोध नहीं, बल्कि एक बड़े सामाजिक-आर्थिक आंदोलन की भूमिका है। बैंक कर्मचारी अब केवल अपने वेतन या भत्तों की बात नहीं कर रहे, वे देश की आर्थिक दिशा और भविष्य को लेकर सवाल उठा रहे हैं।

यदि सरकार समय रहते संवाद की प्रक्रिया शुरू नहीं करती, तो यह आंदोलन न केवल बैंकिंग व्यवस्था को हिला देगा, बल्कि इसका असर आम नागरिक की जिंदगी पर भी देखने को मिलेगा।

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