श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल में अचानक सत्ता पलट, एशियाई देशों की नई ‘कठपुतली’ किसके हाथ में?

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नई दिल्ली 
बीते कुछ समय में श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल में जिस तरह से अचानक युवाओं के आंदोलन की वजह से सत्ता परिवर्तन हुआ है, यह कई सवाल खड़े करता है। सबसे बड़ा सवाल है कि क्या एशिया के देश किसी ताकत के हाथ की कठपुतलनी बन गए हैं। इन देशों में जो भी सरकारें थीं, वे पश्चिम विरोधी मानी जाती थीं। वहीं इन सभी सरकारों का झुकाव चीन की तरफ था। श्रीलंका में सत्ता परिवर्तन होने में तीन महीने का वक्त लगा तो बांग्लादेश में 15 दिन का। वहीं नेपाल में जेन- Z ने मात्र दो दिन में ही सरकार उखाड़कर फेंक दी।

सोशल मीडिया से शुरू हुआ आंदोलन जब सड़कों पर आया तो किसी भी देश की सरकार में इतनी ताकत नहीं थी कि वह इसे संभाल पाती। अब गौर करने वाली बात यह है कि जितने भी सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म हैं, वे ज्यादातर अमेरिकन हैं। टिकटॉक चीन का है। वहीं डिस्कॉर्ड, वाइबर,फेसबुक, इन्स्टाग्राम की पैरंट कंपनियां अमेरिकी हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि इस तरह से सत्ता परिवर्तन करवाने वाली ताकत अमेरिका में है या फिर रूस में, या फिर चीन में?

काठमांडू के मेयर बालेंद्र शाह को पश्चिमी पत्रिका में 2023 में ही नेता घोषित कर दिया गया था। गौर करने वाली बात है कि नेपाल, पश्चिम बंगाल और श्रीलंका की सरकारों का झुकाव चीन की रफ था। राजपक्षे ने हंबनटोटा पोर्ट चीन को सौंप दिया तो वहीं शेख हसीना चटगांव और मोंगला सीपोर्ट चीन को देने की तैयारी कर रही थी। नेपाल की ओली सरकार अपनी जमीन के जरिए चीन के पोर्ट्स को आने-जाने का रास्ता देना वाली थी। गौर करने वाली बात है कि आंदोलन से 6 दिन पहले ही ओली चीन पहुंचे थे और विक्ट्री डे परेड में शामिल हुए थे। उस समय चीन को भी अंदाजा नहीं था कि नेपाल में क्या होने वाला है। यहां तक कि भारत की एजेंसियों को भी भनक नहीं लगी कि पड़ोसी देशों में क्या उथल-पुथल होने जा रही है।

इतना तो स्पष्ट हो गया है कि एआई, डीपफेक और एल्गोरिदम वाले इस युग में किसी भी देश में सत्ता परिवर्तन अचानक हो सकता है। कट्टरपंथ, राजनीतिक ध्रुवीकरण और उकसावे को संभालना बेहद मुश्किल हो गया है। संभल है कि जिन संस्थानों को बनने में सालों लग गए, उन्हें मिनटों में तबाह कर दिया जाए।

एक बात और नजरअंदाज नहीं की जा सकती कि जिन देशों में सत्ता परिवर्तन हुआ है, वहां की सरकारें प्रशासन के मामले में काफी ढीली थीं। युवाओं में बेरोजगारी चरम पर थी। इन तीनों ही देशों में भ्रष्टाचार चरम पर था। पाकिस्तान और म्यांमार में अगर सेना हावी ना हो गई होती तो ऐसा ही कुछ वहां भी होने वाला था। भारत की बात करें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने युवाओं और जनता के साथ एक रिश्ता कायम किया है और लगातार जुड़े रहते हैं। ऐसे में सरकार को भी इस बात का अंदाजा रहता है कि युवा क्या चाहता है। आज के युग में वास्तविकता से ज्यादा कोई भी धारणा असर करती है। ऐसे में गलत सूचना ही सत्ता परिवर्तना की वजह बन जाती है।

 

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