दुष्कर्म पीड़िता को बच्चे को जन्म देने की मंजूरी, हाईकोर्ट ने गर्भवती की सहमति को बताया सर्वोपरि

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जबलपुर 
हाईकोर्ट जस्टिस विशाल मिश्रा ने अपने अहम आदेश में कहा है कि प्रजनन और गर्भपात के मामलों में गर्भवती की सहमति सर्वोपरि है। संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रजनन स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार है। एकलपीठ ने उक्त आदेश के साथ नाबालिग गर्भवती दुष्कर्म पीड़िता की इच्छा अनुसार उसे बच्चे को जन्म प्रदान करने की अनुमति प्रदान की है।

गौरतलब है कि नाबालिग द़ुष्कर्म पीड़िता ने गर्भवती होने के संबंध में हाईकोर्ट को पत्र लिखा था। पत्र की सुनवाई संज्ञान याचिका के रूप में करते हुए हाईकोर्ट ने पीड़िता की मेडिकल जांच रिपोर्ट पेश करने के आदेश जारी किये थे। मेडिकल रिपोर्ट में कहा गया था कि पीड़िता की उम्र साढे़ 16 साल है और गर्भावधि 28 से 30 सप्ताह के बीच है। इस अवधि में गर्भपात से पीड़ित की जान को खतरा हो सकता है।

एकलपीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि पीड़िता बच्चे को जन्म देकर उसे अपने साथ रखना चाहती है। माता-पिता ने गर्भपात से इंकार कर दिया और वह पीड़िता को अपने साथ नहीं रखना चाहते हैं।

एकलपीठ ने उक्त आदेश के साथ पीड़ित को बाल कल्याण समिति मंडला में स्थानांतरित करने के आदेश जारी किए हैं। युगलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि इस संबंध में पुलिस अधीक्षक को सूचित किया जाए। एकलपीठ ने सीडब्ल्यूसी के अधिकारियों को निर्देशित किया है कि बच्चे के जन्म के संबंध में पूरी सावधानी बरतें, क्योंकि पीड़िता 28 सप्ताह से अधिक समय से गर्भवती है। पीड़िता के वयस्क होने तक सीडब्ल्यूसी मंडला के पास रहेगी और प्रसव और अन्य सभी चिकित्सा व्यय राज्य सरकार द्वारा वहन किए जाएंगे। एकलपीठ ने उक्त आदेश के साथ याचिका का निराकरण कर दिया। 

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