नई दिल्ली
अल्पसंख्यक स्कूलों को आरटीई (शिक्षा का अधिकार कानून) के दायरे से बाहर रखना और वहां के शिक्षकों को टीईटी (शिक्षक पात्रता परीक्षा) से छूट देना बच्चों के योग्य शिक्षकों से शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन है। ये बात अल्पसंख्यक स्कूलों के शिक्षकों को टीईटी की अनिवार्य योग्यता से बाहर रखने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एक हस्तक्षेप अर्जी में कही गई है।
अर्जीकर्ता खेम सिंह भाटी ने अल्पसंख्यक स्कूलों के शिक्षकों को टीईटी की अनिवार्यता से छूट के मामले में पक्ष रखने की इजाजत मांगते हुए कहा है कि टीईटी शिक्षा के अधिकार का अहम हिस्सा है इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बच्चों को योग्य और सक्षम शिक्षक पढ़ाएं। शिक्षा के अधिकार में अच्छी शिक्षा पाने का अधिकार शामिल है। इसीलिए अल्पसंख्यक स्कूलों को टीईटी की अनिवार्यता से छूट दिया जाना बच्चों के साथ अन्याय है और उनके योग्य शिक्षकों से शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन है।
मामला बड़ी पीठ को भेजा
सुप्रीम कोर्ट ने कक्षा एक से कक्षा आठ तक को पढ़ाने वाले शिक्षकों के लिए टीईटी अनिवार्य करने के गत एक सितंबर के फैसले में अल्पसंख्यक स्कूलों को फिलहाल इससे छूट देते हुए उनका मामला विचार के लिए बड़ी पीठ को भेज दिया था। दो न्यायाधीशों की पीठ ने अल्पसंख्यक स्कूलों को आरटीई के दायरे से बाहर बताने वाले पांच न्यायाधीशों के प्रमति एजूकेशनल एंड कल्चरल ट्रस्ट मामले में पूर्व में दिए फैसले पर सवाल उठाते हुए मामला बड़ी पीठ को भेज दिया था। तमिलनाडु सहित कई राज्यों के मामले लंबित हैं। इसमें चीफ जस्टिस को सुनवाई के लिए उचित पीठ गठित करनी है। इसी मामले में डॉक्टर खेम सिंह भाटी ने ये हस्तक्षेप अर्जी दाखिल की है।
अर्जी में कहा गया है कि अल्पसंख्यक स्कूलों को आरटीई के दायरे से बाहर रखने के प्रमति जजमेंट में कानून की सही व्यवस्था नहीं दी गई है। आरटीई कानून सभी बच्चों के लिए गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से लाया गया था लेकिन प्रमति जजमेंट में अल्पसंख्यक स्कूलों को इसके दायरे से बाहर करने से ये उद्देश्य कमजोर होता है, क्योंकि इन स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों का योग्य शिक्षकों से शिक्षा पाने का अधिकार बाधित होता है।
टीईटी शिक्षा के अधिकार का अहम हिस्सा
कहा गया है कि अल्पसंख्यक संस्थानों को अपने शिक्षण संस्थानों के प्रबंधन और प्रशासन के संविधान के अनुच्छेद 30 (1) में मिले अधिकार और प्रत्येक बच्चे को अनुच्छेद 21ए में मिले मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार के बीच एक संतुलित व्याख्या होनी चाहिए। ऐसी व्याख्या होनी चाहिए कि दो में से किसी का भी अधिकार पूर्ण रूप से समाप्त न हो।
टीईटी शिक्षा के अधिकार का अहम हिस्सा है इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बच्चों को योग्य और सक्षम शिक्षक पढ़ाएं। शिक्षा के अधिकार में अच्छी शिक्षा पाने का अधिकार शामिल है इसीलिए अल्पसंख्यक स्कूलों को टीईटी की अनिवार्यता से छूट दिया जाना बच्चों के साथ अन्याय है और उनके योग्य शिक्षकों से शिक्षा पाने के अधिकार का उल्लंघन है।