भोपाल। मध्यप्रदेश के घने जंगलों और खूबसूरत वादियों से घिरे छिंदवाड़ा जिले के छोटे से गाँव तामिया में पली-बढ़ी एक साधारण लड़की ने अपनी असाधारण हिम्मत और जुनून से पूरी दुनिया को यह दिखा दिया कि सपने सिर्फ देखे नहीं जाते, पूरे भी किए जा सकते हैं—अगर इरादा बुलंद हो और आत्मविश्वास अडिग। यह कहानी है भावना डेहरिया की—एक बेटी, एक माँ, एक शिक्षिका, एक पर्वतारोही और एक अनगिनत युवतियों की प्रेरणास्त्रोत।
संघर्षों के शिखर से सफलता की चोटी तक
भावना का जीवन कोई आसान यात्रा नहीं था। एक सामान्य ग्रामीण परिवेश से आने वाली इस लड़की के लिए पर्वतारोहण का सपना देखना ही किसी क्रांति से कम नहीं था। लेकिन उन्होंने अपने संघर्षों को कभी अपनी सीमा नहीं बनने दिया। कठिन आर्थिक परिस्थितियाँ, संसाधनों की कमी, सामाजिक दवाब—इन सबका उन्होंने डटकर सामना किया।
22 मई 2019 को जब उन्होंने माउंट एवरेस्ट की 8,848 मीटर ऊँची चोटी पर कदम रखा, तो केवल बर्फीली हवाएँ ही नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश का गर्व भी उनके साथ ऊपर चढ़ रहा था। मध्यप्रदेश की पहली महिला पर्वतारोही बनने का यह कीर्तिमान उन्होंने उस स्थिति में रचा जब उनकी ऑक्सीजन सिलेंडर 8,000 मीटर की ऊँचाई पर लीक हो गई थी। लेकिन भावना ने हार नहीं मानी—साहस, संयम और संकल्प की त्रयी ने उन्हें शिखर तक पहुँचाया।
‘Advenger’ भावना: साहस और रोमांच की संगिनी
भावना ने केवल एवरेस्ट ही नहीं, बल्कि दुनिया के पाँच महाद्वीपों की सबसे ऊँची चोटियों को भी फतह किया है:
-
माउंट किलीमंजारो (अफ्रीका, 2019)
-
माउंट कोज़ियस्को (ऑस्ट्रेलिया, 2020)
-
माउंट एल्ब्रुस – दोनों शिखर (यूरोप, 2022)
-
माउंट एकोंकागुआ (दक्षिण अमेरिका, 2025)
यूरोप की चढ़ाई के दौरान उन्होंने ‘हर घर तिरंगा’ अभियान को नई ऊँचाई दी, जब उन्होंने एल्ब्रुस की चोटी पर तिरंगा लहराया। इस ऐतिहासिक क्षण की प्रशंसा स्वयं प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने अपने ‘मन की बात’ में की थी।
उनकी यात्राओं ने उन्हें न केवल “पर्वतों की रानी” बनाया, बल्कि उन्होंने एक नया शब्द भी गढ़ा—“Advenger”। यह शब्द उनके जीवन के दो मूल तत्वों—Adventure और Danger—का मिलाजुला रूप है, जो उनके जज़्बे और जोखिम उठाने की ताकत को दर्शाता है।
माँ, मार्गदर्शक और मिशनरी
भावना का जीवन केवल पर्वतारोहण तक सीमित नहीं रहा। वे एक माँ भी हैं, और एक ऐसी माँ जिसने अपनी बेटी सिद्धि मिश्रा को भी पर्वतारोहण के लिए तैयार किया। मात्र दो वर्ष की उम्र में सिद्धि एवरेस्ट बेस कैंप (5,364 मीटर) तक पहुँचने वाली सबसे कम उम्र की बालिका बनीं। यह कोई संयोग नहीं, बल्कि प्रेरणा की विरासत है, जो माँ से बेटी तक पहुँची।
माँ बनने के बाद जहाँ बहुत-सी महिलाएँ अपने करियर से समझौता कर लेती हैं, वहाँ भावना ने साहसिक खेलों में और भी ऊँचा उठने का निर्णय लिया। उनका यह संघर्ष हर उस महिला को प्रेरणा देता है जो दोहरी जिम्मेदारियों के बीच अपने सपनों को जिन्दा रखना चाहती है।
शिक्षा, खेल और सेवा – भावना के तीन स्तंभ
भावना ने केवल पर्वतारोहण में ही नहीं, बल्कि शिक्षा और खेलों में भी श्रेष्ठता का प्रदर्शन किया। उन्होंने फिजिकल एजुकेशन में मास्टर्स और योग व नेचुरोपैथी में डिप्लोमा प्राप्त किया है। कॉलेज जीवन में वे छात्रसंघ अध्यक्ष रहीं और राष्ट्रीय स्तर पर बास्केटबॉल, सायकल पोलो और सॉफ्टबॉल जैसे खेलों में मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व किया। NCC में भी वे सक्रिय रहीं, जहाँ उन्होंने अनुशासन, नेतृत्व और समर्पण की शिक्षा प्राप्त की।
उनकी इसी बहुआयामी प्रतिभा के कारण उन्हें राज्य का सर्वोच्च खेल सम्मान ‘विक्रम पुरस्कार’ (2023) प्रदान किया गया। वह एडवेंचर स्पोर्ट्स श्रेणी में यह पुरस्कार पाने वाली राज्य की पहली महिला हैं।
समाज सेवा और प्रेरणा का विस्तार
आज भावना केवल पर्वतारोहण तक सीमित नहीं हैं। वे ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान की ब्रांड एंबेसडर हैं, TEDx स्पीकर, गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड धारक, और Ernst & Young जैसी अंतरराष्ट्रीय कंपनियों में सलाहकार के रूप में भी कार्यरत हैं।
वे युवतियों को न केवल बड़े सपने देखने के लिए प्रेरित करती हैं, बल्कि उन्हें बताती हैं कि उन सपनों को साकार करने के लिए आत्मविश्वास, मेहनत और दृढ़ता की जरूरत होती है। वे हर सरकारी एवं निजी आयोजन में लड़कियों को निडर बनना सिखाती हैं—यह बताती हैं कि “बेटियाँ भी बुलंदियाँ छू सकती हैं, अगर उन्हें अवसर मिले और वे स्वयं को पहचानें।”
निष्कर्ष: सपनों की ऊँचाइयों पर एक बेटी का झंडा
भावना डेहरिया की कहानी केवल एक महिला की व्यक्तिगत सफलता नहीं है। यह उस सामर्थ्य का प्रतीक है जो भारत की बेटियों में समाया है। यह एक उदाहरण है उस बदलाव का, जो स्वावलंबन, शिक्षा और आत्मबल के जरिए समाज में लाया जा सकता है। उनके जीवन से यह स्पष्ट होता है कि—
“अगर इरादे बुलंद हों और लक्ष्य स्पष्ट हो, तो कोई भी चोटी बहुत ऊँची नहीं होती।”
भावना की सफलता की कहानी हर उस व्यक्ति के लिए एक प्रेरणा है जो जीवन में ऊँचाइयों को छूना चाहता है—चाहे वह किसी भी परिस्थिति से क्यों न गुज़र रहा हो।