विवेक झा, भोपाल।
भारत में ज्वेलरी का कारोबार सदियों से परंपरागत तरीके से चलता आया है। यह व्यापार केवल सोने-चांदी के गहनों का नहीं, बल्कि भरोसे, परंपरा और सामाजिक संरचना का भी है। लेकिन बीते कुछ वर्षों में ज्वेलरी इंडस्ट्री में आए तेज़ बदलावों ने इस संतुलन को हिला दिया है।
जहां एक ओर मेट्रो शहरों में होने वाले ज्वेलरी एग्जीबिशन पहले से ही छोटे व्यापारियों के लिए चुनौती बने हुए थे, वहीं अब ये एग्जीबिशन छोटे-छोटे नगरों तक पहुंच गए हैं। इसका सीधा प्रभाव परंपरागत व्यापार चैनल—होलसेल, सेमी-होलसेल और डोर टू डोर विक्रेताओं—पर पड़ा है।
ज्वेलरी एग्जीबिशन में रिटेल व्यापारियों को होलसेल रेट पर माल
मध्य प्रदेश सराफा एसोसिएशन के कोषाध्यक्ष संजीव गर्ग (गांधी) ने बताया कि एक तरफ जहां मैन्युफैक्चरिंग कंपनियां इन एग्जीबिशनों में अपने नए डिज़ाइनों को पेश कर रही हैं, वहीं वे सीधे रिटेल व्यापारियों को उसी रेट पर ज्वेलरी बेच रही हैं, जो रेट पहले केवल होलसेलर्स को दिया जाता था।
इससे समस्या यह हो रही है कि अब स्थानीय बाजारों के होलसेल, सेमी-होलसेल और डोर टू डोर व्यापारी रिटेल दुकानों को ज्वेलरी नहीं बेच पा रहे हैं। जब दोनों को एक ही रेट पर माल मिल रहा हो, तो स्थानीय व्यापारी क्यों किसी और से खरीदे?
यह व्यापारिक चैनल की नींव को हिला देने वाला कदम है, जो लंबे समय से इस क्षेत्र में कार्यरत छोटे व्यापारियों के लिए अस्तित्व का संकट पैदा कर रहा है।
होलसेल व्यापार: मुनाफे से घाटे तक
एक समय था जब ज्वेलरी के होलसेल व्यापार में मुनाफा अच्छा खासा हुआ करता था। लेकिन अब यह मुनाफा मात्र 1-2 प्रतिशत तक सिमट कर रह गया है।
ऊपर से रोज़ाना सोने-चांदी के दामों में भारी उतार-चढ़ाव, बढ़ती प्रतिस्पर्धा, ऑफिस का खर्च, कर्मचारियों की सैलरी, ट्रांसपोर्ट की लागत, और GST जैसी कानूनी जटिलताएं छोटे व्यापारियों की रीढ़ तोड़ रही हैं।
कई बार ऐसा होता है कि किसी दिन जिस रेट पर माल लिया गया, अगले ही दिन उसके दाम गिर जाते हैं और व्यापारी को नुकसान उठाना पड़ता है। ऐसे में ‘बिक्री हो गई’ यह जरूरी नहीं कि ‘फायदा हुआ’ भी हो।
बिक्री में रिस्क, पेमेंट में रिस्क और अब अस्तित्व में भी रिस्क
गांधी ने बताया कि डोर-टू-डोर ज्वेलरी बिक्री करने वाले व्यापारियों की हालत सबसे नाजुक है। ये व्यापारी न केवल भारी माल लेकर घूमते हैं, बल्कि हर दिन रिस्क उठाते हैं—जान का भी और माल का भी।
लोकल व्यापार में अधिकतर डील क्रेडिट यानी उधारी पर होती है। लेकिन जब बाजार अस्थिर हो और भाव तेजी से बढ़ते-घटते रहें, तो यह कहना मुश्किल हो जाता है कि पुराना पैसा वापस मिलेगा भी या नहीं।
छोटे व्यापारियों की चिंता यह भी है कि मैन्युफैक्चरर्स एग्जीबिशन में आकर माल बेच कर निकल जाते हैं, और वह भी कैश या एडवांस पेमेंट पर। जबकि लोकल व्यापारी को हर सुविधा देनी पड़ती है, ग्राहक को छूट भी देनी होती है और पेमेंट के लिए महीनों इंतजार भी करना होता है।
होलसेल और रिटेल के बीच की दीवार गिर गई है
एक गंभीर समस्या यह भी है कि अब ज्वेलरी एग्जीबिशन में होलसेल और रिटेल के बीच का भेद लगभग खत्म हो चुका है। एक समय था जब एग्जीबिशन मैन्युफैक्चरर्स और डिस्ट्रीब्यूटर, डीलर, होलसेलर के बीच नई ज्वेलरी पेश करने का मंच हुआ करता था।
अब ये प्रदर्शनी डायरेक्ट रिटेल स्टोर्स को माल बेचने का साधन बन चुकी हैं। इसका सीधा अर्थ यह है कि मैन्युफैक्चरर्स अब मिडल चैनल को हटाकर सीधे रिटेल से जुड़ना चाहते हैं।
यह प्रयास भारत में काम कर रहे लाखों होलसेल, सेमी-होलसेल और डोर टू डोर व्यापारियों की रोज़ी-रोटी पर गहरी चोट है।
क्या एग्जीबिशन केवल मेट्रो सिटीज तक सीमित रहें?
GJEPC (Gem & Jewellery Export Promotion Council) और GJC (All India Gem and Jewellery Domestic Council) जैसी संस्थाएं अभी तक अधिकतर एग्जीबिशन मेट्रो शहरों या मैन्युफैक्चरिंग हब में आयोजित करती हैं। इससे छोटे नगरों के व्यापारियों को न तो पूरा माल दिखता है और न ही उन्हें व्यापार के समान अवसर मिल पाते हैं।
अब जब प्रदर्शनी छोटे शहरों में भी हो रही हैं, तो उसमें स्थानीय सराफा एसोसिएशन और लोकल होलसेल व्यापारियों की भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए। केवल ब्रांडेड मैन्युफैक्चरर और आयोजकों के फायदे के लिए आयोजित प्रदर्शनी, स्थानीय व्यापार को नुकसान पहुंचा रही हैं।
क्या एग्जीबिशन अब व्यापार का जरिया बन चुके हैं?
व्यापारियों का कहना है कि अब ज्वेलरी एग्जीबिशन केवल एक प्रमोशन प्लेटफॉर्म नहीं रह गए हैं, बल्कि यह खुद एक व्यापार बन चुके हैं। आयोजक कंपनियां मैन्युफैक्चरर्स से मोटी फीस लेकर स्टॉल्स बेचती हैं, और मैन्युफैक्चरर्स इस एग्जीबिशन को डायरेक्ट रिटेल डीलिंग का जरिया बना लेते हैं।
इससे न केवल एग्जीबिशन की मूल भावना खत्म हो जाती है, बल्कि देश के लाखों छोटे व्यापारियों के लिए यह एक नई दीवार खड़ी कर देता है।
सरकार से हस्तक्षेप की अपील
ज्वेलरी इंडस्ट्री से जुड़े व्यापारी संगठनों और स्थानीय सराफा व्यापारियों ने केंद्र सरकार से मांग की है कि वह इस विषय पर संज्ञान लें। उनका कहना है कि जब हर दिन बदलते भाव, बढ़ती लागत और गिरती बिक्री पहले से ही व्यापारियों के लिए मुश्किलें खड़ी कर रही हैं, ऐसे में व्यापार की पारंपरिक चेन को तोड़ना आत्मघाती कदम साबित हो सकता है।
सरकार को चाहिए कि वह एक स्पष्ट नीति बनाए, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि:
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मैन्युफैक्चरर्स एग्जीबिशन में केवल डीलर, डिस्ट्रीब्यूटर और होलसेलर्स को ही बेचें।
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रिटेल स्तर की बिक्री केवल अधिकृत चैनल के माध्यम से हो।
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लोकल लेवल पर एग्जीबिशन आयोजन में स्थानीय व्यापारियों और एसोसिएशन की भागीदारी अनिवार्य हो।
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ब्रांड बनाम अनब्रांड व्यापार के लिए समान अवसर सुनिश्चित किए जाएं।
छोटे व्यापारी की पुकार
“हमने पीढ़ियों से यह व्यापार किया है। हमारे पास ब्रांड नहीं है, लेकिन भरोसा है। अगर यही सिस्टम चलता रहा, तो आने वाले वर्षों में छोटे व्यापारी इतिहास बन जाएंगे।”
यह दर्द सिर्फ एक व्यापारी का नहीं, बल्कि देश के लाखों छोटे व्यापारियों की हकीकत है। अगर सरकार और संस्थाएं समय रहते इस पर ध्यान नहीं देतीं, तो भारत के परंपरागत ज्वेलरी बाजार की आत्मा खो जाएगी।