नए नियमों के विरोध में क्रेशर संचालकों ने किया उत्पादन और विक्रय बंद, मंगलवार से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर

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विवेक झा, भोपाल।
मध्यप्रदेश में स्टोन क्रेशर उद्योग इन दिनों गहरे संकट से जूझ रहा है। प्रदेश के लगभग 2000 क्रेशर और गौण खनिज खदान संचालकों की प्रतिनिधि संस्था स्टोन क्रेशर ओनर्स एसोसिएशन ने खनिज विभाग से तत्काल हस्तक्षेप की मांग करते हुए स्पष्ट किया है कि यदि विभाग ने समयबद्ध समाधान नहीं किया, तो उद्योग को बचाना मुश्किल हो जाएगा।

इसको लेकर मध्यप्रदेश के स्टोन क्रशर संचालक मंगलवार से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले जाएंगे। वे रॉयल्टी, वृद्धि, स्टाम्प ड्यूटी, सीमांकन प्रोसेस, पर्यावरण स्वीकृति में सुधार जैसे मुद्दों को लेकर हड़ताल पर जा रहे हैं।

एसोसिएशन के अध्यक्ष देवेंद्रपाल सिंह चावला ने मीडिया को बताया कि विगत कुछ वर्षों में नियमों की जटिलता, प्रक्रियाओं की ढिलाई और समन्वयहीन कार्यशैली के चलते स्टोन क्रेशर संचालन अत्यधिक कठिन होता जा रहा है। इससे उत्पादन में भारी गिरावट आई है और राज्य सरकार को भी राजस्व हानि हो रही है।

एसोसिएशन के महासचिव आलोक गोस्वामी ने बताया कि सरकार को क्रशर संचालकों से जुड़ी समस्याओं को जल्द दूर करना चाहिए। इससे न केवल पट्‌टेदारों को राहत मिलेगी, बल्कि शासन को भी राजस्व की हानि से बचाया जा सकेगा। गोस्वामी ने बताया कि प्रदेश में सालाना गिट्‌टी-मुरम का एक हजार करोड़ रुपए से अधिक का कारोबार होता है। प्रदेश में करीब 2 हजार क्रेशर है। हड़ताल से सरकार को रोज करीब 3 करोड़ रुपए की राजस्व हानि होगी। हड़ताल से कारोबार से जुड़े 1 लाख से अधिक लोगों पर असर पड़ेगा। वहीं निर्माण कार्यों में अवरोध उत्पन्न होगा, जिससे प्रदेश प्रगति का पहिया थमेगा।इस अवसर पर एसोसिएशन के उपाध्यक्ष महेश लालवानी, कृष्‍ण कुमार पचौरी, जफर मोहम्मद खान, राजीव नागोरी, अतुल दुबे, हरित पाल सिंह होरा, राकेश बंसल, पंकज भसीन, मुकेश खंडेलवाल, द्वारका मिश्रा, सचिव अभिषेक अग्रवाल, मंगेश नामदेव, ज्‍वाइंट सेकेटी हेप्‍पी सिंह, रूपेश बिसेन भी मौजूद थे।

प्रमुख मांगें और समस्याएं

1. रॉयल्टी और स्टांप ड्यूटी में असमानता

पट्टेदार अगर अपने माइनिंग प्लान में रॉयल्टी बढ़ाना चाहता है, तो उसे समय पर स्वीकृति नहीं मिलती। वहीं स्टांप ड्यूटी उत्पादन की अनुमानित मात्रा के आधार पर ली जाती है, जो न्यायोचित नहीं है। एसोसिएशन ने मांग की है कि ड्यूटी का निर्धारण भूमि के सरकारी मूल्य के आधार पर किया जाए।

2. सीमांकन में तकनीकी विसंगति

पूर्व में जहां पटवारी द्वारा चेन सर्वे किया जाता था, वहीं अब सैटेलाइट सर्वे के चलते खदान की वास्तविक स्थिति में अंतर उत्पन्न हो रहा है, जिससे वैध खदानों को अवैध ठहराया जा रहा है। राजस्व और खनिज विभाग को संयुक्त अभियान चलाकर सीमांकन की प्रक्रिया दुरुस्त करनी चाहिए।

3. पर्यावरण स्वीकृति में देरी

MOEF के आदेश और SOP का अनुपालन नहीं होने से कई खदानों को पर्यावरणीय मंजूरी नहीं मिल पा रही है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद मध्यप्रदेश में B-2 श्रेणी की खदानों को अब तक मान्यता नहीं दी जा रही, जिससे वे अवैध घोषित हो रही हैं।

4. रॉयल्टी कटौती का असंतुलन

PWD, MPRDC व अन्य विभाग रॉयल्टी की कटौती सीधे कम दरों पर कर देते हैं। इससे ठेकेदार खदान संचालकों से रॉयल्टी लेना नहीं चाहते, जो पट्टेदारों को कानूनी उलझनों में डालता है।

5. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से NOC की जटिलता

PCB हर दो महीने में NOC लेने की शर्त रखता है, जबकि EC की प्रक्रिया ही दो महीने से अधिक ले लेती है। एसोसिएशन ने मांग की है कि PCB को निर्देशित किया जाए कि वह EC की वैधता तक NOC जारी करे।

6. नए नियमों का भूतलक्षी प्रभाव ना हो

पहले से स्वीकृत खदानों पर नए नियमों का पूर्व प्रभाव लागू करना प्राकृतिक न्याय के विरुद्ध है। इससे पहले से संचालित खदानों की वैधता खतरे में आ जाती है।

प्रदेशभर में उत्पादन व विक्रय ठप

इन मांगों के लंबित रहने और समस्याओं के समाधान में हो रही देरी से नाराज होकर प्रदेश के इंदौर, भोपाल, धार, देवास, झाबुआ, अलीराजपुर, खंडवा, बुरहानपुर, आगर, शाजापुर जैसे प्रमुख जिलों में क्रेशर संचालकों ने अनिश्चितकालीन उत्पादन और विक्रय बंद कर दिया है।

एसोसिएशन की स्पष्ट चेतावनी

“यदि हमारी मांगे शीघ्र पूरी नहीं की गईं, तो क्रेशर उद्योग पूरी तरह ठप हो जाएगा, जिससे न केवल राज्य के निर्माण कार्य ठप होंगे, बल्कि खनिज विभाग को करोड़ों रुपये की राजस्व हानि भी होगी,” अध्यक्ष देवेंद्रपाल सिंह चावला ने चेताया।

प्रदेश के बुनियादी निर्माण कार्यों में अहम भूमिका निभाने वाला यह उद्योग अब अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। शासन और प्रशासन यदि समय रहते संवेदनशीलता नहीं दिखाते, तो आने वाले समय में प्रदेश की इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को गंभीर झटका लग सकता है।

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